महिलाओं का कमाल, गोबर से बनाईं इको-फ्रेंडली राखियां - CGKIRAN

महिलाओं का कमाल, गोबर से बनाईं इको-फ्रेंडली राखियां


रक्षाबंधन का त्योहार नजदीक है और बाजार में रंग-बिरंगी राखियों की बहार है लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के गोकुल नगर स्थित गौठान में महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य इस पर्व को पर्यावरण संरक्षण और संस्कृति से जोड़कर खास अंदाज में मना रही हैं. समूह की महिलाएं गोबर से राखियां बना रही हैं, जो न केवल पूरी तरह से जैविक और इको फ्रेंडली हैं बल्कि सनातन परंपराओं का भी जीवंत उदाहरण हैं.गोकुल नगर के गौठान में 13 महिलाएं मिलकर गोबर से दीये, मूर्तियां और अन्य 32 प्रकार की सामग्रियां तैयार कर रही हैं. रक्षाबंधन को ध्यान में रखते हुए इन दिनों गोबर की राखियां बनाने का कार्य बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. ये राखियां पूरी तरह से गोबर से बनी होती हैं, जिनमें ग्वार गम मिलाकर सांचे की सहायता से आकर्षक डिजाइन दिए जाते हैं. इसके बाद धूप और छांव में 3-4 दिनों तक सुखाकर इन्हें सजाया जाता है. राखियों में 8 से 10 रंगों का उपयोग कर 10-12 अलग-अलग डिजाइन तैयार किए जा रहे हैं. गोबर से राखी बनाने का काम पिछले 5-6 वर्षों से किया जा रहा है. शुरुआत में इसकी मांग सीमित थी लेकिन धीरे-धीरे लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी और गोबर की राखियों की डिमांड देश के कई हिस्सों से आने लगी है. दिल्ली, कोलकाता जैसे बड़े शहरों से राखियों के ऑर्डर मिल रहे हैं. इनकी कीमत भी काफी कम हैं. ये राखियां 20 रुपये से लेकर 50 रुपये तक में उपलब्ध हैं.

गाय का गोबर शुद्ध और पवित्र

गौरतलब है कि सनातन धर्म में गाय के गोबर को शुद्ध और पवित्र माना जाता है. शुरुआत में महिलाएं इस सोच के साथ गोबर की राखियां बना रही थीं कि लोग इन्हें भगवान को पूजा में अर्पित कर सकें लेकिन अब ये राखियां भाई-बहनों के रिश्ते की डोर को भी मजबूत कर रही हैं. लोग इन्हें एक-दूसरे को बांधने में भी उपयोग कर रहे हैं, जिससे गौमाता का महत्व भी जन-जन तक पहुंच रहा है और ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनने का अवसर भी मिल रहा है.

महिलाओं को मिलेगा रोजगार

गोकुल नगर गौठान में महिलाओं की यह पहल स्वावलंबन और सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकी है. नीलम अग्रवाल कहती हैं कि आने वाले समय में वह इस कार्य को और बड़े स्तर पर विस्तारित करने की योजना बना रही हैं, जिससे और ज्यादा महिलाओं को रोजगार का साधन मिल सके. साथ ही पर्यावरण संरक्षण में भी अहम योगदान दिया जा सके. इस तरह एक साधारण सी दिखने वाली राखी अब पर्यावरण सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण और सनातन संस्कृति का प्रतीक बन चुकी है. रायपुर की इन महिलाओं की यह पहल न केवल आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में मील का पत्थर है बल्कि पूरे देश के लिए एक प्रेरणा भी है.

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads