गाड़ी और हॉर्न की तेज आवाज से बहरेपन का खतरा
देश के साथ साथ छत्तीसगढ़ में भी गाड़ियों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. दुनिया दिन-ब-दिन आधुनिकता की ओर बढ़ती जा रही है. जिस स्पीड से विकास हो रहा है, उसी स्पीड से प्रदूषण भी बढ़ते जा रहा है. इसमें से सबसे घातक नॉइस पॉल्यूशन है. शहर में गाड़ियों की लगी कतार और संख्या मुख्य कारण है. राजधानी रायपुर में गाड़ियों की संख्या लगातार तेजी से बढ़ रही है. चौक-चौराहों पर जाम और लगातार बजते हॉर्न की वजह से लोगों के कानों पर बुरा असर पड़ रहा है. रोजाना तेज आवाजें सुनने वाले लोग धीरे-धीरे सुनने की क्षमता खो रहे हैं. जिले में कुल 18 लाख 30 हजार 80 वाहन मौजूद हैं, जिसके कारण शोर का स्तर लगातार बढ़ रहा है. इंसान की सेहत पर ट्रैफिक से होने वाला शोर निरंतर हमला करता रहता है। आते-जाते वाहन, लगातार हॉर्न का बजना, ओवरलोडेड वाहन और तेज म्यूजिक की आवाज न सिर्फ नियमित रूप से आने-जाने वालों की सेहत के लिए नुकसानदायक हैं, बल्कि उनके लिए भी खतरनाक है, जिनके घर इन व्यस्त सड़कों के आसपास हैं या जो इनके नजदीक काम करते हैं। एक अध्ययन से पता चला है कि यातायात से निकलने वाले शोर के कारण उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, स्ट्रोक, हार्ट फेलियर, डायबिटीज, डिप्रेशन, याद्दाश्त में कमी, बच्चों में नींद न आने की समस्या के साथ-साथ हाइपरएक्टिविटी की समस्या भी देखी जाती है। शोर-शराबे से होने वाले हृदय रोग को बढ़ाने वाले अंडरलाइंग मेकैनिज्म के रिव्यू के अनुसार, ट्रैफिक और विमान से होने वाले पर्यावरण शोर शरीर को कोशिकीय स्तर (cellular level) पर प्रभावित करते हैं, जिससे हृदय रोग के होने का खतरा बढ़ जाता है। इतना ही नहीं ट्रैफिक के शोर से बड़ों की तुलना में बच्चों में सीखने-समझने की क्षमता के साथ ही शॉर्ट-टर्म मेमोरी, पढ़ने-लिखने की क्षमता भी प्रभावित होती है। जो बच्चे ट्रैफिक से होने वाले शोरगुल के संपर्क में अधिक रहते हैं, उनमें व्यवहार से संबंधित समस्याएं, जैसे हाइपरएक्टिविटी भी काफी हद तक देखी जा सकती है।
भारत में गाड़ियों का शोर अब आम समस्या बन चुका है. लोग बिना जरूरत लगातार हॉर्न बजाते हैं, सिग्नल ग्रीन होते ही हॉर्न बजना नहीं रुकता है. लोगों में ट्रैफिक डिसिप्लिन नहीं होने की वजह से इस तरह की समस्या बनी हुई है. इसका सबसे ज्यादा असर चौक चौराहो पर जिनकी दुकान होती हैं. लंबे समय तक शोर झेलने के बाद लोग बहरेपन के शिकार भी हो सकते हैं.
ENT विशेषज्ञ डॉ. गुप्ता बताते हैं कि ट्रैफिक वाले क्षेत्रों में शोर 110 डेसीबल तक पहुंच जाता है. इससे सबसे ज्यादा प्रभावित ट्रैफिक पुलिस, रेहड़ी वाले, सड़क किनारे दुकानदार होते हैं. शुरुआत में मरीज को पता नहीं चलता, लेकिन शांत जगह पर कानों में सीटी या सनसनाहट महसूस होने लगती है. धीरे-धीरे व्यक्ति को हाई फ्रीक्वेंसी साउंड सुनाई देना कम हो जाता है. कई बार लोग आवाज तो सुनते हैं, पर शब्दों को समझ नहीं पाते और गलत उच्चारण करने लगते हैं.
क्या कहता है कानून
मोटर वाहन अधिनियम के तहत प्रेशर हॉर्न या अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों का उपयोग करना अपराध है. नियमों के अनुसार, 10 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. परिवहन विभाग ऐसे वाहनों का चालान कर सकता है और जरूरत पड़ने पर हॉर्न जब्त या हटाने का भी अधिकार रखता है.
जन-जागरूकता ही समाधान
ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण केवल प्रशासनिक कार्रवाई से संभव नहीं है. जन जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना भी जरूरी है. यदि लोग स्वयं इस समस्या की गंभीरता समझें और नियमों का पालन करें, तो इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है. जब तक जनता और प्रशासन मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक ध्वनि प्रदूषण की यह समस्या देश में विकराल रूप धारण करती रहेगी.
सड़क पर चलने वाली गाड़ियों से ध्वनि प्रदूषण
शहर में जब कई गाड़ियां एक साथ चलती हैं, तो गाड़ी के इंजन और हॉर्न से निकलने वाला शोर लोगों को बीमार करता है. ध्वनि से पर्यावरण पर भी काफी बुरा असर पड़ता है. इसके साथ साथ गाड़ी चलाने वाले लोग भी मस्तिष्क और हृदय पर भी गंभीर असर होता है. ध्वनि प्रदूषण से लोगों में चिड़चिड़ापन बढ़ता है. हृदय कमजोर होता है, जिससे हार्ट अटैक तक की बीमारियां लोगों के शरीर में पनपती है.
बहुत तेज ध्वनि कान के पर्दे को पहुंचाता है नुकसान
तेज साउंड के कारण कान के अंदर के हेयर सेल्स पूरी तरह खत्म हो जाते हैं. कान से सुनाई देना बंद हो जाता है. तेज ध्वनि से दिल की धड़कन कम हो जाती है. ब्लड प्रेशर की शिकायत हो सकती है. हालांकि रिपोर्ट में यह पता चला है कि बहुत अधिक शोरगुल मानव का खून गाढ़ा कर सकता है. हार्ट अटैक का खतरा बढ़ जाता है. खून का दबाव बढ़ सकता है, जिसके कारण हाई ब्लड प्रेशर की शिकायत भी हो सकती है.
हॉर्न से होने वाली परेशानी के लिए बचाव के तरीके
अगर कोई व्यक्ति लंबे समय तक तेज हॉर्न या मशीनरी की आवाज सुनता है, तो उसकी सुनने की क्षमता हमेशा के लिए बंद भी हो सकती है. जब कई लोग एक साथ बात करते हैं, तो मरीज को समझ नहीं आता कि कौन क्या कह रहा है. डॉक्टरों के अनुसार ऐसे मामले में हर हफ्ते 5 से 10 मरीज अस्पताल पहुंच रहे हैं.
कैसे बचें इस शोर से?
ज्यादा शोर वाले इलाकों से दूर रहें
बेवजह हॉर्न बजाने से बचें
ट्रैफिक या औद्योगिक क्षेत्र में काम करने पर ईयर प्लग / ईयर मफ लगाएं
लंबे समय तक तीखी आवाज में न रहें
