हलषष्ठी: संतान की लंबी उम्र के लिए माताओं ने रखा निर्जला व्रत
संतान की दीर्घायु और नि:संतान महिलाओं ने संतान प्राप्ति के लिए गुरुवार को हलषष्ठी का व्रत रखा. जिसे ललही और कर्मछत्वक नाम से भी जाना जाता है. महिलाएं एक दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू कर देती हैं. गुरुवार को सुबह तैयार होकर दोपहर में पूजा अर्चना की गई, महिलाएं इस दिन निर्जला व्रत रखती हैं. खासतौर पर इस पर्व में ऐसे किसी भी खाद्य सामग्रियों का उपयोग नहीं किया जाता. जिसे उगाने या पैदा करने के लिए हल का इस्तेमाल किया गया हो. इसी तरह दूध, दही और घी भी गाय की जगह भैंस का इस्तेमाल किया जाता है. रायपुर सहित पुरे छत्तीसगढ़ के अलग-अलग क्षेत्र में हजारों की तादाद में महिलाओं ने इस पर्व को मनाया. शहर के चंगोराभाठा सहित अनेक स्थानों में महिलाओं ने एकत्र होकर पूजा अर्चना की.
शिव परिवार को समर्पित है पर्व
विशेषतौर पर स्त्रियां अपने संतान की लंबी आयु और अच्छे स्वास्थ्य की कामना से करती है. यह व्रत भगवान गणेश, बलराम और गौरी को अर्थात भगवान शंकर के परिवार को समर्पित होता है. इसमें महिलाएं षष्ठी मैया की पूजा करती हैं. इस दिन जुते हुए खेत में पैदा अन्न और सब्जियों का प्रयोग नहीं किया जाता है, पूजा के बाद तिन्नी का चावल, भैंस की दही, दूध, घी और साग का प्रयोग होता है.
यह भादो मास के छठवीं तिथि को मनाया जाता है. आज षष्ठी है. इसके कारण ही आज हम यह पर्व को मना रहे हैं. इसमें 6 प्रकार की भाजी लगती है. यह व्रत और पर्व खासतौर छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक मनाया जाता है. यहां के रीति रिवाज में इस पर्व की अधिक मान्यता है. हम भी कई वर्षों से इस पर्व को मनाते आ रहे हैं. इसमें गाय के बजाए भैंस के दूध, दही और घी का इस्तेमाल होता है. सभी महिला एकत्र होकर सुबह से ही तैयारी में लग जाती हैं. पूजा करने के बाद पसर चावल( जो हल से जुता हुआ नहीं) को ग्रहण करके ही व्रत को समाप्त किया जाता है. इस व्रत में इस्तेमाल की जाने वाली कोई भी खाद्य सामग्री ऐसी नहीं होती जिसे उगाने में हल का उपयोग किया गया हो. इससे विशेष पूजा अर्चना की जाती है. यह पर्व संतान की दीर्घायु के लिए रखा जाता है. इसलिए महिलाएं इसमें निर्जला व्रत रखती हैं- भारती देवांगन चंगोराभाठा रायपुर