नक्सलगढ़ में मना आजादी का जश्न, नक्सल क्षेत्रों में डर छोड़ ग्रामीणों ने लहराया तिरंगा, ग्रामीण बोले अब मिली असली आजादी - CGKIRAN

नक्सलगढ़ में मना आजादी का जश्न, नक्सल क्षेत्रों में डर छोड़ ग्रामीणों ने लहराया तिरंगा, ग्रामीण बोले अब मिली असली आजादी



 पूरे देशभर में 79वां स्वतंत्रता दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भी कई रंगारंग कार्यक्रम हो रहे हैं। इस दौरान प्रदेश के नक्सल प्रभावित इलाकों में भी देशभक्ति का जश्न देखने को मिला। छत्तीसगढ़ का बस्तर जिसे कभी नक्सलगढ़ के तौर पर जाना जाता था. पर अब इस बस्तर से नक्सलवाद की समाप्ति धीरे धीरे शुरू हो गई है. शुक्रवार को स्वतंत्रता दिवस के दिन बस्तर के 29 गांवों में पहली बार तिरंगा फहराया गया है. यहां पहली बार जश्न ए आजादी का पर्व देखने को मिला.आजादी के 78 साल बाद भी यहां के लोगों के लिए स्वतंत्रता दिवस का मतलब सिर्फ एक नाम था. क्योंकि नक्सली दहशत के कारण यहां तिरंगे की जगह काले झंडे को सलामी दी जाती थी. लेकिन आजादी का 79 वां साल यानी 15 अगस्त 2025 इस गांव के इतिहास में एक नए अध्याय के रूप में दर्ज हो गया. पहली बार यहां शान से तिरंगा लहराया. गांव की फिजाओं में दहशत और डर नहीं बल्कि राष्ट्रगान के साथ देश भक्ति की गूंज सुनाई दी. भारी संख्या में 14 गांव के लोग इस बार आजादी के पर्व में शामिल हुए. हाथ में तिरंगा और दिल में देश भक्ति का जज्बा लिए इन लोगों ने नक्सलवाद को करारा जवाब दिया. 

इसी के साथ ही नक्सल प्रभावित अबूझमाड़ के ग्राम मोहंदी में इतिहास रचते हुए पहली बार स्वतंत्रता दिवस का भव्य आयोजन हुआ. 53वीं वाहिनी भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के जवानों ने देशभक्ति और उत्साह से सराबोर माहौल में 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाया. वर्षों तक नक्सलियों के भय के साए में डूबे इस क्षेत्र में ग्रामीण आज तक स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व से वंचित थे, लेकिन विगत वर्ष के अंतिम महीनों में पुलिस सुरक्षा और जनसुविधा कैंप की स्थापना ने न केवल सुरक्षा का भरोसा लौटाया बल्कि विकास की नई राह भी खोली. इस सकारात्मक बदलाव के चलते आज ग्रामीणों, स्कूल बच्चों और जवानों ने एक साथ तिरंगे को सलामी दी और देश की एकता और अखंडता बनाए रखने का संकल्प लिया.

अबूझमाड़ के दुर्गम जंगलों में बसा ग्राम कुतुल में लंबे समय तक नक्सली प्रभाव रहा है. यहां पुलिस की पहुंच मुश्किल थी और विकास कार्य नाम मात्र के थे. नक्सलवाद के दबाव में स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर तिरंगा फहराने का मतलब था जान को जोखिम में डालना. 7 फरवरी 2025 को यहां पुलिस कैंप स्थापित किया गया . इसके साथ ही बदलाव की शुरुआत हुई. गांव को पक्की सड़क से जिला मुख्यालय से जोड़ा गया, स्वास्थ्य, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं पर विशेष ध्यान दिया गया. सबसे अहम ये है कि इसी दौरान क्षेत्र के कुख्यात नक्सली ‘अरब’ ने आत्मसमर्पण कर मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया. उसके बाद कई अन्य नक्सलियों ने भी पुलिस के सामने हथियार डाल दिए, जिससे पूरे इलाके में शांति का माहौल बनने लगा.

अबूझमाड़ के कई गांवों में तिरंगे का नया सवेरा

 कुतुल के साथ ही इस वर्ष अबूझमाड़ के 12 ऐसे गांव हैं जहां पहली बार झंडा फहराया गया है. मोहंदी, कच्चापाल, इरकभट्टी, कोड़लियर, पद्मकोट, होरादी, बेड़माकोटि, नेलांगुर, गारपा, पांगुड और रायनार में भी पहली बार ध्वजारोहण हुआ है. कैंप स्थापना के बाद से ही इन सभी इलाकों में नक्सलवाद के लंबे दबदबे के बाद राष्ट्रीय पर्वों का उत्सव मनाना संभव हुआ है. नक्सलियों की अघोषित राजधानी से तिरंगे की शान तक का यह सफर केवल कुतुल का नहीं, बल्कि पूरे अबूझमाड़ और बस्तर के लिए एक प्रेरणा है. जो ये बताती है कि जब सुरक्षा, विकास और भरोसा साथ आएं, तो सबसे गहरे अंधेरे में भी उजाले की किरण पहुंच जाती है. कुतुल में फहराता यह तिरंगा सिर्फ आजादी का प्रतीक नहीं, बल्कि उस नई सुबह का पैगाम है, जिसमें नक्सलवाद का अंत और विकास की शुरुआत दोनों नजर आते हैं.

आज का तिरंगा यहां सिर्फ एक झंडा नहीं, बल्कि विश्वास, बदलाव और उज्जवल भविष्य का प्रतीक बनकर लहरा रहा है.इन गांवों ने साबित कर दिया कि जहां कभी काला झंडा लहराता था, अब वहां की हवाओं में आजाद तिरंगा लहरा रहा है. तुमलपाड़ और पूवर्ती का यह बदलाव सिर्फ इन दो गांवों की कहानी नहीं, बल्कि पूरे बस्तर की नई सुबह का सबूत है. ये इस बात का प्रमाण है कि सबसे अंधेरे इलाकों में भी उम्मीद की रोशनी पहुंच सकती है, अगर लोग हिम्मत और एकजुटता दिखाएं.

नक्सलियों की अघोषित राजधानी से तिरंगे की शान तक का यह सफर केवल कुतुल का नहीं, बल्कि पूरे अबूझमाड़ और बस्तर के लिए एक प्रेरणा है. जो ये बताती है कि जब सुरक्षा, विकास और भरोसा साथ आएं, तो सबसे गहरे अंधेरे में भी उजाले की किरण पहुंच जाती है. कुतुल में फहराता यह तिरंगा सिर्फ आजादी का प्रतीक नहीं, बल्कि उस नई सुबह का पैगाम है, जिसमें नक्सलवाद का अंत और विकास की शुरुआत दोनों नजर आते हैं.

पहले और अब में आया बड़ा बदलाव 

 तुमलपाड़ के लोगों के मुताबिक एक समय था जब स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस पर कार्यक्रम करना नामुमकिन था. नक्सली संगठन इन आयोजनों को देशद्रोह मानते थे और धमकी देते थे. गांवों में सरकारी योजनाओं का नाम तक नहीं लिया जा सकता था. लेकिन सुरक्षा बलों की लगातार कार्रवाई, सड़क और पुल निर्माण, और युवाओं के आगे आने से हालात बदल गए. अब यहां सीआरपीएफ कैंप, स्कूल, सड़क और स्वास्थ्य केंद्र काम कर रहे हैं. पूवर्ती के एक ग्रामीण ने बताया, आज गांव में बच्चों की पढ़ाई, इलाज और सुरक्षित माहौल जो पहले सपना था, अब हकीकत है.

बच्चों की मासूम खुशियां :

 समारोह का सबसे भावुक पल तब आया, जब स्थानीय स्कूल के बच्चों ने तिरंगा लेकर मार्च पास्ट किया और “झंडा ऊंचा रहे हमारा” गीत गाया. ये नजारा देखकर कई बुजुर्गों की आंखें भर आईं. मंच पर आई एक नन्ही बच्ची ने कहा कि पहले हम डरते थे, अब हम आजादी से खेलते और पढ़ते हैं. इस मासूम वाक्य में बदलाव की पूरी कहानी समा गई.

स्वतंत्रता दिवस का ऐतिहासिक उत्सव

 15 अगस्त की सुबह कुतुल में बच्चों ने अपने हाथों में तिरंगा थामा.इसके बाद आश्रम शाला से पुलिस कैंप तक प्रभात फेरी निकाली. नन्हें कदमों के साथ राष्ट्रप्रेम के गीतों की धुन ये संदेश दे रही थीं कि अब अबूझमाड़ बदल रहा है. कैंप परिसर में आईटीबीपी के कमांडेंट ने ध्वजारोहण किया और जवानों ने सलामी दी. राष्ट्रगान की गूंज से पूरा इलाका गूंज उठा. बारिश की बूंदों के बीच पारंपरिक आदिवासी परिधान पहने पुरुष और महिलाएं मांदरी नृत्य करते हुए उत्सव का हिस्सा बने. गांव के शिक्षक सुखचंद मंडावी ने कहा कि असल मायनों में हमें आजादी 6 माह पहले मिली, जब पुलिस कैंप यहां पहुंचा और शांति स्थापित हुई. इसके बाद ही विकास कार्य शुरू हुए.ग्रामीणों ने भी माना कि पहले नक्सलवाद के डर से तिरंगा फहराना नामुमकिन था, लेकिन अब माहौल पूरी तरह बदल चुका है.

सुरक्षाबलों की मौजूदगी से निडरता

कभी नक्सलवाद से घिरे इन इलाकों में स्वतंत्रता दिवस पर सन्नाटा और मौत का साया पसरा रहता था। बंदूक और बारूद के शोर से बच्चों से लेकर बच्चे बुजुर्ग डरे रहते थे। अब सुरक्षाबलों के कैंप बनने से लोगों में हिम्मत आई है। ग्रामीणों और बच्चों ने सुरक्षा बलों के साथ निडर होकर तिरंगा यात्रा निकाली। 'भारत माता की जय' और 'वंदे मातरम्' के नारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठा। बच्चों ने जोश के साथ देशभक्ति गीत गाए और नारे लगाए।

बस्तर के सुदूर में बसे 14 गांवों में पहली बार आजादी के बाद स्वतंत्रता दिवस पर पहली बार तिरंगा झंडा फहराया है. ये गांव बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा में स्थित है. इसके अलावा 15 अन्य गांवों में भी पहली बार स्वतंत्रता दिवस मनाया गया. जहां इस साल गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान पहली बार तिरंगा फहराया गया था. कुल मिलाकर 29 गांवों में तिरंगा फहराया गया- सुंदरराज पी, आईजी, बस्तर

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads