छत्तीसगढ़ के इस गांव में 150 सालों से नहीं खेली होली
होली रंगों का त्योहार है. भारत के हर शहर, कस्बे और गांव में रंग गुलाल उड़ाकर लोग बुरा ना मानो होली है, यह कहकर नाच गाकर होली का त्यौहार मनाते हैं. हर कोई खुशी से सराबोर होता है, लेकिन कोरबा जिले में एक गांव ऐसा है, जहां होली का रंग नहीं पड़ता. कोरबा के खरहरी गांव की प्रथा आज के दौर में लोगों को अचरज में डाल देती है. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि इस गांव में पिछले 150 सालों से होली नहीं मनाई गई है. यहां न रंग भरी पिचकारी चलती है, न रंग-बिरंगे गुलाल उड़ते हैं. इस गांव की होली फीकी रहती है. ग्रामीणों की मानें तो पिछले डेढ़ सौ सालो से यहां होली मनाई ही नहीं गई. पीढ़ी दर पीढ़ी लोग अपने पूर्वजों द्वारा बताई गई बातों का अनुसरण कर रहे हैं. इसके पीछे का कारण भी बेहद अनोखा है.
गांव में 150 साल से नहीं मनाई गई होली
कोरबा चांपा रोड पर पड़ने वाले इस गांव की दूरी जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर है. इस गांव का नाम खरहरी है. खरहरी के लोग आज भी एक परंपरा का निर्वहन करते आ रहे हैं, जिसे अंधविश्वास से भी जोड़कर देखा जाता है. यह परंपरा इन गांव वालों को विरासत में मिली है. गांव की साक्षरता दर 76 प्रतिशत है. सालों से ग्रामीण बुजुर्गों की बातों का आंख मूंदकर पालन करते आ रहे हैं. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि उनके जन्म से बहुत पहले ही इस गांव में होली न मनाने की परंपरा शुरू हो गई थी. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि लगभग 150 साल पहले गांव में होली के दिन आग लग गई थी, जिससे काफी नुकसान हुआ था. गांव के लोगों का मानना है कि जैसे ही बैगा ने होलिका दहन की, उसके घर में आग लग गई. आसमान से गिरे अंगारे बैगा के घर पर गिरे और देखते ही देखते आग पूरे गांव में फैल गई. उन्हें यह डर भी है कि यदि वो गांव में होली खेलेंगे तो नुकसान हो सकता है. ये मान्यताएं निश्चित रूप से होली के त्योहार को फीका करती हैं. लेकिन विरासत में मिली परंपरा को हम आगे बढ़ा रहे हैं. वर्षों पहले जो नियम बुजुर्गों ने बनाए, उनका हम पालन कर रहे हैं. गांव में रहने वाली महिलाएं बताती हैं कि शादी से पहले वे होली मनाती थीं, लेकिन जब से वो खरहरी गांव आई हैं, उन्होंने होली का पूरी तरह से त्याग कर दिया है.