तुलसी विवाह संग शुरू होंगे सभी मंगल कार्य
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि बहुत ही महत्वपूर्ण है. कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को प्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहा जाता है. आज के दिन भगवान विष्णु चार माह के लंबे समय के बाद योग निद्रा से जागते हैं. इसके साथ ही चातुर्मास का समापन भी हो जाता है. भगवान श्री हरि विष्णु सृष्टि के संचालन का दायित्व फिर से संभाल लेते हैं. आज के दिन से विवाह, सगाई, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे सभी मांगलिक कार्य की शुरुआत हो जाती है. देवउठनी एकादशी पर्व नगर सहित समूचे अंचल में हर्षोल्लास से मनाया गया। लोगों ने इस अवसर पर तुलसी विवाह कर छोटी दीपावली मनाई। बच्चों ने दीपावली बाद फिर से जमकर आतिशबाजी का आनंद लिया। विदित हो कि देवउठनी एकादशी को हिन्दू धर्म के अनुसार साल की सबसे बड़ी एकादशी माना जाता है। गन्ने के साथ ही साथ तुलसी विवाह की पूजा में चढ़ाए जाने वाली सीजन की प्रमुख पूजन सामग्री नई मूंगफली, चना भाजी, अमरूद, बेर फल, शकरकंद समेत ऑवला अदि की भी जमकर बिक्री हुई। लोगों ने पारंपरिक रूप से गन्ना का मंडप बनाकर तुलसी माता के साथ सालिकराम का विवाह करा कर पूजन किया। शाम को घरों में लोगों ने छोटी दीपावली के लिए दीए जलाए। वहीं लोगों ने आतिशबाजी कर एक- दूसरे को तुलसी विवाह की शुभकामनाएं दी।
देवउठनी एकादशी का महत्वः
धार्मिक मान्यता के अनुसार देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु आराम करने के लिए चले जाते हैं. 4 माह के बाद विष्णु भगवान देवउत्थान एकादशी तिथि को जगते हैं और जगत के कार्य को देखते हैं. मान्यता है कि देवशयनी एकादशी से देवउत्थान एकादशी तक शुभ कार्य करने से भगवान विष्णु नाराज हो जाते हैं. 12 नवंबर को देवउत्थान एकादशी है. इस तिथि के बाद सभी शुभ प्रकार के कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. एकादशी के बाद शादी-विवाह जैसे रुके हुए सभी कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. शादी-विवाह की खरीदारी के कारण बाजार में भी रौनक आने लगती है.
इसलिए होता है भगवान विष्णु का तुलसी से विवाह
आज साल की सबसे बड़ी एकादशी है। ये दिन शादियों के लिए बेहद ही शुभ माना जाता है] क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु और तुलसी का विवाह होता है। लेकिन तुलसी का विवाह भगवान विष्णु की किसी मूर्ति के साथ नहीं बल्कि श्राप के कारण पत्थर बन चुके शालिग्राम से होता है। ये भगवान विष्णु का कोई अवतार नहीं है, बल्कि श्राप है जिसके कारण उन्हें शालिग्राम का रूप मिला। यह श्राप इतना शक्तिशाली था जिसने भगवान विष्णु को पत्थर में बदल दिया। यह उन्हें स्वीकार करना पड़ा क्योंकि यह उनकी सबसे प्रिय भक्त वृंदा ने उन्हें दिया था।
