एक साथ चुनाव कराने की जरूरत क्यों - CGKIRAN

एक साथ चुनाव कराने की जरूरत क्यों


केंद्र सरकार ने 2 सितंबर 2023 को पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में वन नेशन वन इलेक्शन का ड्राफ्ट तैयार करने के लिए आठ सदस्यीय समिति बनाई थी. जिसमें पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के साथ गृह मंत्री अमित शाह, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ कुभाष कश्यप और पूर्व मुख्य सतर्कता आयुक्त संजय कोठारी शामिल थे. समिति ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को 8,626 पन्नों की रिपोर्ट सौंपी थी.

कोविंद समिति ने सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक करने का सुझाव दिया था. अगर 2029 तक 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होता है तो कई राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म करना पड़ेगा, जबकि कुछ राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है.

फिलहाल भारत में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कार्यकाल पूरा होने के हिसाब से अलग-अलग समय पर कराए जाते हैं. 'एक राष्ट्र एक चुनाव' लागू होने से लोकसभा के साथ सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे. मतदाता एक ही दिन सांसद और विधायक दोनों को चुनने के लिए वोट करेंगे. इससे देश में पांच साल में सिर्फ बार चुनाव कराने की जरूरत पड़ेगा.

भारत की आजादी के बाद साल 1967 तक लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे. 1968 और 1969 में कई राज्य विधानसभाएं कार्यकाल पूरा होने से पहले ही भंग कर दी गई थीं और 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई थी. इसके बाद एक साथ चुनाव कराने की परंपरा टूट गई.

एक साथ चुनाव कराने का विचार नया नहीं है. देश के आजाद होने के बाद भी एक साथ चुनाव होते थे. लेकिन 1967 में कुछ विधानसभाओं के समयपूर्व भंग किए जाने से यह परंपरा टूट गई. वो कहते हैं कि चुनाव आयोग ने 1983 में इसका प्रस्ताव दिया था. एक बार चुनाव हो जाने से सरकारों को पांच साल तक सुशासन पर जोर देने का मौका मिलेगा, क्योंकि बार-बार चुनाव होने से सरकारें इलेक्शन मूड में रहती हैं और इस कारण सुशासन का मुद्दा पीछा छूट जाता है. चुनाव की लागत भी कम हो जाएगी. साथ ही वोटिंग पैटर्न में भी बदलाव देखने को मिलेंगे. इसके अलावा 'एक राष्ट्र एक चुनाव' होने से राजनीतिक भ्रष्टाचार भी कम होने की उम्मीद है.

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