वन नेशन वन इलेक्शन: जानें कितना मुमकिन है एक साथ चुनाव? - CGKIRAN

वन नेशन वन इलेक्शन: जानें कितना मुमकिन है एक साथ चुनाव?


केंद्र सरकार ने 'वन नेशन वन इलेक्शन' पर कोविंद पैनल की सिफारिशों को लागू करने के लिए एक कार्यान्वयन समूह बनाने का फैसला लिया है। इस योजना के तहत इसे दो चरणों में लागू किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. हालांकि, इसे लागू करना इतना आसान नहीं होगा. इसके लिए बहुत सारे पैंतरेबाजी की जरूरत होगी. 

 केंद्रीय मंत्रिमंडल ने चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए ‘वन नेशन, वन इलेक्शन' पर एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है. इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय कैबिनेट ने बुधवार को 'वन नेशन वन इलेक्शन' प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. मोदी कैबिनेट ने 'वन नेशन-वन इलेक्शन' के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. मगर, लोगों के जेहन में कुछ सवाल हैं. इसमें पहला सवाल यही है कि देश में किस तरह से 'वन नेशन-वन इलेक्शन' लागू होगा?

बता दें कि चुनाव सुधारों के तहत एक साथ चुनाव कराने का मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के चुनाव घोषणापत्र में रहा है. इससे पहले रामनाथ कोविंद समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की, जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं के रेटिफिकेशन की जरूरत नहीं होगी. हालांकि, इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता पड़ेगी, जिन्हें संसद द्वारा पारित करना होगा.

पहला संविधान संशोधन विधेयक

कोविंद पैनल की सिफारिश के अनुसार, पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद - 82ए डालेगा। अनुच्छेद 82ए उस प्रक्रिया को स्थापित करेगा जिसके जरिए देश एक साथ चुनाव की ओर बढ़ेगा।

दूसरा संविधान संशोधन विधेयक

दूसरा विधेयक संविधान में अनुच्छेद 324ए पेश करेगा। यह केंद्र सरकार को लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ नगर पालिकाओं और पंचायतों के समानांतर चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार देगा।

कैसे होंगे एक साथ चुनाव?

इन सभी चुनावों को एक ही समय कराने के लिए एक बार अस्थायी उपाय आवश्यक होगा. सरकार को यह तय करना होगा कि साथ- साथ चुनाव कराने की व्यवस्था कब होगी. आम चुनावों के बाद जब लोकसभा का गठन किया जाता है तो राष्ट्रपति सदन की पहली बैठक की तारीख को अधिसूचना जारी करके प्रावधानों को लागू करेंगे. इस तारीख को नियत तिथि कहा जाएगा.

एक बार जब प्रावधानों को लागू कर दिया जाता है तो नियत तिथि के बाद किसी भी चुनाव में गठित सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर (चाहे किसी भी समय सभा का गठन किया गया हो) समाप्त हो जाएगा. इस तरह लोकसभा और राज्य विधानसभाएं कार्यकाल के अंत में साथ-साथ चुनाव के लिए तैयार हो जाएंगी. इसके बाद लोकसभा और राज्य विधान सभाओं के कार्यकाल में प्रस्तावित संशोधन यह सुनिश्चित करेगा कि तालमेल बना रहे.

अतीत में हो चुके हैं एक साथ चुनाव

भारत में 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे. 1967 में यह सिस्टम अपने चरम पर था, जब 20 राज्यों में चुनाव संसद के निचले सदन के राष्ट्रीय चुनावों के साथ हुए थे. 1977 में यह संख्या 17 रह गई, जबकि 1980 और 1985 में 14 राज्यों में एक साथ चुनाव हुए थे.इसके बाद, मध्यावधि चुनाव सहित विभिन्न कारणों से चुनाव अलग-अलग होने लगे.

विभिन्न राज्य विधानसभाओं के अलग-अलग कार्यकाल के चलते सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए बहुत सारे पैंतरेबाजी की जरूरत होगी, जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना और कुछ को डिले करना शामिल है.

विधानसभाओं की चुनावी स्थिति

इस साल मई-जून में लोकसभा चुनाव हुए, जबकि ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी संसदीय चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए. वहीं, जम्मू-कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महाराष्ट्र और झारखंड में भी इस साल के अंत में चुनाव होने हैं.

दिल्ली और बिहार में भी 2025 में चुनाव होने हैं. असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल 2026 में खत्म होगा, जबकि गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं का कार्यकाल 2027 में खत्म होगा.

इसी तरह हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और तेलंगाना में राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा. वर्तमान लोकसभा और इस वर्ष एक साथ चुनाव वाले राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा.

आगे क्या होगा?

वन नेशन, वन इलेक्शन पहल की सफलता संसद द्वारा दो संविधान संशोधन विधेयकों को पारित करने पर निर्भर करती है, जिसके लिए विभिन्न राजनीतिक दलों से व्यापक समर्थन की जरूरत होगी. चूंकि भाजपा के पास लोकसभा में अपने दम पर बहुमत नहीं है, इसलिए उसे न केवल एनडीए सहयोगियों बल्कि विपक्षी दलों की भी जरूरत पड़ेगी.

जेडीयू का समर्थन

एनडीए के प्रमुख घटक जनता दल यूनाइटेड (JDU) ने केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के उपाय से देश को बार-बार चुनाव से छुटकारा मिलेगा, सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और नीतिगत निरंतरता आएगी. जेडीयू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा कि 'एक राष्ट्र, एक चुनाव के दीर्घकालिक परिणाम होंगे और देश को व्यापक लाभ होगा.

कांग्रेस ने क्या कहा?

वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है और आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी चुनाव नजदीक आने पर वास्तविक मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए ऐसी बातें करती है. उन्होंने कहा कि यह संविधान के खिलाफ है, यह लोकतंत्र के प्रतिकूल है और यह फेडरलिज्म के विरूद्ध है और देश इसे कभी स्वीकार नहीं करेगा.

अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172 में संशोधन

यह सुनिश्चित करने के लिए कि एक साथ चुनाव करने संविधान के साथ टकराव न हो, कोविंद समिति ने अनुच्छेद 83 में संशोधन का प्रस्ताव दिया है, जो लोकसभा के कार्यकाल को नियंत्रित करता है और अनुच्छेद 172, जो राज्य विधानसभाओं के कार्यकाल को कवर करता है.

समिति ने सभी चुनावों को समकालिक बनाने के लिए एक बार केट्रांजिटरी उपाय का सुझाव दिया और प्रस्तावित किया कि जब आम चुनावों के बाद लोकसभा का गठन किया जाता है, तो राष्ट्रपति उसी तिथि को अधिसूचना द्वारा ट्रांजिशन के प्रावधानों को लागू करेंगे, जिस दिन पहली बैठक हुई थी. इस तिथि को अपॉइंटेड डेट कहा जाएगा.

इस बात पर ध्यान दिए बिना कि किसी राज्य विधानसभा ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है या नहीं, प्रस्तावित अनुच्छेद 82ए के तहत एक खंड में कहा गया है कि 'अपॉइंटेड डेट' के बाद आयोजित किसी भी आम चुनाव में गठित सभी राज्य विधानसभाएं लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति पर समाप्त हो जाएंगी.

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