बस्तर में हरेली तिहार का एक अलग ही रंग, मिट्टी से झलकती है खुशियाँ, खेत के कीचड़ में खेलने की परंपरा - CGKIRAN

बस्तर में हरेली तिहार का एक अलग ही रंग, मिट्टी से झलकती है खुशियाँ, खेत के कीचड़ में खेलने की परंपरा


खेती का काम पूरा होने पर खेत में मिट्टी एक दूसरे को लगाकर खुशियां मनाई जाती है. छत्तीसगढ़ का बस्तर क्षेत्र आदिवासी संस्कृति, परंपरा और रिति-रिवाज के लिए देश ही नहीं पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. ऐसा ही एक त्योहार मनाया गया अमुस तिहार. बस्तर में हरेली तिहार को अमुस तिहार कहते हैं, यहां खेत के कीचड़ में खेलने की परंपरा है. इसमें खेती किसानी करने के बाद लोग खेत की दलदल या कीचड़ में खेलते दिखते हैं. देखने में ये होली जैसा लग सकता है लेकिन कीचड़ से खेलने का दिन या पल कई महीनों की मेहनत के बाद आता है. दरअसल खेत की मिट्टी में खेलना एक रिति-रिवाज है. हरेली के तिहार को ही वहां अमुस तिहार कहा जाता है. इसे खेलने के लिए निमंत्रण भी दिया जाता है. दरअसल, खेती करना आसान नहीं है. पूरी प्रक्रिया में खुशी और गम दोनों ही देखने पड़ते हैं. मानसून के आते ही चेहरे पर खुशी छा जाती है. फसल लगाने की प्रकिया शुरू होती है. समय पर बारिश ना हो या ज्यादा भी हो तो टेंशन हो जाती है. ऐसे में जब पूरी प्रक्रिया हो जाती है तो किसान खेत की मिट्टी से खेलते हैं.

खेतों में औषधि डंगाल लगाने का भी रिवाज 


खेतों में औषधि डंगाल लगाने का भी रिवाज: बस्तर में एक और रिवाज है यहां तेंदूपत्ता, भेलवां पत्ता या औषधि युक्त पत्तों के डंगाल को खेत में लगाया जाता है. इसके पीछे भी वजह है. दरअसल, पुराने जमाने में रासायनिक खाद नहीं होते थे. अपने फसलों पर कीट न लगे इसीलिए औषधि युक्त पत्तों को खेतों में लगाया जाता था. जिससे कीट फसलों में नहीं लगते थे. यदि खेत में पाए भी जाते थे तो वे नष्ट हो जाते थे. यही अब परंपरा बन गई.

तमाम चुनौतियों को पार कर खेतों में फसल लगाने के बाद इस तरह से खुशी मनाना जाहिर भी है. मिट्टी से लोग सराबोर दिखते हैं. ऐसे ही अनोखे रीति रिवाजों और परंपराओं के कारण बस्तर की अनोखी पहचान है.

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