महिला समूह की महिलाओं ने सफलता की भरी उड़ान, ग्रामीण महिलाओं ने खड़ा किया व्यवसाय - CGKIRAN

महिला समूह की महिलाओं ने सफलता की भरी उड़ान, ग्रामीण महिलाओं ने खड़ा किया व्यवसाय


कोरबा एक ट्राइबल जिला है. इस जिले को पांचवी अनुसूची में शामिल किया गया है. ज्यादातर आबादी आदिवासियों की है. जिन दो समूह की कहानी हम बता रहे हैं. इनमें कुल मिलाकर 28 महिलाएं हैं. कई महिलाएं ऐसी हैं, जो आदिवासी वर्ग से आती हैं. इन महिलाओं को सिर्फ एक बार ट्रेनिंग मिली है. कुछ को सरकारी मदद मिली है, लेकिन बड़े समूह ने कोई सरकारी मदद भी नहीं ली है. इन्होंने आरसेटी से ट्रेनिंग प्राप्त की और अपना व्यवसाय खड़ा करने के लिए लगातार प्रयास किया.ये कहानी ग्रामीण क्षेत्र की उन महिलाओं की है, जिन्हें घर की दहलीज लांघने की इजाजत नहीं थी, लेकिन अब समय बदल चुका है. जिन इलाकों में पहले पहुंच मार्ग नहीं था, वहां की महिलाओं ने अपना रास्ता खुद की इच्छा शक्ति से बनाया है. महिलाओं ने हाउस वाइफ से वर्किंग वुमन बनने तक का मुश्किल सफर तय किया है. हम बात कर रहे हैं कोरबा और करतला विकासखंड के कोथारी और आसपास के महिला समूहों की. महिलाओं ने साबुन, सर्फ, अगरबत्ती और फिनायल जैसे उत्पाद बनाकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है. इन महिलाओं ने बिना किसी सरकारी मदद से एक-एक हजार रुपए खुद से इकट्ठा करके व्यवसाय शुरु किया.आज आलम ये है कि इनके बनाए उत्पाद हाथों हाथ बिक जाते हैं. 

महिलाएं खुद करती हैं प्रमोशन और बिक्री : महिला समूह उत्पादों की बिक्री से इतनी कमाई कर लेती हैं कि अपने घर परिवार का खर्च उठा सके. राज्योत्सव का स्टाल हो या फिर दूसरे व्यापार के विकल्प. महिलाएं हर जगह पहुंचती हैं और अपने उत्पादों का प्रमोशन करती हैं. महिला समूहों के बनाए उत्पाद दुकानों में भी पहुंच रहे हैं.अन्य माध्यमों से भी महिलाएं व्यापार कर रही हैं. वर्तमान स्थिति ये है कि इनका कोई भी उत्पाद स्टॉक में नहीं है. जितने भी उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग महिलाएं करती हैं, उन सभी की बिक्री सफलतापूर्वक हो रही है गांव कोथारी की रामेश्वरी कुर्रे बताती हैं कि हमारे समूह का नाम उत्साही महिला समूह है. इसमें 10 महिलाएं जुड़ी हुई हैं. हमने साबुन, सर्फ, फिनायल डिश वॉश और हैंड वाश बनाने की ट्रेनिंग ली थी. इसके बाद से हमने गांव में ही इन उत्पादों का प्रोडक्शन शुरू कर दिया. हम ठीक डव जैसा साबुन भी बनाते हैं. जिसमें ग्लिसरीन, नारियल तेल और मिल्क एक्सट्रैक्ट का उपयोग करते हैं. इसे लोग काफी पसंद करते हैं और हाथों-हाथ खरीद लेते हैं.महिलाएं साबुन, सर्फ, अगरबत्ती जैसी चीजों की मैन्युफैक्चरर हैं.इसकी मार्केटिंग के लिए भी वह आसपास के दुकानों और समारोह में अपना स्टॉल लगाती हैं. ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं, जो कभी घर की दहलीज तक सीमित थीं, आज वह व्यवसाय कर रही है. यह केंद्र सरकार के आत्मनिर्भर भारत के स्लोगन का एक जीता जागता उदाहरण है. 

जीवन में आया बड़ा बदलाव : रामेश्वरी की माने तो जब से इस व्यवसाय से महिलाएं जुड़ी हैं. उनके जीवन में काफी बदलाव आया है. पहले घर से नहीं निकलती थी, लेकिन व्यवसाय से जुड़ने के बाद अब जिला स्तर की मीटिंग हो, प्रोडक्ट को दुकानों तक पहुंचाना हो या उनकी मार्केटिंग करनी हो. हम सभी महिलाएं इस काम को बखूबी कर रही हैं. इस काम में आगे बढ़ने की काफी संभावनाएं भी हैं. हम सभी अपने व्यवसाय को दिनों दिन बढ़ाने में लगे हुए हैं.'ये शब्द उस महिला के हैं जिसने कभी अपने घर के बाहर कदम नहीं रखा था.उसकी जिंदगी घर के आंगन और रसोई तक ही सीमित थी.गांव में जब भी जलसा होता तो कभी कभार कदम बाहर पड़ते.लेकिन समय बदला और इस बदले समय ने इस ग्रामीण महिला समेत अनेक महिलाओं की किस्मत बदल दी.छत्तीसगढ़ के आकांक्षी जिले कोरबा के वनांचल क्षेत्र की मीरा गर्व से ये बात खुशी से सभी को बता रही हैं. मीरा जैसी कई महिलाएं अब स्वरोजगार कर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं. प्रसन्न महिला स्व सहायता समूह की सदस्य मीरा देवांगन कहती है कि हमने सबसे पहले आरसेटी कोरबा से ट्रेनिंग ली थी. जहां हमें अगरबत्ती, सर्फ, साबुन, दीया वाली बाती और अन्य उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी गई. हमने कोई सरकारी मदद नहीं ली है. ट्रेनिंग प्राप्त करने के बाद हम सभी महिलाओं ने एक-एक हजार रुपए अपने घर से जमा किया. रॉ मटेरियल का इंतजाम हमने रायपुर से किया और अपने गांव में प्रोडक्ट बनाने की शुरुआत कर दी. हाल ही में दीपावली के अवसर पर मैंने अपने बेटे के लिए बाइक खरीदी है, जो इसी व्यवसाय से कमाए हुए पैसों से ली है. मीरा की माने तो सभी महिलाओं का परिवार इसी से चल रहा है. ठीक-ठाक आमदनी भी हो रही है. कोई भी प्रोडक्ट हमारे पास बचता नहीं है. सभी प्रोडक्ट बिक जाते हैं. लोग प्रोडक्ट की तारीफ भी करते हैं.सभी प्रोडक्ट गांव में ही अपने हाथों से तैयार करते हैं. कुछ प्रोडक्ट को बनाने के लिए हमने मशीन भी खरीदी है.राज्योत्सव में भी महिला समूह ने अपना स्टॉल लगाया. इनके बनाए प्रोडक्ट्स लोगों को आकर्षित कर रहे हैं. ऐसे ही एक खरीदार लक्ष्मण का कहना है कि महिलाओं ने सभी प्रोडक्ट हाथ से तैयार किए हैं, जिनके दाम भी कम हैं.

क्या होता है आरसेटी ?: 

आरसेटी का मतलब ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान है. ये संस्थान ग्रामीण युवाओं को स्वरोजगार के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण देता है. यह एक सरकारी कार्यक्रम है जो बैंकों के प्रबंधन के तहत चलाया जाता है. इसका उद्देश्य गरीबों के लिए स्वरोजगार के अवसर पैदा करना है. इस संस्थान में डेयरी, सिलाई, मोबाइल रिपेयर, ब्यूटी पार्लर और उन्नत कृषि तकनीक के कोर्स में निशुल्क ट्रेनिंग दी जाती है.

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