छत्तीसगढ़ में मिलने वाला बथुआ भाजी, विटामिन A, C, आयरन और कैल्शियम से भरपूर
छत्तीसगढ़ की पारंपरिक हरी भाजियों में बथुआ भाजी न केवल स्वाद में लाजवाब है, बल्कि आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से यह अनेक बीमारियों की रामबाण औषधि मानी जाती है.. यह भाजी आयुर्वेद में अपने क्षारीय स्वभाव और पाचन तंत्र को सुधारने वाले गुणों के लिए जानी जाती है.बथुआ भाजी विटामिन A, C, आयरन और कैल्शियम का भी अच्छा स्रोत है, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और त्वचा, आंखों व हड्डियों के लिए भी फायदेमंद है. गांवों में यह भाजी सर्दियों के मौसम में अधिक मात्रा में खाई जाती है क्योंकि यह शरीर को गर्माहट देने के साथ-साथ पोषण भी देती है. निष्कर्षतः, छत्तीसगढ़ की यह पारंपरिक भाजी केवल भोजन का हिस्सा नहीं बल्कि पूर्णतः एक प्राकृतिक औषधि है. आधुनिक जीवनशैली में जब पेट से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं, ऐसे समय में बथुआ भाजी एक सस्ता, सरल और सुलभ समाधान हो सकता है
इम्यूनिटी भी मजबूत होगी
इसके अलावा आयुर्वेद में बथुआ को कृमिनाशक (वॉर्म किलर) भाजी के रूप में जाना जाता है, जिन लोगों को आंतों में कीड़े यानी कृमि की शिकायत होती है. उन्हें बथुआ भाजी नियमित रूप से खाने की सलाह दी जाती है. यह भाजी शरीर में आंतरिक संक्रमण से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करती है.
पाइल्स का रामबाण इलाज
डॉ. सिंह के अनुसार, बथुआ भाजी विशेषकर अर्श रोग यानी बवासीर (Piles) से पीड़ित व्यक्तियों के लिए अत्यंत लाभकारी होती है. बवासीर के रोगियों को अक्सर पेट साफ न होने और मल त्याग में परेशानी का सामना करना पड़ता है. ऐसे में बथुआ भाजी का सेवन करने से पेट आसानी से साफ होता है. मल निष्कासन सरलता से होता है, जिससे रोगी को काफी राहत मिलती है. यह भाजी शरीर में जमी गंदगी को बाहर निकालने में सहायक है और प्राकृतिक तरीके से शरीर की सफाई करती है.
गैस, ऐसिडिटी के लिए औषधि
बथुआ भाजी को पारंपरिक रूप से उबालकर या उड़द की दाल के साथ पकाकर सब्जी के रूप में सेवन किया जाता है. इसका रस निकालकर पीने से भी गहरी आंतरिक सफाई होती है. यह भोजन को पचाने में मदद करता है और जिन लोगों को बार-बार गैस बनना, अपच या पेट भारीपन की शिकायत रहती है, उनके लिए भी बथुआ किसी औषधि से कम नहीं है. इसका क्षारीय स्वभाव एसिडिटी को भी नियंत्रित करता है.