नक्सलगढ़ में अब डर नहीं शिक्षा की अलख गूंजेगी
बीजापुर में जहां कभी बच्चों के हाथों में किताबों की जगह खालीपन था और हर कोने में डर की दस्तक होती थी, आज वहां नन्ही मुस्कानें पढ़ाई की नई सुबह का स्वागत कर रही हैं। नक्सल प्रभाव और पहाड़ी दुर्गमता से जूझते बीजापुर जिले के कोरचोली, तोड़का, एड्समेटा और बड़ेकाकलेड जैसे गांवों में पहली बार शिक्षा की दस्तक सुनाई दी है। बीजापुर प्रशासन ने 14 प्राथमिक और 2 माध्यमिक स्कूल खोलकर 600 से अधिक बच्चों को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ दिया है। अधिकतर जगहों पर ये स्कूल झोपड़ियों और अस्थायी शेड्स में चल रहे हैं, लेकिन बच्चों का उत्साह देखते ही बनता है। उनका चेहरा कहता है , हम पढ़ना चाहते हैं, हम आगे बढ़ना चाहते हैं। इस बदलाव की नींव ‘वेंडे स्कूल दायकाल नामक विशेष अभियान से रखी गई। कलेक्टर संबित मिश्रा के नेतृत्व में 2200 से अधिक शिक्षकों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं और वालंटियर्स ने 600 गांवों में घर-घर जाकर लगभग 9650 ऐसे बच्चों की पहचान की, जो स्कूल से बाहर थे। इसके बाद बच्चों की उम्र के अनुसार माइक्रो प्लानिंग कर चरणबद्ध तरीके से उन्हें स्कूलों से जोड़ा गया।
बीजापुर में यह पहल केवल स्कूल खोलने तक सीमित नहीं है, यह एक शांतिपूर्ण सामाजिक क्रांति है। बुद्धिजीवियों व अफसरों का मानना है कि शिक्षा से बड़ा कोई हथियार नहीं हो सकता, जो आने वाली पीढ़ियों को हिंसा से दूर रख सके। जब गांव के लोग अपने बच्चों को पढ़ने जाते देख रहे हैं, तो वे न केवल गर्वित हैं, बल्कि इस बदलाव के साझेदार भी बन गए हैं। उन्होंने प्रशासन का आभार जताते हुए कहा अब हमारे बच्चे किताबों से अपना भविष्य लिखेंगे। बच्चों को यूनिफॉर्म, किताबें और स्कूल बैग मुफ्त दिए गए हैं ताकि शिक्षा में कोई भी आर्थिक बाधा न आए। एक बच्चे की मां कहती हैं, “पहले हमारे बच्चे जंगलों में भटकते थे, अब उन्हें कलम थमाई जा रही है। ये हमारे लिए सपना सच होने जैसा है। जब प्रशासनिक इच्छाशक्ति, सामाजिक सहयोग और जनभागीदारी एकजुट होती है, तब पहाड़ भी रास्ता बन जाते हैं। ये स्कूल केवल कक्षाएं नहीं हैं, ये आशा की नई दीवारें हैं, जिनके भीतर भविष्य आकार ले रहा है।