छत्तीसगढ़ का हिडन जेम, नजर आते हैं दुर्लभ जानवर - CGKIRAN

छत्तीसगढ़ का हिडन जेम, नजर आते हैं दुर्लभ जानवर


छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ और खैरागढ़ नाम के ये दोनों गढ़ केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि अपनी समृद्ध जैव विविधता के लिए भी जाने जाते हैं. यहां के जंगलों में अनगिनत दुर्लभ और संरक्षित वन्य प्रजातियों का बसेरा है.  छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र तीनों राज्यों के सीमाओं पर खैरागढ़ और डोंगरगढ़ के घने जंगल अपने आप में एक विशाल क्षेत्र होने के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों के लिए भी खजाना है. इस विशाल और घनघोर जंगल में प्रकृति शोध और संरक्षण वेलफेयर सोसाइटी ने 4 सालों तक शोध किया गया.शोधकर्ताओं ने बताया कि यहां के जंगलों में बाघों की उपस्थिति के प्रमाण 2020 से आज तक मिल रहे हैं. बाघ के यहां स्थाई निवास के दावे भी किए जा रहे हैं. इस पर गहन अध्ययन की जरूरत है. इस इलाके की वन्यजीव संपदा जितनी अद्भुत है, उतनी ही चुनौतियों से भी घिरी हुई है.

इस शोध में पक्षियों के 290 प्रजातियां समेत कुल 35 स्तनधारी प्रजातियों की पहचान की गई है, जिसमें बाघ, तेंदुआ, भारतीय पैंगोलिन, (भालू) और  (चौसिंघा) जैसे यहां दुर्लभ पक्षी और वन्यजीव नियमित रूप से पाए गए है. ऐसे में इस क्षेत्र को पर्यटकों के दृष्टि केंद्र से डेवलप किया जा सकता है.

हाल ही में एम्बियंट साइंस नामक वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित एक शोध में यहां की अद्भुत जैव विविधता देखने को मिली है. अध्ययन के दौरान कई ऐसे रोमांचक क्षण आए जब शोधकर्ताओं ने दुर्लभ जीवों की गतिविधियों को नजदीक से देखा.

इस शोध में प्रकृति शोध और संरक्षण वेलफेयर सोसायटी के प्रतीक ठाकुर और डॉ. दानेश सिन्हा के साथ छत्तीसगढ़ के मशहूर ऑर्निथोलॉजिस्ट एएम के भरोस और पक्षीप्रेमी और वर्तमान में सीईओ जिला पंचायत कोंडागांव में पदस्थ अविनाश भोई शामिल रहे.

जंगलों का कटाव, खेती का बढ़ता दायरा और अवैध शिकार जैसी समस्याएं इन जीवों के अस्तित्व के लिए खतरा बन रही हैं. स्लॉथ बियर,पेंगोलिन (शाल खपरी),हिरण और तेंदुए जैसी प्रजातियों के साथ मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं बढ़ रही हैं.


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