आदिवासी वोटरों को लुभाने की कोशिश में मोदी- राहुल, ...कौन मारेगा बाजी ?
देश में लोकसभा का चुनाव कुछ ही दिन में होने वाला है इसके लिए राजनीतिक दलों ने कमर कस ली है। सभी दल वोटरों को लुभाने में लगे हुए है। लोकसभा चुनाव में महिलाओं के साथ-साथ आदिवासी वोटरों को भी गेम चेंजर माना जा रहा है. मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा समेत कई राज्य ऐसे हैं, जहां अच्छी खासी संख्या में आदिवासी वोटर निवास करते हैं. देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. राजनीतिक पार्टियां पूरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुकी हैं. एक तरफ बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए है तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन है. एक तरफ 400 पार का नारा है तो दूसरी ओर मोदी सरकार को हटाने का प्रण है. मोदी और भाजपा के बड़े बड़े नेता लगातार चुनाव प्रचार में लगे हुए हैं वही 400 पार के लिए पीएम मोदी ताबड़तोड़ रैली कर रहे हैं. एक-एक दिन में तीन राज्यों का दौरा कर रहे हैं. हर उस सीट पर पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जहां से एक साथ कई सीटों पर सियासी समीकरण साधा जा सके. और अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सके। वहीं, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार दौरा कर मोहब्बत की दुकान खोलने की बात कर रहे हैं. नारी न्याय गारंटी योजना को लोगों तक लेकर जा रहे है। इस बार के चुनाव में आदिवासी वोटरों को लेकर भी बीजेपी और कांग्रेस के बीच में शह मात का खेल चल रहा है.
बता दें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोमवार को छत्तीसगढ़ के घोर नक्सल क्षेत्र बस्तर में रैली के साथ-साथ आमसभा को संबोधित किये. देश में चुनाव की घोषणा होने के बाद पीएम मोदी का यह पहला छत्तीसगढ़ दौरा था. छत्तीसगढ़ में रायपुर, बिलासपुर सहित कई बड़े शहर हैं, लेकिन पीएम मोदी ने दौरे की शुरुआत आदिवासी नक्सल क्षेत्र बस्तर से की. यहां पहले चरण में चुनाव भी होना है। इसके पीछे भी पीएम मोदी का सियासी दांव है, क्योंकि छत्तीसगढ़ आदिवासी बहुल राज्य है. इसमें भी बस्तर जिले की गिनती घोर आदिवासी क्षेत्र के रूप में होती है. इसके आसपास में कोंडागांव, दंतेवाड़ा, सुकमा, बीजापुर जैसे जिले हैं. यहां भी अच्छी खासी संख्या में आदिवासी वोटर निवास करते हैं. बस्तर में रैली करने के बाद पीएम मोदी महाराष्ट्र के चंद्रपुर पहुंचे. ये इलाका भी आदिवासी बहुल इलाका है. छत्तीसगढ़ में, 29 एसटी आरक्षित सीटों में से, भाजपा ने 17 जबकि कांग्रेस ने 11 सीटें जीतीं। लेकिन 2018 में, कांग्रेस ने 25 एसटी सीटें जीतीं और भाजपा ने केवल 3. राजस्थान में, भाजपा ने 25 एसटी में से 12 सीटें जीतकर बड़ा लाभ उठाया। आरक्षित सीटें. 2018 में कांग्रेस ने तीन राज्य मुख्य रूप से आदिवासी वोटों की मदद से जीते थे। यही वजह है कि लोकसभा के चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों के बीच में आदिवासी वोटरों को साधने के लिए शह मात का खेल चल रहा है. एक तरफ राहुल गांधी आदिवासी क्षेत्रों में रैली पर रैली कर रहे है तो दूसरी ओर पीएम मोदी उनको अपना परिवार बताने से पीछे नहीं हट रहे हैं.
वहीं राहुल गांधी मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुत इलाके मंडला और शहडोल में चुनावी सभाएं कर कांग्रेस के खिसके जनाधार को वापस हासिल करने की कवायद करते नजर आए. राहुल ने मंडला में 30 मिनट और शहडोल में 32 मिनट भाषण दिया. उनका पूरा फोकस आदिवासी वोटर्स पर रहा. इस दौरान उन्होंने कहा कि आदिवासी इस देश और जमीन के पहले मालिक हैं. युवाओं को रोजगार, गरीब परिवार में एक महिला को एक लाख रुपए देने का वादा किया. कांग्रेस के चुनावी घोषणा पत्र के वादे दोहराते हुए मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा.
हाल के विधानसभा चुनावों में भाजपा की शानदार जीत का श्रेय जनजातीय क्षेत्रों के लिए कल्याणकारी उपायों की घोषणा से लेकर आकांक्षी जिलों की पहचान करने तक, समुदाय को लुभाने की मोदी सरकार की दीर्घकालिक रणनीति को दिया गया है। विश्लेषकों का कहना है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जीत कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इन राज्यों में देश की लगभग 31 प्रतिशत आदिवासी आबादी रहती है। जबकि एमपी में 21.1 प्रतिशत एसटी आबादी है, छत्तीसगढ़ में लगभग 30.6 प्रतिशत और राजस्थान में लगभग 13.49 प्रतिशत है।
मध्य प्रदेश की 6 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित
शहडोल निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है. इस सीट पर 17,12,640 के आसपास वोटर हैं. इनमें से आधे से अधिक आदिवासी वोटर हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं. इनमें धार, खरगोन, रतलाम, शहडोल, मंडला और बैतूल लोकसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को महज एक सीट पर ही जीत मिली थी जबकि 28 सीटों में हार का सामना करना पड़ा था.
देश की 47 लोकसभा सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड, ओडिशा समेत कई और ऐसे राज्य हैं जिनकी गिनती आदिवासी बहुसंख्यक के रूप में होती है. मतलब यहां आदिवासी वोटों की संख्या ज्यादा है. देशभर में लोकसभा की 543 लोकसभा सीटों में से 47 सीटें आदिवासियों यानी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. छत्तीसगढ़ में लोकसभा की कुल 11 सीटें हैं. इनमें से 4 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. इसमें बस्तर, कांकेर, रायगढ़, सरगुजा की सीट आती है. राज्य की लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. छत्तीसगढ़ विधानसभा की 90 सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं. पीएम मोदी की ओर से छत्तीसगढ़ में अपनी चुनावी रैली की शुरुआत बस्तर से करने के पीछे संदेश साफ है कि वो आदिवासी वोटरों के सहारे छत्तीसगढ़ की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर बीजेपी की जीत चाहते हैं. पिछले साल के अंत में छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे.
विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटर निर्णायक की भूमिका में थे
इस चुनाव में आदिवासी वोटरों ने निर्णायक भूमिका निभाई. छत्तीसगढ़ की तो पूरी राजनीति ही आदिवासियों के ईद-गिर्द घूमती रहती है. इस बार के विधानसभा चुनाव में बीजेपी आदिवासी वोटरों को साधने में सफल रही, जिसका नतीजा ये हुआ है कि पार्टी 90 में से 54 सीट जीतने में सफल रही. इनमें 17 सीटें ऐसी थी जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित थी. ऐसे में बीजेपी विधानसभा चुनाव की तरह लोकसभा चुनाव में भी आदिवासी वोटर को साधने में जुटी है. यही वजह है कि पीएम मोदी ने छत्तीसगढ़ में अपने चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत के लिए बस्तर को चुना.
पीएम बोले कांग्रेस ने आदिवासियों का तिरस्कार किया
बीजेपी किस तरह से आदिवासी वोटरों को अपनी तरफ मोडऩे में लगी इसकी झलक पीएम मोदी के भाषण में भी दिख रही थी. बस्तर में पीएम मोदी ने कहा कि जनजातीय समाज हमेशा बीजेपी की प्राथमिकता रही है. उन्होंने कहा कि जिस आदिवासी समाज का कांग्रेस ने हमेशा तिरस्कार किया, उसी समाज की बेटी आज देश की राष्ट्रपति हैं. बीजेपी ने ही छत्तीसगढ़ को पहला आदिवासी मुख्यमंत्री भी दिया है. बीजेपी ने आदिवासियों के लिए अलग मंत्रालय और अलग बजट बनाया है.
मध्य प्रदेश में आदिवासी बहुल राज्य है. यहां के चुनाव में आदिवासी वोटरों की भूमिका काफी अहम रहती है. यहां की 21 फीसदी आदिवासी निवास करते हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोटरों की भूमिका काफी अहम रही. 2023 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 163 सीटों पर रिकॉर्ड जीत हासिल की थी और कांग्रेस महज 66 सीट पर सिमट गई. इन 65 सीटों में कांग्रेस के खाते में 22 सीटें ऐसी आई थी जो कि आदिवासी आरक्षित सीटें थीं. जबकि बीजेपी 24 आदिवासी आरक्षित सीटों पर जीत हासिल की थी.
शहडोल में रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासियों को इस देश में कोई हक नहीं मिलने वाला है. हमारे लिए आप आदिवासी हो और हिंदुस्तान के पहले मालिक हो. वनवासी शब्द आपके इतिहास को मिटाने वाला शब्द है. वहीं, सिवनी में जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि हिंदुस्तान में जहां भी आदिवासियों की आबादी 50 फीसदी से ज्यादा है, वहां हम छठवीं अनुसूची लागू करेंगे. आदिवासियों को उनका अधिकार देने के लिए हम पेसा कानून लाए, जमीन अधिग्रहण और ट्राइबल बिल लाए. इंदिरा गांधी जी और कांग्रेस की सरकारों ने आदिवासियों को उनकी जमीन वापस दी और उसका हक आपको दिया.
विधानसभा चुनावों में हार से बौखलाई कांग्रेस भी जंगलों और आदिवासी भूमि की रक्षा के लिए पांच गारंटी के वादे के साथ आदिवासी वोट बैंक को लुभाने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। गारंटियों में एक समर्पित वन अधिकार प्रभाग, एक अलग बजट और लंबित एफआरए दावों के निपटान के माध्यम से वन अधिकार अधिनियम के कार्यान्वयन के लिए एक राष्ट्रीय मिशन स्थापित करना शामिल है। समुदाय तक पहुंचने के लिए, कांग्रेस ने यह भी आश्वासन दिया कि मोदी सरकार द्वारा वन संरक्षण अधिनियम और भूमि अधिग्रहण अधिनियम में किए गए सभी संशोधन, जिनसे आदिवासियों को इतनी बड़ी परेशानी हुई है, वापस ले लिए जाएंगे।
2024 के लोकसभा चुनाव के पहले चरण के मतदान में अब केवल कुछ ही दिन बचे है, ऐसे में सभी दलों का फोकस आदिवासी क्षेत्रों पर है, जहां आदिवासी वोट भाजपा और कांग्रेस के बीच द्विध्रुवीय मुकाबले में निर्णायक भूमिका निभाएंगे। जबकि भाजपा मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में हाल के विधानसभा चुनावों के बाद उत्साहित है, जहां आदिवासी वोटों के एकीकरण से उसे राज्यों में जीत हासिल करने में मदद मिली, वहीं कांग्रेस अपनी किस्मत पलटने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित 47 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों के लिए लड़ाई चुनाव से पहले और बड़ी हो जाएगी क्योंकि पार्टियां अपने हिस्से की हिस्सेदारी के लिए प्रतिस्पर्धा कर रही हैं। हालाँकि, आंकड़े बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में, भाजपा ने आदिवासी वोट बैंकों में सफलतापूर्वक सेंध लगाई है, जो परंपरागत रूप से लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहे। 2009 में 13 सीटों से 2014 में 27 सीटों तक, एसटी आरक्षित सीटों पर भाजपा की संख्या 2019 में 31 हो गई। इसकी तुलना में, कांग्रेस की सीटें 2009 में 20 से घटकर 2014 में पांच सीटों पर आ गईं। 2019 में, कांग्रेस 47 आरक्षित सीटों में से केवल चार सीटें हासिल करने में सफल रही।
