आज भी प्रासंगिक हैं राजिम का लोमष ऋषि आश्रम - CGKIRAN

आज भी प्रासंगिक हैं राजिम का लोमष ऋषि आश्रम

राजिम क्षेत्र में रेत से शिवलिंग बनाकर माता सीता ने की थी पूजा अर्चना

त्रिवेणी संगम के बीच स्थित है भगवान कुलेश्वनाथ महादेव का मंदिर


छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाले पावन नगरी राजिम में भगवान वास करते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण भगवान श्री राजीव लोचन और श्री कुलेश्वर महादेव है, जिसके आशीर्वाद से हर वर्ष राजिम मेला बिना किसी रूकावट के संपन्न होता है। इसके साथ ही प्रयाग क्षेत्र में स्थित लोमष ऋषि आश्रम है। लोमष ऋषि आश्रम के संदर्भ में कई किवदंतियाँ है।

मान्यता है कि आज भी लोमष ऋषि सबसे पहले भगवान राजीव लोचन भगवान की पूजा अर्चना करते हैं। इसके कुछ साक्ष्य यहां के पुजारियों को परिलक्षित हुए। कहा जाता है कि भगवान श्री राम वन गमन के दौरान कुछ दिनों तक राजिम स्थित लोमष ऋषि के आश्रम में ठहरे थे और यहीं पर चित्रोत्पला गंगा महानदी की रेत में शिवलिंग बनाकर पूजा-आराधना की थीं। जिन्हें वर्तमान में कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है।

राजिम के कुछ बुजुर्गाे ने यहां तक दावा किया है कि सुबह नदी में कभी भी अचानक लंबे पैरो के निशान दिखाई देते हैं जो संभवतः लोमष ऋषि के ही हो सकते हैं। आज भी राजिम में लोमष ऋषि का आश्रम विद्यमान है। यहां उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्थापित हैं जिनकी नित्य पूजा अर्चना किया जाता है। यहां पर बेल के अत्यधिक पेड़ होने के कारण इसे बेलाही घाट भी कहा जाता हैं। प्राकृतिक दृष्टि से भी यह बहुत मनोहारी है यहां आने से एक प्रकार से शांति का अनुभव होता है। राजिम कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह आस्था, श्रद्धा और आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। यह आकर श्रद्धालु घंटो समय व्यतीत करता है और अपनी थकान मिटाकर अपनी गणतव्य की आगे बढ़ते हैं।

रेत से शिवलिंग बनाकर माता सीता ने की थी पूजा अर्चना

मान्यता है कि वनवास काल के दौरान भगवान श्री राम, लक्ष्मण और माता सीता राजिम में स्थित लोमष ऋषि के आश्रम में कुछ दिन व्यतीत थे। उसी दौरान माता सीता ने नदी की रेत से भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा अर्चना की थी। तभी से इस शिवलिंग को कुलेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। इस खुरदुरे शिवलिंग को माता सीता ने अपने हाथों से बनाया था, खुरदुरे निशानों को सीता जी के हस्त कमल के निशानों की संज्ञा दी जाती है।

भगवान श्री कुलेश्वनाथ को लेकर मान्यता है कि बरसात के दिनों में कितनी भी बाढ़ आ जाए। यह मंदिर डूबता नहीं है। कहा जाता है बाढ़ से घिर जाने के बाद नदी के दूसरे किनारे पर बने मामा-भांचा मंदिर को गुहार लगाते हैं कि मामा मैं डूब रहा हूं मुझे बचा लो। तब बाढ़ का पानी कुलेश्वरनाथ महादेव के चरण पखारने के बाद बाढ़ का स्तर स्वतः ही कम होने लगाता है।

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads