छत्तीसगढ़ के चुनाव में बागी पलट सकते हैं गेम, जहां विधायकों की टिकट कटी, उन्हीं इलाकों में गिरा वोटिंग परसेंटेज
छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा. हालांकि, इसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया. राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि जिन सीटों पर मतदान प्रतिशत कम हुआ है, वहां प्रत्याशियों की नाराजगी प्रमुख वजह बनकर सामने आई है,वहीं पार्टी प्रत्याशियों के खिलाफ बगावत भी प्रमुख कारण है। नाराज नेताओं ने खुले तौर पर भले अपनी नाराजगी जाहिर नहीं की,लेकिन अंदरुनी तौर पर उन्हें नुकसान पहुंचाया। कांग्रेस-भाजपा ने जहां-जहां विधायकों या दिग्गजों के टिकट काटे हैं, वहां मतदान प्रतिशत में अंतर यानी कमी देखने को मिली है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां के मतदात दल-बदल करने वालों पर या पार्टी से बागी बनकर चुनाव लड़ने वालों पर ज्यादा भरोसा नहीं जताते हैं. अगर कहीं दल-बदल करने वाले या बागी पर जनता ने भरोसा जताया तो वह एक या दो दफा ही चुनाव जीत पाया है. कांग्रेस ने जिन 22 विधायकों की टिकट काटे, उनमें से 10 सीटों पर मतदान वर्ष 2018 के मुकाबले वर्ष 2023 में एक से तीन प्रतिशत में कमी दर्ज की गई है, वहीं भाजपा ने जहां दो विधायकों के टिकट काटे, उनमें एक सीट बेलतरा में मतदान कम हुआ है, वहीं बिंद्रानवागढ़ में मतदान प्रतिशत एक प्रतिशत बढ़ा है। इधर छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिलने से नाराज 20 बागियों ने निर्दलीय चुनाव लड़ा है। इनमें कांग्रेस के 12 और भाजपा के आठ हैं। इनमें से कुछ को दूसरे दल में शामिल होने के बाद टिकट मिला था। ऐसे प्रत्याशियों ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया था। चुनाव के बाद लगातार चल रही समीक्षाओं के बाद जो हालात नजर आ रहे हैं, उसमें कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे का मुकाबला नजर आ रहा है। बहुमत के लिए किसी भी पार्टी को 46 सीटें जीतना जरूरी होगा। ऐसे में यदि कोई भी पार्टी एकदम करीब में आकर इस आंकड़े से चूकती है तो फिर निर्दलियों की भूमिका सरकार बनाने में महत्वपूर्ण हो जाएगी। वहीं, बड़ी संख्या में ऐसे उदाहरण हैं, जिन्होंने उम्मीदवार न बनाए जाने पर बगावत की और दूसरे दल अथवा निर्दलीय होकर चुनाव लड़ा तो उसके चलते उनका राजनीतिक भविष्य ही खतरे में पड़ गया. इस बार भी ऐसा ही होगा, यह आशंका कहीं ज्यादा है. हां, यह बगावत करने वाले उम्मीदवार अपनी पार्टी के उम्मीदवार को नुकसान पहुंचा सकते हैं और उसे हरवाने में भी उनकी भूमिका हो सकती है. मगर, वह चुनाव जीतेंगे इसकी संभावना बहुत कम है.
2018 के मुकाबले कम मतदान बड़ी वजह भी
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2018 के मुकाबले वर्ष 2023 में कम मतदान का बड़ा कारण भी मौजूदा विधायकों के टिकट काटने से लेकर नाराजगी थी। हालांकि यह अंतर एक प्रतिशत से कम रहा,लेकिन निर्वाचन के तमाम प्रयासों के बाद भी वर्ष 2018 का रिकार्ड नहीं टूट पाया। वर्ष 2023 में 76.31 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया,वहीं 2018 में 76.88 प्रतिशत मत पड़े थे।
टिकट कटने के बाद जिन 11 सीटों पर मतदान कम हुआ है,वहां मुकाबला भी टक्कर का हो सकता है। उदाहरण के तौर पर पंडरिया, डोंगरगढ़, बिलाईगढ़, महासमुंद, नवागढ़, सामरी, रामानुजगंज आदि विधानसभा क्षेत्रों में राजनीतिक समीकरण बदल सकते हैं। यहां कांग्रेस को ज्यादातर सीटों पर जीत-हार का अंतर कम रहने के साथ ही उलटफेर भी देखने को मिल सकता है। इस मामले पर कांग्रेस का दावा है कि मजबूत सर्वे और जीतने वाले प्रत्याशियों पर दांव लगाया गया है। इसलिए इन सीटों पर विधायकों के टिकट कटने से बहुत ज्यादा असर परिणामों पर नहीं आएगा।
इन सीटों पर घट गई वोटिंग
खुज्जी, प्रतापपुर, पालीतानाखार, सराईपाली, पंडरिया, डोंगरगढ़ , धरसींवा, रायपुर ग्रामीण, महासमुंद, बिलाईगढ़
इन सीटों पर बढ़ी वोटिंग
जगदलपुर, कांकेर, चित्रकोट, अंतागढ़, दंतेवाड़ा , लैलूंगा, कसडोल, सिहावा, नवागढ़, मनेंद्रगढ़, रामानुजगंज, सामरी
इन सीट में कम हुई वोटिंग
रायपुर पश्चिम में इस बार 55.94 परसेंट मतदान हुआ है. 2018 के चुनाव में इस सीट में 60.45 परसेंट मतदान हुआ है. जिसमें -4.51 प्रतिशत कम मतदान हुआ है. रायपुर उत्तर में इस बार 55.59 मतदान हुआ है. इस सीट में पिछली बार 60.28 परसेंट मतदान हुआ था. जिसमें -4.69 कम मतदान हुआ है. कोरबा सीट इस बार 66.77 मतदान हुआ है. वहीं पिछली बार 71.96 मतदान हुआ है. इस सीट में -5.19 कम मतदान हुआ है.