पास हुआ महिला आरक्षण बिल, 27 साल बाद नारी को मिलेगा बराबरी का मौका
जानिए क्या है महिला आरक्षण बिल, पास होने पर कितनी बदल जाएगी देश की सियासत?
संसद ने 'नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ बिल को मंजूरी दे दी है। लोकसभा के बाद इसे राज्यसभा ने भी पारित कर दिया। इस बीच पीएम मोदी ने सभी सांसदों का आभार जताया और इसे संसदीय इतिहास का स्वर्णिम अवसर करार दिया। ऐतिहासिक महिला आरक्षण बिल पास होने के बाद गृहमंत्री अमित शाह ने इसे मील का पत्थर बताया है। उन्होंने ट्वीट करके लिखा, जहां चाह है, वहां राह है। अमित शाह ने कहा कि आज एक ऐतिहासिक मील का पत्थर हासिल हुआ है। राज्यसबा में महिला आरक्षण बिल को पारित कर दिया गया है। अमित शाह ने कहा कि लंबे समय से यह मांग चली आ रही थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दुनियाभर में लैंगिक समानता और समावेशी शासन का एक शक्तिशाली संदेश भेजा है। मोदी को मेरा हृदय से आभार। देश के हर नागरिको को बधाई।
संसद में महिला आरक्षण पर चल रही 27 साल की अनिश्चितता आखिरकार गुरुवार को खत्म हो गई। पहले लोकसभा और फिर राज्यसभा में धमाकेदार तरीके से यह विधेयक पारित हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही संविधान का यह संशोधन लागू हो जाएगा। इसके साथ ही अब लोगों का ध्यान इस बात पर है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में आधी आबादी को 33 फीसदी आरक्षण का लाभ कब से मिलेगा। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे समेत राजनीतिज्ञों का एक धड़ा इसमें 2029 से भी देर लगने का दावा कर रहा है।
महिला आरक्षण विधेयक क्या है?
पिछले कई दिनों से चर्चा में बना हुआ महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। लगभग 27 वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर नए सिरे से जोर दिए जाने के बीच आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 प्रतिशत से कम है, जबकि कई राज्य विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है। यह बिल सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को संसद में पेश किया गया था। विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा समय में लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, जोकि कुल सांसदों का मात्र 14 प्रतिशत है। वहीं राज्यसभा में मात्र 32 महिला सांसद हैं, जोकि कुल राज्यसभा सांसदों का 11 प्रतिशत है।
बिल की आवश्यकता क्यों है?
पंचायत चुनाव से लेकर राज्यों की विधानसभाओं, विधान परिषदों और देश की संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। बिल को कानूनी मान्यता मिलने के बाद देश की सियासत से लेकर सरकारी नौकरी निजी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर महिलाओं की भागेदारी बढ़ेगी। वर्तमान लोकसभा में, 78 महिला सदस्य चुनी गईं, जो कुल संख्या 543 का 15 प्रतिशत से भी कम है। वहीं राज्यसभा में मात्र 32 महिला सांसद हैं, जोकि कुल राज्यसभा सांसदों का 11 प्रतिशत है। इसके अलावा अगर राज्यों की बात करें तो आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, ओडिशा, सिक्किम, तमिलनाडु, तेलंगाना सहित कई राज्य विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से भी कम है। दिसंबर 2022 के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, बिहार, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में 10-12 प्रतिशत महिला विधायक थीं।
बता दें कि महिला आरक्षण बिल को संसद के दोनों सदनों में पास कर दिया या है। लोकसभा में 454 मतों से और राज्यसभा में 215 वोटों से इसे पास कर दिया गया है। राज्यसभा में इस बिल पर वोटिंग से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसदों से अपील की कि वह इस बिल को सर्वसम्मति से पास करें और इसके समर्थन में मतदान करें। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि यह बिल देश के लोगों में नया भरोसा पैदा करेगा। इस बिल में सभी राजनीतिक दलों, सांसदों ने अहम भूमिका निभाई है। आइए इस बिल के जरिए एक मजबूत संदेश देते हैं।
गौर करने वाली बात है कि इससे पहले 2010 में राज्यसभा ने इस बिल को पास कर दिया था। कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने इस बिल को सदन में पेश किया था। हालांकि यह बिल लोकसभा में पास नहीं हो पाया था। बता दें कि पिछले 20 साल में लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या में 59 फीसदी बढ़ोत्तरी देखने को मिली है। 1999 में लोकसभा में 99 महिला सांसद थीं, जबकि 2019 के चुनाव के बाद मौजूदा समय में लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं।
देश की विधानसभाओं की बात करें तो किसी भी राज्य में 15 फीसदी से अधिक महिला विधायक विधानसभा में नहीं हैं। सबसे अधिक महिला विधायक छत्तीसगढ़ में हैं। यहां पर 14.44 फीसदी महिला विधायक हैं। वहीं मिजोरम में एक भी महिला विधायक नहीं है।
राज्यसभा में महिला आरक्षण बिल पारित होने पर केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा, हम बार-बार कहते थे कि 'मोदी है तो मुमकिन है', आज दोबारा उन्होंने ये साबित कर दिया। देश की करोड़ों बहनों की ओर से बहुत-बहुत बधाई।
सीटें बढ़ेंगी या मौजूदा सीटों में ही आरक्षण, तय नहीं
यह भी तय नहीं है कि भविष्य में परिसीमन के बाद विस और लोकसभा की सीटें बढ़ेंगी या फिर मौजूदा सीटों में ही एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी। सीटों की संख्या नहीं बढ़ने और जनसंख्या बढ़ने के कारण विधायक, सांसदों को पहले की तुलना में तीन से चार गुना मतदाताओं की अपेक्षाओं का सामना करना पड़ रहा है।
1971 से नहीं बढ़ी हैं सीटें
1971 के बाद से देश में लोकसभा-विधानसभा के सीटों की संख्या नहीं बढ़ी है। जनसंख्या की दृष्टि से भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है। ऐसे में परिसीमन के लिए गठित किए जाने वाले किसी भी आयोग को पहले के मुकाबले अधिक मशक्कत करनी होगी।
देश की संसद की कहानी बहुत अनूठी है. आजादी से शुरु करें तो इस संस्थान में कुछ ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने देश की तकदीर लिखी. मिसाल के तौर पर
1 - साल 1947 में जवाहरलाल नेहरू का देश की आज़ादी के एलान का भाषण
2 - साल 1950 में संविधान लागू होने की कार्रवाई
3 - साल 1975 में देश में इंदिरा गांधी सरकार की ओर से आपातकाल की घोषणा
4 - साल 1993, नरसिम्हा राव सरकार में पंचायती राज की घोषणा
और पांचवा आज, जब महिला आरक्षण बिल पास
कम से कम संख्या और समर्थन देखते हुए तो यही लगता है... और ये मौक़ा आया है कई असफलताओं के बाद.
महिला आरक्षण बिल का इतिहास
-महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है।
-एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर 1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था।
-बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था।
-इस बिल में प्रस्ताव दिया गया था कि कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए।
-अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था।
-यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया।
-नौ मार्च 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था।
-साल 2014 में लोकसभा भंग होने के बाद यह बिल अपने आप ख़त्म हो गया था।
-बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया, लेकिन इस मोर्चे पर कोई ठोस प्रगति नहीं की।