अनूठी आस्था! यहां परेतिन की होती है पूजा, छत्तीसगढ़ का अनोखा मंदिर जहां 200 साल से होती है मां परेतिन की पूजा
भारत में कई अचंभित करने वाले मंदिर है। इन सभी से कुछ न कुछ मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हैं। यहां चमत्कारिक, ऐतिहासिक मंदिरों के अलावा अजीबो-गरीब मंदिरों की भी कमी नहीं है. यहां के लोगों में अक्सर कई तरह अलग तरह का आस्था देखने को मिलता है. एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ को पूरे देश और दुनिया में लोग अनोखी परम्पराओं के लिए जानने लगे हैं तो वहीं दूसरी तरफ यहां के लोगों की आस्था भी किसी से छुपी नहीं है. ऐसा ही एक मंदिर छ्त्तीसगढ़ के बालोद जिले में स्थित है। ये मंदिर किसी देवी-देवता का नहीं डायन देवी का है। यहां के लोग स्थानीय भाषा में इस परेतिन (प्रेतिन) दाई मंदिर कहते हैं। अजीब मंदिर छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में है.
बालोद शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर गुंडरदेही-बालोद प्रमुख मार्ग पर स्थित ग्राम झींका में सड़क किनारे परेतिन दाई यानि डायन देवी का मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर में परेतिन देवी की पूजा होती है. गांव के लोग इस बात को खुद स्वीकार करते हैं कि देवी के जिस स्वरुप की वह पूजा करते हैं इतना ही नहीं इस मंदिर में डायन (परेतिन) के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. यह मंदिर 200 साल से ज्यादा पुराना है. यह परेतिन देवी मंदिर के नाम से मशहूर है. नवरात्रि में यहां अच्छा-खासा उत्सव होता है और लोग दूर-दूर से यहां दर्शन करने के लिए आते हैं. मान्यता है कि इस मंदिर में मांगी गई हर मन्नत पूरी हो जाती है. ग्रामीणों का कहना है कि परेतिन देवी कभी किसी का बुरा नहीं चाहती हैं। दरअसल वह उनके दरबार में आने वाले लोगों की रक्षा करती हैं। अगर कोई सच्चे मन से माता से प्रार्थना करता है, तो माता उनकी मनोकामना भी जरूर पूरी करती हैं।
झींका के ग्रामीण परम्परागत देवी-देवताओं के स्वरुप की तुलना में परेतिन दाई (डायन माता ) की पूजा अर्चना को अधिक महत्व देते हैं। ग्रामीणों का कहना है कि गांव में डायन देवी की पूजा उनके पुरखों के समय से हो रही है। जिस स्थान पर माता का मंदिर है, वहां पहले नीम के पेड़ के साथ चबूतरा ही था। डायन देवी उसी नीम के पेड़ में निवास करती हैं, जबकि देवी प्रतिमा की स्थापना करीब 150 साल पहले की गई थी।
भेंट अर्पित करके ही आगे बढ़ते हैं राहगीर- दशकों से इस मंदिर की मान्यता है कि इस रास्ते से कोई भी वाहन या लोग गुजरते हैं और किसी तरह का सामान लेकर जाता है. उसका कुछ हिस्सा मंदिर के पास छोड़ना पड़ता है. राहगीर माता के दर्शन करने के साथ उन्हें कोई ना कोई भेंट अर्पित करके ही आगे बढ़ते हैं। अगर कोई निर्माण कार्य में इस्तेमाल होने वाली भवन सामग्री जैसे रेत, गिट्टी, ईंट, मिट्टी, मुरम से भरी गाड़ी लेकर निकल रहा है, तो उसे वही ईंट, गिट्टी इत्यादि माता को अर्पित करनी होगी। अगर कोई फल, दूध, सब्जी इत्यादि ले जा रहा है, तो उसे उसमे से कुछ हिस्सा माता को अर्पित करना होगा। ऐसा ना करने से राहगीरों की उपयोगी वस्तुएं खराब हो जाती हैं।
गांव के एक स्थानीय ग्वाले के मुताबिक जब भी कोई राउत दूध दूह कर उसे बेचने के लिए मंदिर के सामने से गुजरता है, तो थोड़ा सा दूध डायन माता को अर्पित करके ही आगे बढ़ता है। मान्यता है कि अगर ऐसा नहीं किया, तो पूरा दूध फट जायेगा।
लेकिन क्या आपको पता है कि भारत में एक अनोखा मंदिर (Unique temple of India) है, जहां डायन (परेतिन दाई) की पूजा अच्छे काम के लिए की जाती है. ये मंदिर, 10, 20 या 50 नहीं बल्कि 200 साल पुराना है. मान्यता है कि यहां 200 सालों से डायन की पूजा की जाती है. नवरात्र के 9 दिन तो यहां मेले जैसा माहौल भी रहता है.
अंजान लोगों को माफ कर देती हैं देवी- मान्यता है कि यदि किसी व्यक्ति को यहां के नियम नहीं पता तो देवी उसे क्षमा कर देती हैं, लेकिन यदि कोई जान-बुझकर बिना चढ़ावा दिए आगे निकल जाता है तो उसे वाहन में कोई न कोई परेशानी आ जाती है या उसे अन्य तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।