महिलाओं की आत्मनिर्भरता का उदाहरण हर्बल ब्रांड, नींबू और चारकोल तक की कई तरह के साबुन से लाखों की कमाई
धमतरी जिले का कंडेल गांव ग्रामीण महिलाओं की आत्मनिर्भरता का उदाहरण बन गया है. यहां की महिला स्वयं सहायता समूह की सदस्य अपने हुनर और मेहनत के दम पर हर्बल साबुन, कैंडल, मुरकू, पापड़ और अन्य घरेलू उत्पाद बनाकर न केवल अपनी आर्थिक स्थिति मजबूत कर रही हैं बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए प्रेरणा भी बन रही हैं. कंडेल गांव की सत्या ढीमर बताती हैं कि समूह में कुल 8 महिलाएं जुड़ी हैं, जो पिछले तीन वर्षों से इस बिजनेस को सफलतापूर्वक चला रही हैं. इन महिलाओं द्वारा तैयार उत्पादों की मांग स्थानीय बाजारों, सरकारी प्रदर्शनियों और मेला-मड़ाई में लगातार बढ़ रही है.वह बताती हैं कि समूह की महिलाएं हर्बल साबुन, मोमबत्ती, मुरकू, पापड़, साबूदाना पापड़ और रागी पापड़ जैसे सामान तैयार करती हैं. इन उत्पादों को लोकल मेलों और सरकारी प्रदर्शनियों में स्टॉल लगाकर बेचा जाता है, जिससे उन्हें नियमित आय का स्रोत प्राप्त होता है.
बनाते हैं 7 तरह के साबुन
उन्होंने बताया कि महिलाओं द्वारा तैयार किया गया हर्बल साबुन पूरी तरह प्राकृतिक और त्वचा के अनुकूल है. यह साबुन ग्लिसरीन बेस से बनाया जाता है और इसमें नींबू, गुलाब, एलोवेरा, नीम, तुलसी, लेवेंडर और चारकोल वैरायटी उपलब्ध हैं. यह न केवल सुंदरता बढ़ाने में मदद करता है बल्कि त्वचा की सुरक्षा के लिए भी उपयोगी है. समूह की महिलाएं कहती हैं कि लोगों में हर्बल प्रोडक्ट्स को लेकर जागरूकता बढ़ने से इसकी बिक्री लगातार बढ़ रही है.
उत्पादों के दाम भी किफायती
सत्या ढीमर बताती हैं कि उत्पादों के दाम भी किफायती रखे गए हैं. 50 ग्राम का छोटा साबुन 25 रुपये में और इससे बड़ा साबुन 40 रुपये में उपलब्ध है. वहीं साबूदाना पापड़, रागी पापड़ और चिप्स 30 रुपये प्रति पैकेट की दर से बेचते हैं. मुरकू 200 रुपये प्रति किलो की दर से बिकता है. सिर्फ हर्बल साबुन से ही वे हर साल एक लाख रुपये से ज्यादा का शुद्ध लाभ कमा रही हैं.
यदि अवसर और प्रशिक्षण मिले, तो…
कंडेल की इन महिलाओं ने साबित कर दिया है कि यदि अवसर और प्रशिक्षण मिले, तो ग्रामीण महिलाएं भी बड़े शहरों की उद्यमियों की तरह सफल व्यवसाय चला सकती हैं. सत्या ढीमर और उनका समूह आज महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुका है, जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को जमीनी स्तर पर साकार कर रहा है.
