धान की खेती में 'चलाई' से बढ़ेगा उत्पादन, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ बनवासी ने बताया
रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राकेश बनवासी ने लोकल 18 से बातचीत में कहा कि किसान चलाई प्रक्रिया को प्राथमिकता दें. चलाई वह विधि है, जिसमें खेत में ज्यादा घने पौधों को निकालकर उन्हें उन जगहों पर लगाया जाता है, जहां पौधे कम हैं.
छत्तीसगढ़ में धान की खेती अपने चरम पर है. प्रदेश के अधिकांश किसानों ने अपने खेतों में धान की रोपाई कर ली है. कई किसानों ने इस बार डायरेक्ट सोइंग यानी सीधी बुआई की विधि अपनाई है, जिसमें बीजों को सीधे खेत में बिखेरा जाता है. हालांकि यह विधि समय और श्रम की बचत करती है लेकिन इससे जुड़ी कुछ चुनौतियां भी सामने आती हैं. मृदा विज्ञान के विशेषज्ञों के अनुसार, सीधी बुआई में बीजों का एक समान वितरण न होने के कारण खेत के कुछ हिस्सों में पौधे घने हो जाते हैं, वहीं कुछ हिस्से खाली रह जाते हैं.
रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राकेश बनवासी ने किसानों को सलाह दी है कि वे चलाई प्रक्रिया को प्राथमिकता दें. चलाई वह विधि है, जिसमें खेत में अत्यधिक घने पौधों को निकालकर उन्हें उन हिस्सों में लगाया जाता है, जहां पौधे कम हैं. इससे पूरे खेत में पौधों का संतुलन बना रहता है. डॉ बनवासी के अनुसार, यह प्रक्रिया धान के पौधों की समान वृद्धि के लिए बेहद जरूरी है. इससे पौधों को जमीन से पोषक तत्व और उर्वरक सही मात्रा में मिलते हैं और उनकी पैदावार अच्छी होती है, जिससे कंसे अधिक निकलते हैं और उत्पादन में वृद्धि होती है.
धान की फसल में खाद देने का सही समय
उन्होंने बताया कि किसानों को चलाई प्रक्रिया खाद डालने से पहले करनी चाहिए. वर्तमान में धान की फसल में यूरिया खाद देने का उपयुक्त समय है. बुआई के 30 से 35 दिनों के बीच पौधों में कंसा निकलने की प्रक्रिया प्रारंभ होती है. इस अवस्था में पौधों को अधिक मात्रा में नाइट्रोजन की जरूरत होती है. ऐसे में यूरिया खाद का तीन चरणों में प्रयोग करना चाहिए. इससे पौधों को जरूरत के अनुसार पोषण मिलता है और उत्पादन में गिरावट नहीं आती.
उर्वरक डालते समय रखें ध्यान
डॉ बनवासी ने यह भी कहा कि जिन किसानों ने बुआई के समय आधार खाद के रूप में फास्फोरस या पोटाश का उपयोग नहीं किया है, वे अब नाइट्रोजन और फास्फोरस युक्त उर्वरक जैसे डीएपी या 12:32:16 का उपयोग कर सकते हैं. इससे पौधों को संतुलित पोषक तत्व मिलेगा और उनकी जड़ों का विकास बेहतर होगा. उन्होंने किसानों को सलाह दी कि उर्वरक डालते समय खेत में नमी की स्थिति का विशेष ध्यान रखें ताकि पोषक तत्वों का अवशोषण पौधों द्वारा सही तरीके से हो सके. चलाई और उचित उर्वरक प्रबंधन के जरिए किसान अपनी फसल से अधिक उत्पादन पा सकते हैं. यह तकनीक छत्तीसगढ़ के छोटे और सीमांत किसानों के लिए बेहद लाभकारी है, जिससे वे कम लागत में ज्यादा उत्पादन पा सकते हैं.