विकास के पैमाने में छत्तीसगढ़ के गावों का बुरा हाल, PAI रिपोर्ट से खुली पोल - CGKIRAN

विकास के पैमाने में छत्तीसगढ़ के गावों का बुरा हाल, PAI रिपोर्ट से खुली पोल


छत्तीसगढ़ को गावों का प्रदेश है. यहां शहर से कहीं ज्यादा गांव हैं. इन्हें चलाने और इनका विकास करने की जिम्मेदारी पंचायतों की है. लेकिन केन्द्र सरकार के पंचायती राज विभाग की रिपोर्ट बताती है कि छत्तीसगढ़ के गावों का बुरा हाल है. केन्द्र के पंचायत उन्नति सूचकांक में D ग्रेड में छत्तीसगढ़ के पंचायतों की संख्या सबसे ज्यादा है.

छत्तीसगढ़ के 11643 पंचायतों से एकत्र आंकड़ों के आधार पर जो विश्लेषण किया गया, उससे पता चलता है कि देश भर में जिन कुल 5896 पंचायतों को फिसड्डी यानी डी श्रेणी में रखा गया है, उसमें सर्वाधिक 1449 अकेले छत्तीसगढ़ की हैं. प्रतिशत के लिहाज से भी छत्तीसगढ़ की पंचायतें सबसे खराब श्रेणी में हैं. राज्य की एक भी पंचायत को ए प्लस या ए श्रेणी में नहीं रखा गया है. राज्य की 1239 पंचायतों को बी श्रेणी में रखा गया है और 8955 पंचायतों को सी श्रेणी में. 

 छत्तीसगढ़ के गांवों में सरकार के वादे कागज़ों में चमक रहे हैं, लेकिन हकीकत में गांव अब भी पानी, पढ़ाई, और इलाज के लिए तरस रहे हैं.  ये हम नहीं कह रहे बल्कि खुद भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े ये बातें बयान कर रहे हैं. दरअसल देशभर की पंचायतों की हालत जांचने के लिए पंचायती राज विभाग ने हाल ही में 'पंचायत उन्नति सूचकांक' (PAI) जारी किया है. इसमें छत्तीसगढ़ सबसे निचले पायदान पर है. देश में सबसे ज्यादा जिन पंचायतों को 'D' ग्रेड में डाला गया है और उसमें छत्तीसगढ़ पहले नंबर पर है. इस रिपोर्ट में केस स्टडी के साथ हालात की बात करेंगे. पहले आंकड़ों पर निगाह डाल लेते हैं.  

 केंद्र सरकार की इस रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ की सबसे बेहतर 25 पंचायतों में 73.15 अंकों के साथ सरगुजा ज़िले के बतौली विकासखंड की शिवपुर पंचायत सबसे आगे है. दूसरे नंबर पर धमतरी ज़िले की नगरी का सांकरा पंचायत है, जिसे 72.49 अंक मिले हैं. तीसरे नंबर पर जशपुर ज़िले के कांसाबेल विकासखंड का कांसाबेल है. कांसाबेल को 72.4 अंक मिले हैं. चौंथे, पांचवें और छठवें नंबर पर धमतरी के ही नगरी की छिपली, हरदीभट्टा, और मुकुंदपुर पंचायत हैं. सातवें, आठवें और नौवें नंबर पर सरगुजा का प्रतापपुर, तरागी और सुअरपारा हैं. दसवें नंबर पर दुर्ग ज़िले के झोला को स्थान मिला है.

सड़कें उखड़ी पड़ी हैं गावों में

इसके बाद हम पहुंचे दुर्ग के अंजोरा गांव. यहां भी पानी की जर्बदस्त किल्लत है. इसके साथ ही सड़कें उखड़ी पड़ी हैं. गांव में खुलेआम शराब बिक रही है और स्कूलों में असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है. यहां के पूर्व सरपंच सुमरन साहू बताते हैं कि गांव तक जो पहुंच मार्ग है उस पर चलना संभव ही नहीं है.हमने कई बार प्रशाशन के पास गुहार लगाई लेकिन  किसी ने ध्यान नहीं दिया. आसमाजिक तत्वों की वजह से महिलाओं के लिए भी सुरक्षा संबंधित समस्या होती है. 

सरकार का कहना है कि भारत 2030 एसडीजी लक्ष्यों को पाने के लिए सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को स्थानीय स्तर पर कार्यान्वित करने और जमीनी स्तर पर शासन को सशक्त बनाने इन विषय वैश्विक लक्ष्यों को ग्रामीण वास्तविकताओं के साथ जोड़ेंगे, जिससे स्थानीय सरकारों को समग्र विकास के लिए अपनी नीति निर्धारित करने में मदद मिलेगी. लेकिन पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जारी यह रिपोर्ट बताती है कि अभी सतत विकास लक्ष्य, कोसों दूर है. बुनियादी मुद्दों पर ही हमारी पंचायतों की हालत खराब है. पंचायती राज का ढोल अपनी जगह है और उसकी हकीकत दूसरी जगह.

पंचायती राज मंत्रालय द्वारा जारी पीएआई रिपोर्ट बताती है कि गांवों में सरकारों को बहुत कुछ करना बचा है. मूलभूत और बुनियादी मुद्दों पर भी हमारी पंचायतों की हालत खराब है. गांवों के हालात सुधारने के लिए सरकार क्या कदम उठाएगी यह तो भविष्य में ही देखने को मिलेगा. 

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