सिर्फ गर्मी में मिलता है ये जंगली फल, आदिवासियों के लिए रोज़गार का श्रोत है यह फल
आयुर्वेद में चार गिरी को शीतल, पाचन में सहायक और त्वचा रोगों में लाभदायक बताया गया है. यह शरीर को ताकत और ऊर्जा भी देती है. चार फल ने छत्तीसगढ़ के जंगलों और गांवों को एक मजबूत कड़ी से जोड़ दिया है. यह न केवल पर्यावरण के लिए उपयोगी है, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से भी ग्रामीणों को सशक्त बना रहा है. अगर इसका संरक्षण और सही उपयोग जारी रहा, तो यह आने वाले समय में ग्रामीण विकास का एक सशक्त माध्यम बन सकता है. एक किलो चार गिरी की कीमत बाजार में 1500 से 2500 रुपये तक होती है.छत्तीसगढ़ के घने जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाला चार फल अब सिर्फ एक साधारण वन उत्पाद नहीं रह गया है. यह फल अब आदिवासियों और ग्रामीणों के लिए रोज़गार, पोषण और स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण स्रोत बनता जा रहा है. गर्मी के मौसम में मिलने वाला यह फल जंगलों की गोद से निकलकर लोगों की ज़िंदगी में मिठास घोल रहा है.
चार फल का वृक्ष विशेष रूप से बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर, सरगुजा और कबीरधाम जैसे जिलों के वनों में पाया जाता है. अप्रैल-मई के महीने में इसके फल पकते हैं. ग्रामीण सुबह से जंगलों की ओर निकलते हैं और पेड़ों से गिरे हुए चार फल इकट्ठा करते हैं. इसके बाद उन्हें सुखाकर उनकी गुठली से गिरी निकाली जाती है.इस गिरी का उपयोग मिठाइयों और खास व्यंजनों में किया जाता है. इसका स्वाद काजू जैसा होता है और इसे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक माना जाता है. आयुर्वेद में चार गिरी को शीतल, पाचन में सहायक और त्वचा रोगों में लाभदायक बताया गया है. यह शरीर को ताकत और ऊर्जा भी देती है.
छत्तीसगढ़ सरकार ने भी इस वन उपज की महत्ता को देखते हुए इसे वन धन योजना के तहत बढ़ावा देना शुरू किया है. स्थानीय वन समितियां, सहकारी समितियां और स्वयं सहायता समूह चार के संग्रहण, प्रसंस्करण और बिक्री का काम कर रहे हैं. इससे ग्रामीणों को बेहतर दाम और सुरक्षित बिक्री की सुविधा मिल रही है.हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि अगर चार फल का अत्यधिक दोहन किया गया, तो इसके पेड़ धीरे-धीरे कम हो सकते हैं. इसलिए ज़रूरत है कि ग्रामीणों को इसके टिकाऊ संग्रहण और संरक्षण के लिए प्रशिक्षण दिया जाए. वन विभाग और कई स्वयंसेवी संगठन अब चार के पौधे लगाने और देखरेख पर भी ध्यान दे रहे हैं.
