महिला दिवस स्पेशल: वो भारतीय महिलाएं, जिन्होंने विश्व पटल पर बिखेरा जलवा, खेलों में बनाई अपनी अलग पहचान
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाते हैं और महिलाओं को सम्मान देने की बात करते हैं, लेकिन सिर्फ एक दिन ही उनको जश्न मनाने का मौका नहीं दिया जाना चाहिए, बल्कि हर दिन उनका सम्मान होना चाहिए। हर साल 8 मार्च कोअंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. यह दिन महिला सशक्तिकरण, समानता और अधिकारों के बारे में जागरूकता फैलाने तथा लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पूरे विश्व में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. एक जमाना था, जब महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले कम समझा जाता था. यही वजह थी कि भारत में भी महिलाओं को उस तरह का सम्मान नहीं मिल पाया, लेकिन आज दुनिया बदल चुकी है और महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं. राजनीति हो या फिर हवाई जहाज उड़ाने की बात, महिलाएं हर तरह के काम में आगे हैं. महिला दिवस के मौके पर ऐसी ही महिलाओं को याद किया जाता है, जिन्होंने समाज में अपना नाम कमाया और देश की करोड़ों महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गईं. हर साल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस एक विशेष थीम के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष का विषय है 'कार्रवाई में तेजी लाना'. यह विषय महिलाओं और लड़कियों के अधिकार, समानता और सशक्तिकरण पर आधारित है. इस वर्ष का विषय महिलाओं के विकास के लिए तीव्र एवं प्रभावी कदम उठाने पर जोर देता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की शुरुआत 1911 में हुई थी. 1908 में, न्यूयॉर्क शहर में 15,000 महिलाओं ने बेहतर वेतन, बेहतर कार्य स्थितियों और मतदान के अधिकार की मांग को लेकर मार्च निकाला था. फिर 19 मार्च 1911 को स्विट्जरलैंड, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया और डेनमार्क में पहली बार महिला दिवस मनाया गया. फिर 1917 में 8 मार्च को रूसी महिलाएं पुनः हड़ताल पर चली गईं. इसके बाद महिला दिवस की तारीख बदलकर 8 मार्च कर दी गई और संयुक्त राष्ट्र ने 8 मार्च 1975 को इस दिन को आधिकारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मान्यता दे दी. ऐसे में महिलाएं आज घर के काम करने से लेकर हर क्षेत्र में भी अपनी अहम भागीदारी निभा रही हैं. इस आधुनिक युग में महिलाएं अपने सारे बंधनों को तोड़कर पुरुषों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर आगे बढ़ रही हैं. शिक्षा की बदौलत भारतीय महिलाओं ने साहित्य, विज्ञान, चिकित्सा और खेल में अपनी अलग-अलग पहचान बनाई हैं. वहीं बात अगर खेल के क्षेत्र को लेकर करें तो भारत की महिला खिलाड़ियों ने दुनिया के सामने अपना लोहा मनवाया है. वह आज घरेलू खेलों से आगे बढ़कर दुनिया भर में पुरुषों के वर्चस्व को चुनौती दे रही हैं. वह हर खेल में बढ़-चढ़कर भाग ले रही हैं. सीमित संसाधनों का रोना-रोने के बजाय अपनी मेहनत और संघर्ष से उन सभी चुनौतियों को पार कर रही हैं, जो उनके रास्ते में बाधा बनकर खड़ी हो रही हैं. आज आपको खेल जगत की उन दिग्गज महिला खिलाड़ियों के बारे में बताएंगे, जिन्होंने न केवल भारत में एक रोल मॉडल की भूमिका निभाई है. बल्कि पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन भी किया है.
मिताली राज (क्रिकेटर)
मिताली दोराई राज, जिन्हें भारत की सबसे महान महिला बल्लेबाज के रूप में भी जाना जाता है. मिताली राज राजस्थान के जोधपुर की रहने वाली हैं. अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में उनका करियर लगभग दो दशक लंबा है और बीच में कई उपलब्धियां हासिल की हैं. 39 साल की बल्लेबाज भारत की एकमात्र ऐसी कप्तान हैं, जिन्होंने टीम को 50 ओवर के दो विश्व कप फाइनल में पहुंचाया है. मिताली राज, महिला अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सबसे अधिक रन बनाने वाली और महिला एकदिवसीय मैचों में सात हजार रन का आंकड़ा पार करने वाली एकमात्र महिला क्रिकेटर हैं. राज वनडे में लगातार सात अर्धशतक बनाने वाली पहली खिलाड़ी भी हैं. बता दें, जून 2018 में महिला टी-20 एशिया कप 2018 के दौरान वह T-20I में दो हजार रन बनाने वाली भारत की पहली खिलाड़ी बनीं और 2 हजार WT-20I रन तक पहुंचने वाली पहली महिला क्रिकेटर भी बनीं. सितंबर 2019 में, राज 50 ओवर के प्रारूप पर ध्यान केंद्रित करने के लिए T-20I क्रिकेट से बाहर हो गईं. मिताली राज को भारत सरकार द्वारा साल 2003 में अर्जुन पुरस्कार, 2015 में पद्म श्री और साल 2017 में विजडन लीडिंग वुमन क्रिकेटर इन द वर्ल्ड और 2021 में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न से सम्मानित किया गया है. 2002 में मिताली ने इंग्लैंड के खिलाफ 214 रनों की पारी खेली और टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी बनीं. यह रिकॉर्ड 2024 तक मिताली के नाम रहा.2024 में शेफाली वर्मा ने दोहरा शतक लगाकर इस रिकॉर्ड की बराबरी की.
पीवी सिंधु (भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी)
पुसरला वेंकट सिंधु को पीवी सिंधु के नाम से भी जाना जाता है. वह अब तक की सबसे बेहतरीन भारतीय एथलीटों में से एक हैं. सिंधु ने ओलंपिक सहित कई आयोजनों में राष्ट्रीय ध्वज फहराया है. वह बैडमिंटन विश्व चैंपियन बनने वाली एकमात्र भारतीय खिलाड़ी हैं और ओलंपिक खेलों में लगातार दो पदक जीतने वाली भारत की दूसरी व्यक्तिगत एथलीट हैं. शटलर पीवी सिंधु ने साल 2018 राष्ट्रमंडल खेलों और 2018 एशियाई खेलों में एक-एक रजत पदक और उबेर कप में दो कांस्य पदक भी जीते हैं. सिंधु को पूर्व में अर्जुन पुरस्कार और मेजर ध्यानचंद खेल रत्न से सम्मानित किया जा चुका है. साथ ही भारत के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है. वहीं, उन्हें पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका है.
मैरी कॉम (बॉक्सर)
जीतने के अपने अथक अभियान के साथ, मैरी कॉम को भारतीय मुक्केबाजी के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने में बहुत कम समय लगा. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, उन्होंने साल 2001 में विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर अपने आगमन की शुरुआत की. मैरी कॉम ने इसके बाद साल 2002 में स्वर्ण पदक जीता. मैरी कॉम प्रतियोगिता के इतिहास में सबसे सफल महिला मुक्केबाज हैं. महिला और पुरुष मुक्केबाजों में उनके पदकों की संख्या सबसे अधिक है, उन्होंने अब तक आठ पदक अपने नाम किए हैं. लेकिन भारतीय मुक्केबाजी के लिए सबसे महत्वपूर्ण जीत तब हुई, जब उन्होंने साल 2012 के दरमियान लंदन ओलंपिक में कांस्य पदक जीता. मैरी कॉम साल 2014 में एशियाई खेलों का स्वर्ण और 2018 में राष्ट्रमंडल खेलों का स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय महिला मुक्केबाज होने का गौरव भी रखती हैं. वह पांच बार की एशियाई चैंपियन भी हैं.
अवनि लेखरा (पैरालंपियन)
अवनि लेखारा भारत के बेहतरीन पैरालंपियन में से एक हैं. वर्तमान में, महिलाओं की 10 मीटर एयर राइफल में SH1 में वर्ल्ड नंबर 2 बनीं. अवनी ने कई मौकों पर देश को गौरवान्वित किया है. अवनि ने टोक्यो पैरालंपिक 2020 में 10 मीटर एयर राइफल स्टैंडिंग में स्वर्ण पदक और 50 मीटर राइफल थ्री पोजीशन में कांस्य पदक जीता था. लेखारा पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला हैं. बाद में, उन्होंने ग्रीष्मकालीन पैरालंपिक 2020 में भी भाग लिया और स्वर्ण पदक जीता. फाइनल इवेंट में 249.6 अंक के स्कोर के साथ, युवा निशानेबाज ने पैरालंपिक रिकॉर्ड के साथ-साथ विश्व रिकॉर्ड बनाया बनाया. उन्हें भारत सरकार द्वारा साल 2021 में खेल रत्न पुरस्कार और साल 2022 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. अवनि लेखरा ने 2024 पैरालिंपिक में दो स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास में अपना नाम दर्ज करा लिया है.
मीराबाई चानू (वेटलिफ्टर)
टोक्यो ओलंपिक में भारत के अभियान की शुरुआत बेहतरीन तरीके से हुई थी. मणिपुर की वेटलिफ्टर ने 49 किलोग्राम भार वर्ग में 202 किलोग्राम (87 + 115) (स्नैच और क्लीन एंड जर्क दोनों सहित) वेटलिफ्टिंग में प्रतिष्ठित शोपीस इवेंट के शुरुआती दिन भारत के लिए रजत पदक जीता था. मीराबाई ने अपनी रियो ओलंपिक की निराशा को दूर किया, जहां वह तीन प्रयासों में एक भी क्लीन एंड जर्क उठाने में विफल रहीं थीं. उन्होंने विश्व चैंपियंस के साथ-साथ राष्ट्रमंडल खेलों में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीते हैं. 28 साल की मीराबाई ने साल 2014 में ग्लासगो में 48 किलोग्राम भार वर्ग में रजत जीतकर अपना पहला राष्ट्रमंडल खेलों का पदक जीता था. रियो ओलंपिक 2016 में वह असफल रहीं, लेकिन दो साल बाद साल 2017 विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के लिए वापसी की. उन्होंने गोल्ड कॉस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स 2018 में स्वर्ण पदक जीतने के लिए अपने समृद्ध प्रदर्शन के साथ इसे आगे बढ़ाया. लेकिन उनकी असली परीक्षा 2021 में टोक्यो ओलंपिक में हुई, जब उन्होंने अपने पिछले ओलंपिक पराजय से वापसी करते हुए रजत जीतने वाली पहली भारतीय वेटलिफ्टर बन गईं. ओलंपिक में पदक और कर्णम मल्लेश्वरी के बाद ओलंपिक पदक जीतने वाले केवल दूसरी भारतीय वेटलिफ्टर बनीं, जिन्होंने सिडनी ओलंपिक 2000 में कांस्य पदक जीता था.
मनु भाकर (निशानेबाजी)
भाकर ने 2024 ओलंपिक में निशानेबाजी में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनकर इतिहास रच दिया. उनकी उपलब्धियों में दो कांस्य पदक शामिल हैं, जिससे वह एक ही संस्करण में खेल में कई पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बन गई हैं. निशानेबाजी के अलावा, मनु मुक्केबाजी, स्केटिंग और मार्शल आर्ट में भी माहिर हैं.
दिव्या देशमुख (शतरंज)
महज 18 साल की उम्र में दिव्या देशमुख शतरंज की दुनिया में एक जबरदस्त ताकत के रूप में उभरी हैं. उन्होंने 2024 में विश्व अंडर-20 गर्ल्स शतरंज चैंपियनशिप का खिताब जीता, यह सम्मान हासिल करने वाली चौथी भारतीय बनीं. उनकी रणनीतिक क्षमता और समर्पण ने उन्हें देश भर के युवा शतरंज प्रेमियों के लिए एक आदर्श बना दिया है. इन महिला खेल हस्तियों ने भीड़ से बाहर खड़े होने और यह दिखाने के लिए उदाहरण स्थापित किया है कि महिला सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह आवश्यक है कि महिलाएं वह सब कुछ करने में सक्षम हों, जिसके लिए वे अपनी प्रेरणा निर्धारित करती हैं.
शीतल देवी (तीरंदाजी)
सत्रह वर्षीय पैरा-तीरंदाज शीतल देवी मिश्रित कम्पाउंड तीरंदाजी टीम स्पर्धा में कांस्य पदक जीतकर, भारत की सबसे कम उम्र की पैरालंपिक पदक विजेता बन गईं. एक दुर्लभ जन्मजात बीमारी के साथ जन्मी, उन्होंने अपने कंधों, पैरों और मुंह का उपयोग करके तीरंदाजी में महारत हासिल करते हुए अद्वितीय दृढ़ संकल्प दिखाया. इन महिला खेल हस्तियों ने भीड़ से बाहर खड़े होने और यह दिखाने के लिए उदाहरण स्थापित किया है कि महिला सशक्तिकरण महत्वपूर्ण है. क्योंकि यह आवश्यक है कि महिलाएं वह सब कुछ करने में सक्षम हों, जिसके लिए वे अपनी प्रेरणा निर्धारित करती हैं.
हिमा दास
21 साल की हिमा दास इस समय असम पुलिस में डीएसपी हैं। ये औहदा उनको स्प्रिंटर होने के कारण मिला है, क्योंकि उन्होंने 400 मीटर की रेस में नेशनल रिकॉर्ड कायम किया हुआ है। जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता था और नेशनल रिकॉर्ड बनाया था। वह IAAF वर्ल्ड U20 चैंपियनशिप में एक ट्रैक इवेंट में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय एथलीट हैं।
साक्षी मलिक
28 वर्षीय साक्षी मलिक ने फ्रीस्टाइल कुश्ती में 2016 के ओलंपिक खेलों में 58 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीत कर इतिहास रचा था। वह ओलंपिक खेलों में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला पहलवान बनी थीं। साक्षी मलिक ने इससे पहले ग्लासगो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक और दोहा में 2015 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था।
दीपा करमाकर
27 साल की दीपा करमाकर ने पहली बार ध्यान तब आकर्षित किया था, जब उन्होंने ग्लासगो में 2014 राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीता। इस तरह उन्होंने खेलों के दुनिया में इतिहास रचा था और वे पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनी थीं। करमाकर ने रियो में 2016 ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया, जो ओलंपिक में प्रतिस्पर्धा करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनी थीं।
रानी रामपाल
भारतीय महिला हॉकी टीम की मौजूदा कप्तान रानी रामपाल की सफलता की कहानी भी बेहद प्रेरणादायक है। उनकी कहानी से साबित होता है कि कड़ी मेहनत और प्रतिबद्धता से सफलता मिलती ही है। 15 साल की उम्र में रानी रामपाल 2010 हॉकी विश्व कप में भाग लेने वाली राष्ट्रीय टीम में सबसे कम उम्र की खिलाड़ी बनीं थी। 2019 के लिए वह विश्व खेल एथलीट ऑफ द ईयर जीतने वाली पहली हॉकी खिलाड़ी भी थीं। उन्हें पद्म श्री पुरस्कार (2020) और राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है।
साइना नेहवाल
30 वर्षीय साइना नेहवाल भी एक भारतीय पेशेवर बैडमिंटन सिगंल्स प्लेयर हैं। वह नंबर वन महिला टेनिस खिलाड़ी भी रह चुकी हैं। साइना ने 24 अंतरराष्ट्रीय खिताब जीते हैं। साइना ने तीन बार ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है और एक बार कांस्य पदक जीतने में सफलता हासिल की है। तीन गोल्ड मेडल वे कॉमनवेल्थ गेम्स में जीत चुकी हैं, जिसमें से दो बार वे सिगंल्स के तौर पर स्वर्ण पदक जीती हैं।
कर्णम मल्लेश्वरी
कर्णम मल्लेश्वरी भारत की व्यक्तिगत पहली महिला ओलंपिक पदक विजेता हैं। साल 2000 सिडनी ओलम्पिक में मल्लेश्वरी ने वेटलिफ्टिंग की 69 किग्रा वर्ग प्रतिस्पर्धा में कांस्य जीता और ओलंपिक खेलों में मेडल जीतने वाली वो देश की पहली महिला बन गई। इतना ही नहीं 1993 में मल्लेश्वरी ने विश्व चैम्पियनशिप में तीसरा स्थान हासिल किया और उसके बाद 1994 और 1995 में 54 किग्रा डिवीजन में विश्व खिताब की एक श्रृंखला के साथ, 1996 में फिर से तीसरे स्थान पर रहीं। उन्होंने 1994 और 1998 के एशियाई खेलों में दो सिल्वर भी हासिल किए, और 1999 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।
झूलन गोस्वामी
भारतीय महिला क्रिकेट के उत्थान में भारत की पूर्व महिला तेज गेंदबाज यानि 'नदिया एक्सप्रेस' के नाम से मशहूर झूलन गोस्वामी का बड़ा योगदान है। सितंबर 2007 में इन्हें महिला क्रिकेट में विश्व को सबसे तेज गेंदबाज घोषित किया गया था। झूलन की गति 120 किलोमीटर प्रति घंटा है जो विश्व महिला क्रिकेट में सर्वाधिक है। झूलन ने अपना पहला टेस्ट मैच लखनऊ में इंग्लैंड की टीम के विरुद्ध 2002 में खेला था तब वह केवल 18 साल की थी। इस तरह 2007 तक 8 टेस्ट मैच खेले जिसमें 33 विकेट हासिल किए झूलन कभी भी विकेट लेने में पीछे नहीं रही। झूलन कहती हैं कि ज्यादातर लोग नहीं जानते कि “महिलाएं भी क्रिकेट खेलती है लेकिन मीडिया के कवरेज के बाद भारत में महिला क्रिकेट को भी जाना गया।"
