बस्तर सीट पर इस बार बीजेपी के महेश कश्यप का होगा कवासी लखमा से मुकाबला
छत्तीसगढ़ में पहले चरण के लिए चुनाव प्रचार अब थम गया है। प्रत्याशी घर-घर जाकर संपर्क करेंगे। बस्तर लोकसभा सीट पर इस बार मुकाबला घमासान होने वाला है, सबकी निगाहें बस्तर सीट पर जमी हुई है. छत्तीसगढ़ में पहले चरण में बस्तर लोकसभा सीट पर 19 अप्रैल को होने वाले मतदान से पहले बुधवार शाम चुनाव प्रचार समाप्त हो गया. राज्य में मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विपक्षी कांग्रेस के बीच है. भ्रष्टाचार, गरीबी और इन राजनीतिक दलों के चुनावी वादे चुनाव प्रचार में हावी रहे. छत्तीसगढ़ में पहले चरण के लिए भाजपा की ओर से पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ-साथ अमित शाह एवं रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने प्रचार किया. इस दौरान मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय और उपमुख्यमंत्रीयों ने भी सभाएं कीं. मोदी और सिंह ने पहले चरण के लिए बस्तर लोकसभा क्षेत्र में एक-एक रैली को संबोधित किया. वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी क्षेत्र में एक रैली कर अपनी पार्टी के पक्ष में प्रचार किया. इस दौरान पार्टी के छत्तीसगढ़ प्रभारी सचिन पायलट और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज मौजूद रहे. बता दें कि भारतीय जनता पार्टी की ओर से महेश कश्यप मैदान में ताल ठोक रहे हैं. बस्तर लोकसभा सीट पर इस बार कांटे का मुकाबला होगा. बीजेपी ने जमीन कार्यकर्ता से नेता बने महेश कश्यप को मैदान में उतारा है. महेश कश्यप की आदिवासियों के बीच अच्छी पैठ रही है. कार्यकर्ता से नेता बनने तक का सफर तय करने वाले महेश कश्यप एक जुझारु नेता के तौर पर जाने जाते हैं. वहीं कांग्रेस ने बीजेपी को कड़ी चुनौती देते हुए अपने सबसे दिग्गज उम्मीद्वार कवासी लखमा को मैदान में उतारा है. कवासी लखमा न सिर्फ आदिवासियों के बड़े नेता है बल्कि बस्तर में उनकी पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है. लखमा पिछले भूपेश सरकार में कद्दावर मंत्री भी रहे है। उनकी पकड़ बस्तर में काफी अच्छी मानी जाती है। वर्तमान में कांग्रेस से सांसद रहे बैज का टिकट काटकर उन्हें दिया गया है। कवासी लखमा जमीन नेता होने के साथ-साथ आदिवासियों के बीच भी अपनी अच्छी पकड़ रखते हैं.
वहीं बता दें कि नक्सलियों के गढ़ कह जाने वाले चांदामेटा में पहली बार देश के सबसे बड़े चुनाव यानी लोकसभा चुनाव को लेकर इस इलाके के ग्रामीण मतदान करेंगे. यह वही इलाका है जहां नक्सलियों की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती थी, क्योंकि बस्तर जिले का यह अंतिम गांव पड़ता हैं और यहीं से तुलसी डोंगरी पहाडिय़ों से ओडिशा लग जाता है. ऐसे में यहां एक समय नक्सलियों का ट्रेनिंग कैंप संचालित होता था .लेकिन अब हालात बदल गए हैं. इस गांव तक पहुंचने के लिए जरूर सड़क भी बन गया है, लेकिन आज भी यहां के ग्रामीणों ने अपने किसी भी जनप्रतिनिधि या नेताओं को आज तक नहीं देखा है. 19 अप्रैल को दूसरी बार चांदामेटा के ग्रामीण मतदान करने जा रहे हैं.
छत्तीसगढ़ में बस्तर को साल 1951 के पहले लोकसभा चुनाव से लेकर 1996 तक यह कांग्रेस की पारंपरिक सीट मानी जाती रही है. हालांकि साल 1996 में पहली बार यहां की जनता ने एक निर्दलीय उम्मीदवार को चुना. यह सीट 1998 से बीजेपी के पास है. पिछले दो दशक से लगातार कश्यप परिवार के लोग यहां से जीतते आ रहे हैं. यहां की कुल आबादी लगभग 22 लाख है. यह आदिवासी बहुल है और यहां की करीब 65 फीसदी आबादी आदिवासियों की है. आठ विधानसभा सीटें इस सीट के अंतर्गत पड़ती है. इनमें बीजापुर और कोंटा विधानसभा सीट आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है.
अगर समस्याओं की बात करें तो इस क्षेत्र के लोगों को मूलभूत सुविधाओं की कमी है. सड़क, पानी, बिजली की समस्याएं यहां आम है. इसके अलावा कई क्षेत्र पहुंचविहीन है. लोगों तक शासकीय योजनाओं का लाभ पहुंचाना जनप्रतिनिधियों के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि अधिकतर क्षेत्रों में नक्सलियों का दबदबा है. हालांकि अब पहले से कुछ सुधार हुआ है, लेकिन फिर भी बस्तर लोकसभा क्षेत्र का कई हिस्सा नक्सलियों का दंश झेल रहा है. यहां रहने वाले ग्रामीणों का जीवन जंगल पर ही आधारित है. इन लोगों के जीवन से विकास कोसों दूर है. शिक्षा तो दूर की बात है, इन्हें बिजली, सड़क और पेयजल के लिए भी काफी जद्दोजहद करना पड़ता है. हालांकि ये लोकतंत्र के महापर्व में अपना योगदान देते हैं.
चुनावी इतिहास-
साल 1952 में निर्दलीय उम्मीदवार मुचाकी कोसा ने इस सीट पर जीत हासिल की.
साल 1957 में कांग्रेस उम्मीदवार सुरति किस्तैया ने जीत दर्ज की.
साल 1962 में निर्दलीय उम्मीदवार लखमु भवानी जीते.
साल 1967 में निर्दलीय उम्मीदवार जे सुंदरलाल को मिली जीत.
साल 1971 में निर्दलीय उम्मीदवार लंबोदर बलियार ने जीत हासिल की.
साल 1977 में बीएलडी उम्मीदवार द्रिगपाल शाह केशरी शाह ने जीत हासिल की थी.
साल 1980 में कांग्रेस से लक्ष्मण कर्मा ने जीत हासिल की.
साल 1984 में कांग्रेस से मनकुरम सोढ़ी ने जीत दर्ज की.
साल 1989 में कांग्रेस से मनकुरम सोढ़ी ने जीत हासिल की.
साल 1991 में कांग्रेस के मनकुरम सोढ़ी जीते.
साल 1996 में कांग्रेस के महेन्द्र कर्मा ने जीत हासिल की.
साल 1998 में बीजेपी के बलिराम कश्यप ने जीत हासिल की.
साल 1999 में बीजेपी से बलिराम कश्यप को जीत मिली
साल 2004 में भी बीजेपी से बलिराम कश्यप को जीत मिली.
साल 2009 में बीजेपी के बलिराम कश्यप को जीत मिली.
साल 2014 में बीजेपी के दिनेश कश्यप को जीत मिली.
साल 2019 में कांग्रेस से दीपक बैज को जीत मिली.
पिछले लोकसभा चुनाव में बस्तर का मतदान प्रतिशत
साल 2004 लोकसभा चुनाव में 43.33 फीसद मतदान
साल 2009 लोकसभा चुनाव में 47.34फीसद मतदान
साल 2014 लोकसभा चुनाव में 59.32 फीसद मतदान
साल 2019 लोकसभा चुनाव में 66.19 फीसद मतदान
यदि छत्तीसगढ़ के बस्तर लोकसभा की बात की जाये तो पिछले कुछ सालों से यहां भारतीय जनता पार्टी का कब्जा रहा है। बस्तर लोकसभा सीट पर जीत हार के पिछले आंकड़ों पर अगर हम गौर करें तो लगातार इस सीट पर पिछले कुछ सालों से बीजेपी जीत दर्ज करती आ रही थी. हालांकि साल 2019 में कांग्रेस के दीपक बैज को जीत मिली है. हालांकि इस बार दीपक बैज को विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा है. ऐसे में ये सीट फिर से जीतना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है, क्योंकि राज्य में बीजेपी सत्ता में है.