होली खेले - हैप्पी एंड सेफ होली, खान-पान का रखे ध्यान
हम सभी जानते है की होली रंगों का त्यौहार है इसमे अलग अलग रंगों से एक दुसरे को रंगा जाता है. इसमे खाने पीने का भी बहुत आनंद लिया जाता है. बहुत से लोगों को होली के बाद पेट में गड़बड़ी, सर्दी-जुखाम बुखार, आंखों में इन्फेक्शन तथा त्वचा से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है. होली का आनंद, आनंद ही रहे, खराब स्वास्थ्य या समस्याओं के कारण उसके रंग में भंग ना पड़ जाए इसलिए बहुत जरूरी है कि होली खेलते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाय. जिससे हमारे साथ साथ दूसरों को भी परेशानी न हो. होली के मौके पर रंग-गुलाल के साथ अगर गुजिया, चाट-पकौड़े, पकवानों, ठंडाई और कांजी के पानी का जायका ना लिया जाय तो होली का हुल्लड़ अधूरा ही लगता है! लेकिन होली के दिन अगर इन मजेदार जायकों का मजा जरुरत से यदि कुछ ज्यादा ही ले लिया जाय तो होली के बाद कई बार डॉक्टर को दिखाने की नौबत भी आ सकती है. होली के रंग में भंग ना पड़े इसलिए होली खेलते समय और होली के बाद कुछ सावधानी जरूरी है.
हम आज कल होली के दिन खाने पीने का सामान बाहर से ज्यादा लेट है ऐसा नही करना चाहिए घर में बने पकवान ही ज्यादा खाना चाहिए. आज के समय में भी होली को मनाने परंपरा पहले जैसी ही है, यानी रंग खेलना और जम कर खाना पीना. लेकिन जो चीज बदली है वह है होली को मनाने की तैयारी. पहले के समय में होली से तीन-चार दिन पहले से ही हर घर में बड़ी कढ़ाई लग जाती थी. जिनमें गुजिया, नमकीन और मीठे पकवान, चाट के लिए पपड़ी और गुजिया सब घर में ही साफ सफाई से बनते थे. वहीं पीने में ठंडाई के साथ घर में बनी गाजर/मूंग के बड़ों की जलजीरा या गुलाब/खस के शर्बत परोसे जाते थे. वहीं आजकल ज्यादातर लोग होली के दिन परोसे जाने वाले पकवान बाजार से लाते हैं. वहीं पेय पदार्थों में ज्यादातर लोग चाय या कोल्ड ड्रिंक्स और कुछ लोग शराब भी परोसते हैं. जो सेहत खासतौर पर पाचनतंत्र पर काफी भारी पड़ते हैं.
होली पर जब घर में पकवान बनाए जाते थे तो एक तो उनमें नुकसानदायक प्रिजर्वेटिव्स, खराब तेल या ज्यादा नमक-मसालों का इस्तेमाल नहीं होता था. जिससे सेहत पर ज्यादा असर नहीं पड़ता था. वहीं इस अवसर पर घर में बनने वाली अलग-अलग प्रकार की कांजी या ठंडाई पाचन को दुरुस्त रखने में और शरीर में जरूरी ऊर्जा बनाए रखने में मदद करती थी. आजकल एक तो वैसे ही हर उम्र के लोगों में गैस-एसिडिटी की समस्या आमतौर पर देखने में आने लगी है. वहीं सामान्य तौर पर लोगों के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी आजकल कम ही देखी जाती है. उस पर होली मौसम के संधिकाल में मनाई जाती है. इस मौसम को सामान्य तौर पर बीमारियों का मौसम भी कहा जाता है, क्योंकि जब मौसम बदलता है उस समय लोगों में सर्दी, जुखाम, बुखार, फ्लू या अन्य समस्याओं के मामले काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं. ऐसे में होली पर रंगों का हुल्लड़ और खानपान में लापरवाही होली के बाद लोगों की शारीरिक समस्याओं को ज्यादा बढ़ा देती है. हैप्पी व सेफ होली मनाये और अपना व् अपनों का ध्यान रखे.