दिल के करीब होती हैं बेटियां, जीवन की दिशा बदल देती हैं
आज बेटियों ने अपनी उपस्थिति का लोहा मनवा ही लिया है. बेटियां अब बेटों से आगे निकल चुकी हैं. सच तो ये है कि बेटियों के बिना घर सूना है. वे घर की नीव हैं, रौनक हैं, खिलखिलाहट हैं, हर रिश्ते की आधारशिला हैं. उनके प्रयास से ही जीवन को दिशा मिलती हैं. बेटियों के लिए कुविचार और कुदृष्टि रखने वालों को अपना मूल्यांकन करना चाहिए और बेटियों का सम्मान देना चाहिए.
बेटियों को बोझ समझने वाले, उन्हें पराया घर का मानने वाले और दो या दो से अधिक बेटियां होने पर अपने जीवन को निराशा में डूबो देने वाले, बहुत से परिवार बेटियों के जन्म पर गम में डूब जाते हैं. बेटियों के होने पर ना तो खुद खुश होते हैं ना दूसरों को खुश होकर दिलासा दे पाते हैं. लक्ष्मी आई है कहकर फीकी मुस्कान के साथ बेटी के मां-बाप का दिल भी बुझा देते हैं. कोई बात नहीं अगली बार बेटा ही होगा, ऐसा आश्वासन देकर स्वयं व दूसरों को तसल्ली देते हैं, जैसे बेटा पैदा होता तो सारे दु:ख हर लेता और बेटियां जन्म लेकर मानो खुशियों पर ग्रहण लगा देंगी. समाज की मानसिकता ही ऐसी बन गयी है जो बेटों के होने पर जश्न मनाता है और बेटियों का होना समझौता मान लिया जाता है.
हालांकि सभी ऐसी विचारधारा के नहीं होते पर लगभग अधिकतर परिवारों में बेटियों के होने पर माथे पर चिंता की लकीरें उभर ही आती हैं. आज बेटियों ने अपनी उपस्थिति का लोहा मनवा ही लिया है. नई विचाराधारा के मां-बाप उन्हें पढ़ा-लिखा कर सक्षम बना कर बेटों से भी ज्यादा ध्यान दे रहे हैं. बेटियां हर क्षेत्र में आगे हैं, यह बात तो पुरानी हो गई है. हां, बेटियां बेटों से आगे जरुर निकल चुकी हैं. दोनों परिवारों से सामांजस्य बनाकर बेटियां जिस स्थिति को प्राप्त हो रही हैं वह उनके अस्तित्व को दर्शाता है. उनके महत्व को प्रदर्शित करता है. आज उनके सम्मान में समाज भी नत है, उनका तिरस्कार करने वाले उनका आदर करते हैं. उनसे शादी करने को उत्सुक लड़कों का चयन करने और उन्हें नकार देने में भी वे पीछे नहीं हैं.
वर्तमान में उनकी स्वयं की मर्जी काफी अहम् है. कभी उनकी चौखट पर बारात आती थी, आज रुप चाहे कुछ भी हो बेटियां बारात लेकर जाती हैं. खुले मन से बेटे वाले भी उनकी आवभगत पूर्ण उत्साह से करते हैं. मेरठ की बेटी की घुड़चड़ी एक अनोखी पहल है. बेटों की घुड़चढ़ी तो सुनी और देखी है पर बेटी की घुड़चढ़ी परंपराओं का परिवर्तन है. सर्वविदित है कि बेटे के ना होने के कारण बेटी को बेटा मानकर उसकी शादी में घुढ़चढी की रस्म में माता-पिता व सगे संबंधियों ने अपनी खुशियों का इजहार खूब नाच गाकर किया. यह इस बात का प्रतीक है कि परंपराएं और मान्यताएं कभी भी किसी के द्वारा नवीन रुप में साकार हो सकती हैं. बेटी की घुड़चढ़ी को देखने वाले भी कम उत्साहित नहीं थे.
समाज में नई परंपरा का उन्मुक्त रुप वास्तव में स्वच्छंद और आशावादी दृष्टिकोण को दर्शाता है. कुछ रस्में बेटों तक ही सीमित कर दी गई हैं. बेटे ही घोड़े पर बैठते हैं, बेटे होने पर ही कुंआ पूजन की रस्म की जाती है. इन रस्मों को बेटियों के लिए करने से समाज में एक नई पहल होती है जो परिवार के सभी अरमानों को पूरा कर देती है और समदर्शिता का प्रतीक भी हैं. बेटियों की प्रगति से समाज व परिवार दोनों ही समृद्ध हो रहे हैं. बेटियों वालों के हौसले बुलंद व मन उत्साहित रहते हैं. बेटियों की काबलियत के सन्मुख लड़कों का चयन हो रहा है आज. प्राय: देखा जा रहा है लड़कों के लिए लड़कियों की तलाश की जा रही है. अपने योग्य वर ना मिलने से वे समझौता करने को तैयार नहीं हैं.
कहते हैं बेटा कुल को रोशन करता है पर बेटियां दोनों कुलों को रोशन कर रही हैं और रिश्तों के प्रति समर्पित भी हैं. अपना फर्ज निभाना बखूबी जानती हैं. आज लालू प्रसाद यादव की पुत्री रोहिणी के त्याग और बलिदान को विश्व ने देखा है. अपने पिता के जीवन को बचाने के लिए अपनी किडनी देकर स्वयं के जीवन को जोखिम में डालकर भी कितनी उत्साहित हैं. उनके पिता के प्रति प्यार और स्नेह के आगे सब नत हैं. उनके सम्मान में जितने भी शब्द कहें या लिखें जाएं कम हैं. 71 वर्ष की उम्र के अपने पिता की जिंदगी की खातिर इतना बड़ा निर्णय लेना वास्तव में संसार के लिए एक मिसाल है कि बेटियों के किसी भी रुप को देखें वे समझ से परे हैं. अकल्पनीय है उनका साथ, अनमोल है उनका प्यार. वे जीवंतता का पर्याय हैं. अंतर की गहराइयों से बेटियों का प्यार जीवन को खुशियों से भर देता है. बेटे जो करने में समर्थ नहीं बेटियां कर गुजरती हैं. रोहिणी के अतुलित समर्पण से प्रभावित गिरिराज जी के शब्द कि भगवान से लडऩे का मन है मेरे बेटी क्यों नहीं है, दिल को छू गए.
वास्तव में जिन घरों में बेटियां नहीं हैं वो उनके प्यार को जान हीं नहीं सकते. रोहिणी का ये कदम अनुकरणीय है. ऐसी बेटियों को शत-शत नमन. वह आज और कल हमेशा सबके लिए आदर्श महिला के रुप में उभर कर आती हैं. वे ना केवल माता-पिता बल्कि समाज व राष्ट्र के लिए भी गर्व का प्रतिरुप हैं. माता-पिता को बोझ समझने वाले बच्चे और उनकी सम्पत्ति पर अधिकार करने वाले बेटों को इस बात से प्रेरणा लेनी चाहिए कि माता-पिता को सर्वोपरि मानने वाली संतानें उनके लिए क्या कुछ नहीं कर गुजरती हैं. रोहिणी जैसी बेटियां हर घर में हैं. अपने बेटी होने पर हर लड़की को गर्व होना चाहिए. वह असंभव को संभव कर सकती हैं. विश्व का संचालन और विस्तार उन्हीं के द्वारा किया जाता है.
इसलिए बेटियों को सम्मान दें. बेटियां भी स्वयं को सम्मान देना ना भूलें. वे हमेशा समर्थ हैं और रहेंगी. धरती यूं ही नहीं कहते उन्हें. सहनशक्ति का भंडार हैं वे. हमेशा से अपने वजूद को विपरीत परिस्थितियों में भी बरकरार रखे हैं. सच तो ये है कि बेटियों के बिना घर सूना है. वे घर की नीव हैं, रौनक हैं, खिलखिलाहट हैं, हर रिश्ते की आधारशिला हैं. उनके प्रयास से ही जीवन को दिशा मिलती हैं. बेटियों के लिए कुविचार और कुदृष्टि रखने वालों को अपना मूल्यांकन करना चाहिए और बेटियों का सम्मान देना चाहिए. परिवार में बेटियों को बोझ मानने वाले उन्हें समझें, मौका दें, वे आपका भी भार उठाने में भी सक्षम हैं.