बस्तर संभाग में स्वास्थ्य सुविधाओं से आज भी अछूते हैं कई गांव - CGKIRAN

बस्तर संभाग में स्वास्थ्य सुविधाओं से आज भी अछूते हैं कई गांव


हमारी गरीब दलित बस्तियों में अधिकतर मानसिक समस्याओं से जूझ रहे लोगों को कभी भी सही इलाज नहीं मिल पाता बल्कि इसके विपरीत उनको झाड़-फूंक के नामपर अलग-अलग हिंसाओं का सामना ज़रूर करना पड़ता है। कई बार झाड़-फूंक करने वाले इलाज के नामपर बीमार लोगों के साथ बुरा बर्ताव करते हैं। उन्हें मारना, बाल नोंचना और रस्सी से पेड़ में बांधना जैसे व्यवहार अक्सर देखने को मिलते हैं, जिसमें बीमार इंसान के परिवारवाले भी अंधविश्वास में इस हिंसा में साथ देते हैं। किसी भी सभ्य समाज के लिए अंधविश्वास एक ऐसी बीमारी की तरह होता है जो समाज की जड़ों को अंदर ही अंदर खोखला करता चला जाता है। आधुनिक समाज में ज़िंदा ये झाड़-फूंक का अंधविश्वास आज भी न जाने कितनी जिंदगियों को जोखिम में डाल रहा है। 

छत्तीसगढ़ का बस्तर संभाग बुनियादी सुविधाओं की कमी से लंबे समय से जूझ रहा है. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में स्वास्थ सुविधा के नाम पर हालात काफी गम्भीर  हैं ,और हर रोज इलाज के अभाव में कई ग्रामीणों की जान भी जा रही है. आजादी के 75 साल बाद भी बिजली, सड़क पानी और सबसे ज्यादा जरूरी स्वास्थ सुविधा सैकड़ों गांवों तक नहीं पहुंची है. संभाग के बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा और नारायणपुर जिले के ऐसे कई कोर इलाके हैं जहां आज तक ना स्वास्थ्य केंद्र खुले है और ना ही इन गांवों तक कभी एंबुलेंस पहुंची है. विकास से अछूते इन गांव के ग्रामीणों को बीमार पड़ने पर काफी तकलीफों का सामना करना पड़ता है. बीते साल ही सुकमा, बीजापुर और दंतेवाड़ा के माढ़ इलाके में अज्ञात बीमारी से 60 से अधिक लोगों की मौत हो गई, हालांकि इन मौतों के आंकड़ों के बाद स्वास्थ विभाग की टीम सुदूर अंचलों के गांव में बड़ी मुश्किल से पहुंचकर कुछ दिनों तक मेडिकल कैंप लगाया, लेकिन स्थायी तौर पर स्वास्थ्य के लिए बुनियादी सुविधाएं आज तक सरकार यहां नहीं पहुंचा पाई है.  इन गांव तक ना स्वास्थ्य केंद्र खुल पाए हैं और ना ही कभी एंबुलेंस पहुंच पाई है, ऐसे हालातों में इन्हें स्वास्थ सुविधा का लाभ नहीं मिल पाता, हालांकि स्वास्थ्य मंत्री ने दावा जरूर किया है कि धीरे-धीरे हालात सुधरेंगे और स्वास्थ सुविधा पहुंचाने की सरकार की पूरी कोशिश होगी.

लिहाजा यहां के ग्रामीण बीमार पड़ने पर गांव के सिरहा गुनिया से झाड़-फूंक कराकर अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं और कई आपातकालीन स्थिति में गंभीर रूप से बीमार मरीजों को और गर्भवती महिलाओं को खाट में या कावड़ में 50 से 60 किलोमीटर पैदल चलकर स्वास्थ्य केंद्र तक पहुंचाने को मजबूर होते हैं, खुद स्वास्थ्य मंत्री टी.एस सिंह देव ने भी माना है कि बस्तर संभाग के 4 जिलों के ऐसे कई गांव हैं जो स्वास्थ सुविधाओं से पूरी तरह से अछूते हैं.


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