छत्तीसगढ़ी भाषा में होगी पहली से 5वीं तक पढ़ाई: लोककला और संस्कृति से जुड़ेगी शिक्षा, भाषा और बोली को मिलेगा बढ़ावा - CGKIRAN

छत्तीसगढ़ी भाषा में होगी पहली से 5वीं तक पढ़ाई: लोककला और संस्कृति से जुड़ेगी शिक्षा, भाषा और बोली को मिलेगा बढ़ावा


छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में पहली से पांचवीं तक के छात्र अब अपनी स्थानीय भाषा में पढ़ाई करेंगे। छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोककला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान को बढ़ावा देने के लिए अब स्कूलों में पहली से 5वीं तक के बच्चों को छत्तीसगढ़ी एक विषय के रूप में पढ़ाया जाएगा। सरकार के इस फैसले के पीछे का उद्देश्य बच्चों को छत्तीसगढ़ी के अवगत कराना है। इसके लिए SCERT पाठ्यक्रम तैयार कर रही है। प्रदेश के स्कूल शिक्षा विभाग ने अलग-अलग भाषाओं के जानकारों की मदद से स्टडी मटीरियल तैयार कराकर स्कूलों को उपलब्ध कराई हैं।  प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण बदलाव होने जा रहा है। सरकार ने पहली से पांचवीं कक्षा तक के बच्चों के लिए एक विषय के रूप में छत्तीसगढ़ी को शामिल करने की तैयारी शुरू कर दी है। इसका उद्देश्य न सिर्फ बच्चों को उनकी मातृभाषा से जोड़ना है, बल्कि उन्हें छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोककला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान से भी परिचित कराना है।

छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में लोग स्थानीय बोली-भाषा का उपयोग करते हैं। राज्य सरकार ने इन इलाकों के प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को उनकी भाषा में शिक्षा देने की नीति बनाई है।  यह पहल राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीइआरटी) द्वारा की जा रही है, जो इस नए पाठ्यक्रम को तैयार करने का जिम्मा संभालेगी। इस पाठ्यक्रम को तैयार करने के लिए परिषद छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों, लोक कलाकारों, गीतकारों, शिल्पकारों, संगीतकारों, नर्तकों और कहानीकारों से सहयोग लेगी। इन विशेषज्ञों की मदद से ऐसा कोर्स तैयार किया जाएगा जो बच्चों को अपनी जड़ों से जोड़े रखे।

बच्चे अपनी मातृभाषा में तेजी से सीखते हैं

मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाविदों का मानना है कि बच्चे अपनी मातृभाषा में अवधारणाओं को बेहतर ढंग से समझते हैं और उनमें सोचने की क्षमता का विकास तेजी से होता है। छत्तीसगढ़ी में पढ़ाई शुरू होने से बच्चे न केवल अपनी भाषा को लेकर गर्व महसूस करेंगे, बल्कि लोक गीतों, कहानियों और नाटकों के माध्यम से वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को भी करीब से जान पाएंगे। यह बच्चों में छत्तीसगढ़ की पहचान और संस्कृति के प्रति जागरूकता बढ़ाने में भी मदद करेगा।

पाठ्यक्रम होगा खास

एससीइआरटी का लक्ष्य केवल व्याकरण और भाषा ज्ञान तक सीमित नहीं है। बल्कि पाठ्यक्रम को इस तरह से डिजाइन किया जाएगा कि वह बच्चों के लिए मनोरंजक और ज्ञानवर्धक हो। इसमें छत्तीसगढ़ की लोककथाएं जैसे लोरिक चंदा, ढोला मारु और देवारों की कथाएं शामिल की जा सकती हैं। इसके अलावा राज्य के प्रमुख त्योहारों जैसे पोला, हरेली और छेरछेरा के बारे में भी कहानियों और कविताओं के माध्यम से जानकारी दी जाएगी।

इस पाठ्यक्रम में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खेल, शिल्प, और संगीत के वाद्य यंत्रों को भी शामिल किया जाएगा। इससे बच्चों को न केवल सैद्धांतिक ज्ञान मिलेगा, बल्कि वे अपनी संस्कृति के व्यावहारिक पहलुओं को भी सीख पाएंगे। यह बच्चों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि यह पहल इसी शिक्षा सत्र से शुरू होगी या अगले से, लेकिन सरकार इस पर गंभीरता से काम कर रही है।

कब तक लागू होगा नया कोर्स

हालांकि अभी तक यह तय नहीं है कि इस कोर्स को सत्र में कब तक लागू किया जाएगा। वहीं, अभी तक यह भी तय नहीं हुआ है कि सभी सब्जेक्ट को इसमें जोड़ा जाएगा या फिर सिर्फ एक ही विषय को छत्तीसगढ़ी भाषा में पढ़ाया जाएगा। वहीं इसपर मोर चिन्हारी छत्तीसगढ़ी मंच के प्रांतीय संयोजक नंदकिशोर शुक्ल ने कहा कि स्कूलों में स्थानीय भाषा में पढ़ाई करवाने की पहली करना अच्छा है। इससे बच्चों को पढ़ने में ज्यादा आसानी होगी और वह इससे आसानी से भी समझ सकता है।

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