छत्तीसगढ़ का पहला ट्राइबल म्यूजियम जनजातियों की कलाकृति के लिए है फेमस
छत्तीसगढ़ के नवा रायपुर में पहला ट्राइबल म्यूजियम स्थापित किया गया है, जो 43 जनजातियों की संस्कृति को प्रदर्शित करता है और इनकी अनेकों उपजातियाँ हैं। इसके साथ ही हमारे राज्य में विशेष पिछड़ी जनजातियाँ भी हैं। जनजातीय समुदाय का सुंदर संसार, इनका खानपान, पहनावा, संगीत, लोककला, वाद्ययंत्र, नृत्य इन सबकी झलक म्यूजियम में दिखेगी। इसमें 14 गैलरी हैं और हर गैलरी एक विशेष थीम पर बनाई गई है। . यह संग्रहालय 10 एकड़ में फैला है और 3D होलोग्राफिक डिस्प्ले, डिजिटल डिस्प्ले और इंटरएक्टिव इंस्टॉलेशन के जरिए जनजातीय जीवन का सजीव अनुभव कराता है.म्यूजियम का प्रवेश द्वार लकड़ी और मिट्टी की पारंपरिक जनजातीय स्थापत्य कला से सुसज्जित है. यहां से अंदर प्रवेश करते ही आगंतुक जनजातीय जीवन के रंगों में खो जाते हैं. यह संग्रहालय हर दिन सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक दर्शकों के लिए खुला रहता है.
यहां लकड़ी की मूर्तियां, चित्रकला, मिट्टी के बर्तन और बांस से बनी हस्तनिर्मित वस्तुएं जनजातीय शिल्पकला की विविधता को दर्शाती हैं.संग्रहालय में पारंपरिक वाद्ययंत्रों और जनजातीय नृत्य की डिजिटल झलकियां शामिल हैं. आगंतुक यहां बैठकर ध्वनि और दृश्य माध्यम से इनका अनुभव ले सकते हैं म्यूजियम की सबसे अत्याधुनिक विशेषता है 3D डिस्प्ले बॉक्स, जिनमें जनजातीय जीवन, त्योहार और पूजा पद्धतियों को टेक्नोलॉजी के जरिए इंटरएक्टिव रूप में दिखाया गया है. यह पहल राज्य की जनजातीय विरासत को आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित पहुंचाने की दिशा में मील का पत्थर साबित हो रही है यह संग्रहालय न केवल आदिवासी समाज की परंपराओं, कला और संस्कृति को संरक्षित करेगा, बल्कि युवा पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने में भी अहम भूमिका निभाएगा। संग्रहालय में छत्तीसगढ़ के विभिन्न जनजातीय समुदायों की जीवनशैली, वेशभूषा, लोककला, रीति-रिवाज और धार्मिक मान्यताओं को दृश्य और डिजिटल माध्यमों से दर्शाया गया है। उन्होंने कहा कि इस म्यूजियम में हमारे जनजातीय क्षेत्रों की बहुरंगी संस्कृति की झलक दिखाई गई है। यह झलक दर्शकों को इस बात के लिए प्रेरित करेगी कि वे बस्तर और सरगुजा घूमने जाएं और जिन चीजों को उन्होंने इस म्यूजियम में महसूस किया है उसे वहां प्रत्यक्ष रूप में देख सकें।
जनजातीय संग्रहालय में कुल 14 गैलरियां हैं, जिनमें जनजातीय जीवनशैली के सभी पहलुओं का बहुत ही खूबसूरत ढ़ंग से जीवंत प्रदर्शन किया गया है। इनमें जनजातियों के भौगोलिक विवरण, तीज-त्यौहार, पर्व-महोत्सव तथा विशिष्ट संस्कृति, आवास एवं घरेलू उपकरण, शिकार उपकरण, वस्त्र (परिधान) एवं आभूषण, कृषि तकनीक एवं उपकरणों, जनजातीय नृत्य, जनजातीय वाद्ययंत्रों, आग जलाने, लौह निर्माण, रस्सी निर्माण, फसल मिंजाई (पौधों से बीज अलग करना), कत्था निर्माण, चिवड़ा-लाई निर्माण, मंद आसवन, अन्न कुटाई व पिसाई, तेल प्रसंस्करण हेतु उपयोग में लाने जाने वाले उपकरणो व परंपरागत तकनीकों, को दर्शाया गया हैं। वहीं सांस्कृतिक विरासत के अंतर्गत अबुझमाड़िया में गोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला इत्यादि, जनजातीय में परम्परागत कला कौशल जैसे बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला आदि का एवं अंतिम गैलरी में विषेष रूप से कमजोर जनजाति समूह यथा अबूझमाड़िया, बैगा, कमार, पहाड़ी कोरवा, बिरहोर एवं राज्य शासन द्वारा मान्य भुंजिया एवं पण्डो के विशेषीकृत पहलुओं का प्रदर्शन किया गया है। संग्रहालय में डिजिटल एवं एआई तकनीक के माध्यम से जनजातीय संस्कृति का भी प्रदर्शन किया गया है। क्यूआर कोड स्कैन करते ही सम्बंधित झांकी की सम्पूर्ण जानकारी मोबाइल पर उपलब्ध हो जाएगी।