बांस के नीचे उगता है फुटू,स्वाद का जवाब नहीं - CGKIRAN

बांस के नीचे उगता है फुटू,स्वाद का जवाब नहीं


छत्तीसगढ़ की धरती न केवल धान के कटोरे के रूप में प्रसिद्ध है बल्कि यहां की जैव विविधता भी अनमोल है. बरसात के मौसम में गांव-देहात के लोग जंगलों की ओर रुख करते हैं, जहां उन्हें प्राकृतिक रूप से उगने वाला एक खास मशरूम मिलता है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘फुटू’ कहा जाता है. यह मशरूम छत्तीसगढ़ में पारंपरिक खानपान का हिस्सा रहा है और इसकी लोकप्रियता आज भी बरकरार है. बांस फुटू जिसे वैज्ञानिक तौर पर भिम्भोरा मशरूम की प्रजाति माना जाता है, विशेष रूप से बांस के पेड़ के नीचे उगता है. यही वजह है कि इसे आम बोलचाल में ‘बांस फुटू’ भी कहा जाता है. मशरूम जंगलों में प्राकृतिक रूप से विकसित होता है और इसे कृत्रिम रूप से नहीं उगाया जा सकता.

बांस फुटू की पहचान करना बेहद जरूरी है क्योंकि इसके जैसे दिखने वाले कई अन्य मशरूम जंगलों में पाए जाते हैं. हालांकि वे जहरीले नहीं होते लेकिन उनमें कड़वाहट होती है और ये खाने योग्य नहीं होते, इसलिए स्थानीय ग्रामीणों और अनुभवी लोगों से इसकी पहचान कर ही इसका सेवन किया जाना चाहिए. यह मशरूम आमतौर पर बांस के झुरमुटों के नीचे, गीली मिट्टी और दीमक की मांद के आसपास उगता है. इसकी छतरी नर्म, हल्के सफेद या भूरे रंग की होती है और यह मिट्टी से ऊपर की ओर निकलता है. इसमें एक खास प्रकार की खुशबू भी होती है, जो इसे अन्य प्रजातियों से अलग बनाती है.जब इसकी पहचान पूरी तरह से सुनिश्चित हो जाए. गलत प्रजाति खाने से पाचन संबंधी दिक्कतें या स्वाद में कड़वाहट हो सकती है, इसलिए अज्ञात या शक वाले मशरूम से परहेज करना ही बेहतर है. छत्तीसगढ़ की मिट्टी और पर्यावरण में जन्मा यह ‘बांस फुटू’ न केवल स्थानीय खानपान का हिस्सा है बल्कि यहां की सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक ज्ञान की भी एक मिसाल है. बारिश के दिनों में जब धरती हरी चादर ओढ़ लेती है, तब बांस के नीचे से उगता यह प्राकृतिक तोहफा, हर ग्रामीण के लिए एक खास सौगात बन जाता है.

फुटू स्वाद में बेहद लाजवाब होता है और इसकी सब्जी बनाकर खाई जाती है. इसमें प्रोटीन, फाइबर और कई तरह के विटामिन्स होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होते हैं. छत्तीसगढ़ में यह मशरूम सिर्फ बरसात के मौसम में ही मिलता है, जो इसे और भी खास बनाता है. छत्तीसगढ़ के आदिवासी और ग्रामीण समुदायों में फुटू का विशेष स्थान है. बरसात की शुरुआत के साथ ही लोग जंगलों में निकलते हैं और बड़े उत्साह से फुटू इकठ्ठा करते हैं. यह सिर्फ भोजन नहीं बल्कि एक पारंपरिक परंपरा का हिस्सा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है.


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