नारियल छिलके से भी अब किसानों की कमाई, बनेगा आय का एक नया स्रोत
नारियल छिलके से पहले रेशा और बुरादा निकाला जाता है. यही बुरादा प्रोसेस होकर कोको पीट बनता है, जिसका उपयोग सोइल-लेस खेती, यानी बिना मिट्टी की खेती में किया जाता है. यह तरीका शहरी किचन गार्डन और हाइड्रोपोनिक्स में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है. कोको पीट की खासियत यह है कि यह मिट्टी की तरह उर्वरकों को अवशोषित नहीं करता, बल्कि सीधे पौधे को उपलब्ध कराता है, जिससे पोषक तत्वों की बर्बादी नहीं होती.इस काम के लिए कॉलेज ने एक विशेष मशीन तैयार की है, जिसकी मदद से प्रति घंटा करीब 20 क्विंटल नारियल छिलकों को प्रोसेस किया जा सकता है. यह मशीन रेशा और पावडर को स्वत: अलग करती है, जिससे किसान को तैयार फिनिश प्रोडक्ट तुरंत मिल जाता है. मशीन की कीमत 2.75 लाख रुपए है और इसे ट्रैक्टर से जोड़कर पीटीओ के माध्यम से कहीं भी ले जाया जा सकता है. इससे गांवों या नारियल बहुल क्षेत्रों में किसानों को कहीं भी जाकर मटेरियल प्रोसेस करने की सुविधा मिलती है.
बाजार की बात करें तो एक किलो कच्चा छिलका मात्र 2 प्रति किलो बिकता है, वहीं जब यही बुरादा कोको पीट में प्रोसेस होकर तैयार होता है तो 400 रुपए प्रति किलो तक की कीमत में ऑनलाइन बिकता है. खास बात यह है कि शहरी क्षेत्रों में गृह वाटिका यानी किचन गार्डन रखने वाले लोग मिट्टी की जगह कोको पीट का ही उपयोग करते हैं, जिससे इसकी मांग निरंतर बनी हुई है तकनीक उन किसानों के लिए एडिशनल इनकम और स्टार्टअप अवसर के रूप में बेहद उपयोगी साबित हो सकती है, जो कम लागत में कृषि आधारित व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं. इसके लिए विश्वविद्यालय किसानों को प्रशिक्षण और तकनीकी मार्गदर्शन देने के लिए भी तैयार है. कुल मिलाकर यह नवाचार सिर्फ एक मशीन नहीं, बल्कि किसानों के लिए एक नए युग की शुरुआत है, जहां कचरा समझे जाने वाले नारियल छिलके से अब कमाई होगी वह भी हजारों में नहीं, लाखों में !