बस्तर पंडुम क्या है....!
बस्तर पंडुम केवल एक महोत्सव नहीं है, बल्कि यह जनजातीय जीवन का पूरा स्केच है. बस्तर पंडुम के जरिए इस संस्कृति को एक मंच दिया जा रहा है और इसके प्रदर्शन के माध्यम से अगली पीढ़ी तक पहुंचाने का प्रयास किया जा रहा है. बस्तर पंडुम के जरिए बस्तर संभाग की अनूठी लोककला, संस्कृति, रीति-रिवाज और पारंपरिक जीवनशैली को मंच मिलेगा. बस्तर पंडुम 2025 का आयोजन न केवल बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का प्रयास है, बल्कि इस क्षेत्र के प्रतिभाशाली कलाकारों को मंच देने और उनकी कला को प्रोत्साहन प्रदान करने का सुनहरा अवसर भी है.
बस्तर की जनजातीय पारंपरिक कला, नृत्य, जनजातीय व्यंजन, स्थानीय खाद्य पदार्थ और संस्कृति को संरक्षित करने के उद्देश्य से बस्तर पंडुम का आयोजन किया जा रहा है सरकार और समाज के सहयोग से बस्तर की सांस्कृतिक विरासत हो संरक्षित किया जा रहा है। बस्तर पंडुम हमारी संस्कृति की समीक्षा करने का मौका दे रहा है. आधुनिक जीवन शैली को स्वीकार करते हुए भी अपनी विरासत को बचाए रखना ही सही मायने में समाज को एक सूत्र में बांधना है. इस तरह के आयोजन से निश्चित रूप से बस्तर की आदिवासी सांस्कृतिक विरासत को अखंड बनाए रखने में मदद मिलेगी. खास बात यह है कि इस कार्यक्रम में बस्तर के सात जिलों सहित असम, ओडिशा, कर्नाटक, मध्य प्रदेश तेलंगाना राज्यों के करीब 1200 कलाकार भाग ले रहे हैं. पंडुम के जरिए बस्तर की लोक कला को नई पीढ़ी तक पहुंचाने और स्थानीय लोक कलाकार को अपनी प्रतिभा दिखाने का मंच दिया गया है.
वहीं सीएम विष्णुदेव साय ने कहा कि बस्तर पंडुम, जनजातीय संस्कृति का भव्य उत्सव है. इस आयोजन के माध्यम से बस्तर पारंपरिक नृत्य, लोकगीत, हस्तशिल्प और आदिवासी रीति रिवाजों को नया मंच मिला है, जिससे न केवल स्थानीय संस्कृति को नई पहचान मिली है बल्कि पर्यटन को भी बढ़ावा मिला है. मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय की मंशा के अनुरूप आयोजित इस महोत्सव में बस्तर संभाग की अनूठी लोककला, संस्कृति, रीति-रिवाज और पारंपरिक जीवनशैली को मंच मिला। ‘‘बस्तर पंडुम 2025’’ का आयोजन न केवल बस्तर की सांस्कृतिक धरोहर को सहेजने का प्रयास है, बल्कि इस क्षेत्र के प्रतिभाशाली कलाकारों को मंच देने और उनकी कला को प्रोत्साहन प्रदान करने का सुनहरा अवसर भी है।