खांसी, दमा, और गले की खराश जैसे रोगों में कारगर माना गया है हर्रा .
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में हर्रा का उपयोग पेट, त्वचा और फेफड़ों की समस्याओं के इलाज के लिए होता है. यह त्रिफला का मुख्य घटक है और पाचन में फायदेमंद है छत्तीसगढ़ एक वनसमृद्ध राज्य है जहां आज भी पारंपरिक चिकित्सा पद्धति और जड़ी-बूटियों पर लोगों का गहरा विश्वास है. ग्रामीण क्षेत्रों में आदिवासी समुदाय आज भी कई बीमारियों का इलाज जंगलों में पाई जाने वाली औषधीय वनस्पतियों से करते हैं. इन्हीं में से एक है हर्रा जो पेट, त्वचा और फेफड़ों से जुड़ी समस्याओं के इलाज में बेहद फायदेमंद मानी जाती है. इसका उपयोग छत्तीसगढ़ के गांव-गांव में पीढ़ियों से किया जा रहा है.
हर्रा एक मध्यम आकार का वृक्ष होता है जो मुख्यतः वनों में पाया जाता है. इसके फल अंडाकार, कड़े और हरे रंग के होते हैं जो पकने पर पीले-भूरे हो जाते हैं. आयुर्वेद में इसे त्रिफला का एक मुख्य घटक माना गया है. हर्रा का उपयोग विशेष रूप से उसके सूखे फलों से औषधि बनाने में किया जाता है. छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में हर्रा का प्रयोग पाचन से संबंधित समस्याओं के लिए सबसे अधिक किया जाता है. हर्रा कब्ज, गैस, पेट दर्द, और भूख न लगने जैसी समस्याओं को दूर करता है. इसका चूर्ण गुनगुने पानी के साथ रात को लेने से पेट साफ होता है और पाचन शक्ति बढ़ती है.
हर्रा में एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण होते हैं. फोड़े-फुंसी, खुजली, जलन, और एक्ज़िमा जैसी त्वचा समस्याओं में इसका लेप बहुत प्रभावशाली माना जाता है. सूखे हर्रे के चूर्ण को पानी या नारियल तेल में मिलाकर प्रभावित स्थान पर लगाने से राहत मिलती है. ग्रामीण क्षेत्रों में हर्रा का मंजन के रूप में उपयोग किया जाता है. यह मसूड़ों को मजबूत करता है, दांतों की सड़न को रोकता है और मुंह की दुर्गंध को खत्म करता है. हर्रा चूर्ण को सरसों तेल में मिलाकर मसूड़ों की मालिश करना बहुत फायदेमंद होता है. खांसी, दमा, और गले की खराश जैसे श्वसन संबंधी रोगों में हर्रा कारगर माना गया है. इसका चूर्ण शहद या गर्म पानी के साथ लेने से बलगम निकलता है और फेफड़े साफ होते हैं. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वैद्य इसे "स्वास रोगों की संजीवनी" मानते हैं.
हर्रा के पके फलों को इकट्ठा कर छायादार स्थान पर सुखाया जाता है. इसके बाद बीज निकालकर गूदा पीस लिया जाता है. तैयार चूर्ण को सूखे और साफ कंटेनर में रखा जाता है. यह चूर्ण 5-6 महीने तक प्रभावी रहता है. गांवों में लोग इसे घर में ही तैयार कर लेते हैं. हर्रा एक प्राकृतिक औषधि है, लेकिन किसी भी औषधि की तरह इसकी सीमाएं भी हैं. इसका अधिक सेवन दस्त और पेट दर्द का कारण बन सकता है. गर्भवती महिलाओं, बच्चों और गंभीर रोगियों को डॉक्टर या वैद्य की सलाह लेकर ही इसका सेवन करना चाहिए. छत्तीसगढ़ के पारंपरिक ज्ञान में हर्रा का स्थान विशेष है और यह आज भी वहाँ की चिकित्सा संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है .