दुर्ग का सिकंदर कौन...? , दुर्ग लोस में जाति समीकरण हो सकता है निर्णायक
लोकसभा चुनाव को लेकर राजनैतिक दलों ने कमर कस ली है. बीजेपी ने दुर्ग लोकसभा सीट से विजय बघेल को तो वहीं दुर्ग लोकसभा से कांग्रेस ने राजेंद्र साहू के नाम की घोषणा की है. जातीय समीकरण को भुनाकर दुर्ग संसदीय क्षेत्र में पहले लगातार चार बार और पिछली बार वोटों के बड़ेअंतर से कब्जा जमाने वाली भाजपा के फॉर्मूले को कांग्रेस ने अपनाया है। दरअसल भाजपा ने इस बार भी पिछली बार रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करने वाले सांसद विजय बघेल को मैदान में उतारा है। इसके जवाब में कांग्रेस ने साहू समाज पर दांव लगाते हुए जिला सहकारी केंद्रीय बैंक के पूर्व अध्यक्ष राजेंद्र साहू को मैदान में उतारा है। साहू समाज का झुकाव अमूमन भाजपा की ओर माना जाता है। इसके बाद भी साहू को मैदान में उतारने के फैसले को मौजूदा सांसद विजय बघेल के खिलाफ जिले की जातीय समीकरण को भुनाने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। बता दें कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बाद भी दुर्ग सीट से भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। कांग्रेस के ताम्रध्वज साहू ने यह चुनाव जीत लिया था। वे छत्तीसगढ़ से एक मात्र कांग्रेसी सांसद थे। 11 में से 10 सीटें भाजपा ने जीती, सिर्फ दुर्ग से कांग्रेस दिल्ली तक पहुंच पाई थी। इधर कांग्रेस ने युवा चेहरा राजेन्द्र साहू को दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है।
दुर्ग लोकसभा के चुनाव में जाति समीकरण हमेशा निर्णायक रहा है। विजय बघेल कूर्मि और राजेन्द्र साहू वर्ग से आते है। क्षेत्र में 20 फीसदी साहू और 15 फीसदी कूर्मि मतदाता है। दोनो दलों के प्रत्याशी व नेताओं का इस चुनाव में इस पर विशेष फोकस होगा। भाजपा-कांग्रेस द्वारा प्रत्याशियों की घोषणा के बाद राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है। चौक-चौराहों पर प्रत्याशियों को लेकर आंकलन भी शुरु हो गया है। विजय बघेल को भाजपा द्वारा दोबारा उम्मीदवार बनाए जाने से पार्टी में अंतर्कलह की बातें सामने आने लगी हैं। इसके अलावा उनका कोई बड़ा काम लोगों को लोकसभा क्षेत्र में नजर नहीं आ रहा है। लोग पहले से नाखुश थे। इस सीट पर कांग्रेस के युवा चेहरे राजेंद्र साहू को प्रत्याशी बनाए जाने से भाजपा की मुश्किलें बढ़ गई हैं। भाजपा से विजय बघेल इस समय सांसद हैं। वे पिछली चुनाव में 3,91,978 वोटों के बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। उन्होंने कांग्रेस की प्रतिमा चंद्राकर को चुनाव हराया था। मोदी लहर में उनकी भी चल निकली थी। इस बार ऐसा माहौल बनते नजर नहीं आ रहा है। विजय बघेल को लेकर कार्यकर्ताओं में जहां पहले की तरह उत्साह नहीं है। वहीं आम जनता के बीच भी बघेल अपनी छवि बनाने में कमजोर साबित हुए हैं।
जाति आधारित राजनीति में भाजपा को दुर्ग संसदीय क्षेत्र में पहली सफलता वर्ष 1996 के ग्याहवीं लोकसभा चुनाव में मिली थी। भाजपा ने क्षेत्र में कांग्रेस से लगातार पराजय से उबरने जाति का कार्ड खेलते हुए सर्वाधिक आबादी वाले साहू समाज के प्रतिनिधि दिवंगत नेता ताराचंद साहू को मैदान में उतारा था। ग्यारहवीं लोकसभा चुनाव के साथ 1998, 1999 व 2004 के चौदहवीं लोकसभा चुनाव में लगातार चार बार जीत दर्ज करने में सफल रही।
पिछली बार दोनों दलों ने साहू समाज को दरकिनार कर कुर्मी समाज का प्रत्याशी उतार दिया। इसमें मौजूदा सांसद विजय बघेल रिकॉर्ड मतों से जीत दर्ज करने में सफल रहे। इस बार वे दोबारा भाजपा की ओर से प्रत्याशी है। कांग्रेस ने इस बार भी 2014 का गणित आजमाते हुए साहू समाज के राजेंद्र को मैदान में उतार दिया है।
लोस में 4.75 लाख साहू मतदाता
वर्ष 2009 के लोकसभा क्षेत्र में 14 लाख 98 हजार 937 मतदाता थे। इनमें सर्वाधिक 3 लाख 29 हजार 768 साहू समाज के थे। पिछली बार मतदाताओं की संख्या 17 लाख 55 हजार से अधिक थी। इसमें साहू समाज के मतदाताओं की संख्या 3 लाख 75 हजार से अधिक थी। इस बार दुर्ग के 14 लाख 8 हजार 376 और बेमेतरा जिले के 6 लाख 37 हजार 378 मतदाताओं को मिलाकर 20 लाख 45 हजार 754 मतदाता है। इनमें 4 लाख 75 हजार से ज्यादा साहू हैं।
कड़ी टक्कर की संभावना
दोनों दलों के प्रत्याशियों के नामों की घोषणा से दुर्ग लोकसभा सीट पर मुकबला तय हो गया है। पिछले चुनाव में सांसद विजय बघेल ने 3 लाख 91 हजार मतों के विशाल अंतर से जीत दर्ज की थी। तब उनके खिलाफ कुर्मी समाज का प्रत्याशी था। इस बार जातीय समीकरण कारगर साबित हुआ तो राजेंद्र साहू उन्हें तगड़ी चुनौती प्रस्तुत कर सकते हैं। हालांकि सांसद विजय बघेल ने विधानसभा चुनाव में पाटन में तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को कड़ी टक्कर दी थी। बताया जा रहा है कि राजेंद्र साहू सामाजिक रूप से सक्रिय रहते हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि दोनों के बीच मुकाबला कड़ा होगा।