डोंगरगढ़ विकासखंड की प्राथमिक शाला पिपरिया में शिक्षिका की अनूठी पहल, बनाई अलग पहचान - CGKIRAN

डोंगरगढ़ विकासखंड की प्राथमिक शाला पिपरिया में शिक्षिका की अनूठी पहल, बनाई अलग पहचान


छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले के डोंगरगढ़ विकासखंड की प्राथमिक शाला पिपरिया ने शिक्षा में एक अनूठी पहल की है। यहां अब क्लासरूम में कोई भी विद्यार्थी पीछे की सीट पर नहीं बैठता। शिक्षिका सुमिता शर्मा ने बच्चों को 'यू' आकार में बैठाने की व्यवस्था की है। इस बदलाव से कक्षा पहली से पांचवीं तक के सभी बच्चों पर शिक्षक की समान नजर बनी रहती है। दीवारों के सहारे इस तरह से लगाए गए टेबल-बेंच सुनिश्चित करते हैं कि हर बच्चा फ्रंट रो में रहे और शिक्षक को स्पष्ट देख सके। इस व्यवस्था से बच्चों में आत्मविश्वास और सक्रियता बढ़ी है। इससे शिक्षक-छात्र का जुड़ाव बढ़ता है और वह हर बच्चे पर पूरा ध्यान दे पाती हैं। परिणाम स्वरूप, बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ी है और सभी को बराबर अवसर मिल रहा है। प्राथमिक शाला पिपरिया में प्रत्येक कक्षा में 20 से 25 बच्चे हैं। यहां अपनाई गई 'यू' आकार की बैठक व्यवस्था ने पारंपरिक कक्षाओं में पीछे बैठने वाले छात्रों को होने वाली बोर्ड देखने या समझने की दिक्कत को पूरी तरह खत्म कर दिया है।नई व्यवस्था में सभी बच्चे ध्यान से पढ़ते और बेझिझक सवाल पूछते नजर आ रहे हैं, जिससे 'बैकबेंचर' की अवधारणा समाप्त हो गई है। इस स्कूल में पहली से पांचवीं तक कुल 75 छात्र अध्ययनरत हैं। शिक्षिका ने यू आकार में बैठक व्यवस्था हाल में ही अपनाई है। यह बैठक व्यवस्था सभी छात्रों को कक्षा में समान रूप से शामिल होने और सीखने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लेने का अवसर दे रही है। यह एक बेहद सकारात्मक बदलाव है, जो छात्रों के बीच समान अवसर और भागीदारी को बढ़ावा देता है। अभिभावकों ने भी इस पहल की प्रशंसा की है।

दीवारों पर पढाई से संबंधित चित्र, चार्ट और स्लोगन

प्राथमिक शाला में विद्यार्थियों को एक निजी स्कूल की तर्ज पर सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है। यहां की दीवारों से बच्चे ज्ञानवर्धन जानकारियां अर्जित कर रहे हैं। स्कूल की दीवारों पर पढाई से संबंधित चित्र, चार्ट और स्लोगन लिखाए गए हैं। दीवारों में ए से जेड तक अक्षर, गिनती, रंगों के नाम, जानवरों के नाम, फलों के नाम, शरीर के अंगों के नाम, पर्यावरण संरक्षण से संबंधित संदेश लिखे हुए हैं।

फिल्म देख कर आया विचार

यह विचार 2024 में आई मलयालम फिल्म 'स्थानार्थी श्रीकुट्टन' से प्रेरित है, जिसमें एक छात्र को पिछली सीट पर बैठने की वजह से अपमान का सामना करना पड़ा और उसने इस अनोखी व्यवस्था का सुझाव दिया। शिक्षकों का कहना है कि यह पारंपरिक व्यवस्था से कहीं ज्यादा कारगर है। शिक्षक हर बच्चे पर समान रूप से ध्यान दे पाते हैं। बच्चे भी सीधा जुड़ाव महसूस करते हैं। तमिलनाडु सरकार ने इसी सत्र से सभी सरकारी स्कूलों में छात्रों के बैठने की व्यवस्था को अब तमिल अक्षर पा या अंग्रेजी के 'यू' अक्षर की तरह करने का आदेश दिया है।

बच्चों में बढ़ा आत्मविश्वास

शिक्षिका सुमिता शर्मा बताती हैं कि यू-आकार में बैठने से बच्चों पर पूरी नजर रहती है। सामने की बेंच में बैठने से बच्चों में आत्मविश्वास भी बढ़ा है। क्लास रूम में पहली रो- की बेंच में बैठने को लेकर बच्चे अक्सर झगड़ा करते थे। अभिभावकों की भी शिकायतें आती थी, तभी मन में नवाचार करने का ख्याल आया और बच्चों को यू-आकार में बैठाकर पढ़ाई करना शुरू की।

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