छत्तीसगढ़
विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरे पर्व का आगाज हो चुका है. 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरे पर्व में 12 से अधिक रोचक और अनोखी रस्में निभाई जाती है. 600 साल पुराने इस दशहरे पर्व की खास बात ये है कि असुरों की नगरी रहे बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता . बल्कि 8 चक्के वाले विशालकाय रथ में बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी के छत्र को सवार करके शहर में भ्रमण करवाया जाता है. यही कारण है कि इस दशहरे पर्व को करीब से निहारने के लिए हर साल देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.बस्तर दशहरा की शुरुआत 24 जुलाई को पाट जात्रा पूजा विधान से होगी, जिसमें एक पवित्र लकड़ी को लाकर दंतेश्वरी मंदिर परिसर में पूजा जाता है। इसे टुरलू खोटला कहा जाता है, जिससे रथ निर्माण के लिए औजार बनाए जाते हैं। इस परंपरा के बाद रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसके लिए लकड़ियां जंगल से लाने का काम शुरू जाता है।दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है और आज भी पूरी श्रद्धा और रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है। यह भी मान्यता है कि पुरुषोत्तम देव जब जगन्नाथ पुरी से रथपति की उपाधि लेकर बस्तर पहुंचे थे, तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई।
24 जुलाई से बस्तर दशहरा पर्व का आगाज, परंपरा और आदिवासी संस्कृति का अद्भुत संगम
Tuesday, July 22, 2025
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विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरे पर्व का आगाज हो चुका है. 75 दिनों तक चलने वाले इस दशहरे पर्व में 12 से अधिक रोचक और अनोखी रस्में निभाई जाती है. 600 साल पुराने इस दशहरे पर्व की खास बात ये है कि असुरों की नगरी रहे बस्तर में रावण का पुतला दहन नहीं किया जाता . बल्कि 8 चक्के वाले विशालकाय रथ में बस्तर की आराध्य देवी दंतेश्वरी के छत्र को सवार करके शहर में भ्रमण करवाया जाता है. यही कारण है कि इस दशहरे पर्व को करीब से निहारने के लिए हर साल देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी हजारों की संख्या में पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.बस्तर दशहरा की शुरुआत 24 जुलाई को पाट जात्रा पूजा विधान से होगी, जिसमें एक पवित्र लकड़ी को लाकर दंतेश्वरी मंदिर परिसर में पूजा जाता है। इसे टुरलू खोटला कहा जाता है, जिससे रथ निर्माण के लिए औजार बनाए जाते हैं। इस परंपरा के बाद रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है, जिसके लिए लकड़ियां जंगल से लाने का काम शुरू जाता है।दंतेश्वरी मंदिर के प्रधान पुजारी ने बताया कि यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है और आज भी पूरी श्रद्धा और रीति-रिवाजों के साथ मनाई जाती है। यह भी मान्यता है कि पुरुषोत्तम देव जब जगन्नाथ पुरी से रथपति की उपाधि लेकर बस्तर पहुंचे थे, तभी से इस परंपरा की शुरुआत हुई।
बस्तर के प्रमुख धार्मिक आयोजन
29 अगस्त – बेल जात्रा विधान
5 सितंबर – डेरी गढ़ाई पूना विधान
21 सितंबर – काछनगादी पूजा
22 सितंबर – कलश स्थापना पूजा
23 सितंबर – जोगी बिठाई पूना
24 सितंबर – नवरात्र पूजा विधान
29 सितंबर – फूल रथ परिक्रमा
30 सितंबर – निशा जात्रा पूना विधान
1 अक्टूबर – जोगी उठाई एवं मावली परघाव पूजा विधान
2 अक्टूबर – भीतर रैनी पूजा विधान
3 अक्टूबर – बाहर रैनी पूजा विधान
5 अक्टूबर – काछन जात्रा पूजा विधान एवं मुरिया दरबार
6 अक्टूबर– कुटुंब जात्रा पूजा विधान
7 अक्टूबर – डोली की विदाई के साथ दशहरा का समापन
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