उम्मीदों का 'हरा सोना': वनांचल में फिर गूंजेगा रोजगार का नगाड़ा
हरा सोने की तुड़ाई: कोरिया जिला के जंगलों से घिरा हुआ है. जंगली जानवरों की आमद तो यहां है ही इसके साथ ही यहां 'हरा सोना' यानि तेंदूपत्ता की भरमार है. तेंदू पत्ते से बीड़ी बनाई जाती है. ग्रामीण 'हरे सोने' की तुड़ाई के लिए सुबह होते ही जंगलों की ओर निकल जाते हैं. पहले रोजगार की तलाश में गांव के युवा शहरों की ओर पलायन कर रहे थे. वहीं तेंदू पत्ते के रोजगार ने न सिर्फ इस पलायन पर रोक लगाई है बल्कि लोगों को रोजगार का नया अवसर भी दिया है. कई गांव के लोग अब तेंदूपत्ते की तुड़ाई से अपना जीवन संवार रहे हैं लोगों को न सिर्फ आत्मनिर्भर बना रहा है ग्रामीण तेंदूपत्ता संग्रहण के माध्यम से न सिर्फ आय अर्जित करते हैं, बल्कि बच्चों की पढ़ाई, कर्ज चुकाने और घरेलू जरूरतों को भी पूरा करते हैं. तेंदू पत्ते कई ग्रामीणों का साल भर का रोजगार चलता है. इस बार भी ग्रामीणों को उम्मीद है कि हरे सोने का अच्छा दाम उनको मिलेगा. तेंदूपत्ते की तुड़ाई को लेकर जिला प्रशासन भी अलर्ट है. नक्सलियों की नजर भी तेंदूपत्ते की तुड़ाई और उसके ठेकेदारों पर रहती है.
तेंदूपत्ता को रखने की है खास विधि: जंगल से लाकर तेंदूपत्ता को सुरक्षित रखना इतना आसान काम नहीं है. इसको स्टोर करने के लिए ग्रामीण विशेष प्रकार के पेड़ों की छाल निकाल कर उससे रस्सी बनाते हैं. यह रस्सी न सिर्फ मजबूत होती है, बल्कि इसमें दीमक भी नहीं लगती है. इसी छाल से तेंदूपत्ते को बांधा जाता है. खास पेड़ों के बने छाल से बांधे गए पत्ते महीनों तक सुरक्षित रहते हैं. इन पत्तों और छालों में कीड़े या दीमक नहीं लगते. स्थानीय लोग इसे अपनी भाषा में डोरा कहते हैं. डोरा बरगद पेड़ के छाल से बनाया जाता है.
इस साल छत्तीसगढ़ शासन ने प्रति मानक बोरी तेंदूपत्ता की कीमत 5,500 रुपए तय की है. भले ही पिछले साल की तुलना में दरों में वृद्धि नहीं हुई, लेकिन इस बार संग्रहण करने वाली महिलाओं को चरण पादुका देने का फैसला सरकार ने किया है. सरकार की कोशिश है कि जंगल में जाकर तेंदूपत्ता तोड़ने वाले ग्रामीणों को पैरों में चोट न आए और वो अपना काम आराम से कर सकें.