बस्तर के लोकजीवन की आत्मा है, बस्तरिया नृत्य
छत्तीसगढ़ की बात होती है, तो बस्तर का नाम जरूर आता है. बस्तर की पहचान उसकी समृद्ध लोक कला, संस्कृति और परंपराओं से है. यही लोक संस्कृति छत्तीसगढ़ को देश और विदेश में एक अलग पहचान दिलाती है. इसी परंपरा का अहम हिस्सा है बस्तरिया नृत्य, जो बस्तर की मिट्टी से जुड़ा एक पारंपरिक और जीवंत नृत्य रूप है बस्तरिया नृत्य की खास बात यह है कि इसमें महिला और पुरुष दोनों एक साथ नृत्य करते हैं. महिलाएं नृत्य के दौरान पारंपरिक वेशभूषा पहनती हैं, जिसमें रुपया माला, पौंची, सुता, साड़ी, करधन और सिर में सजे मोरपंख शामिल होते हैं. यह परिधान नृत्य की शोभा को और अधिक बढ़ा देते हैं. बस्तरिया नृत्य की बात ही निराली है. यह नृत्य बस्तर के आदिवासी समुदाय द्वारा पीढ़ियों से किया जाता आ रहा है. खासतौर पर आदिवासी दिवस जैसे अवसरों पर बस्तर में बड़े-बड़े आयोजन होते हैं, जहां बड़ी संख्या में लोग एकत्र होकर इस नृत्य में भाग लेते हैं.
बस्तर के ही निवासी भीष्म कुमार बताते हैं कि पुरुष भी इस नृत्य को उतना ही एंजॉय करते हैं. वे नृत्य के समय ढोल बजाते हैं, सुता और माला पहनते हैं और सिर पर पारंपरिक पगड़ी बांधते हैं. भीष्म कहते हैं कि वे बचपन से ही इस नृत्य को देखते और करते आ रहे हैं. बस्तरिया नृत्य उनके जीवन का हिस्सा बन चुका है. यह नृत्य न सिर्फ मनोरंजन का साधन है, बल्कि इसके माध्यम से बस्तर के लोग अपनी संस्कृति, एकता और उत्साह को प्रदर्शित करते हैं. यह परंपरा आज भी बस्तर के गांवों में जीवित है और नई पीढ़ी इसे गर्व से अपना रही है. बस्तरिया नृत्य, बस्तर के लोक जीवन की आत्मा है, जो संस्कृति, संगीत और समरसता का प्रतीक बनकर छत्तीसगढ़ की गौरवशाली विरासत को आगे बढ़ा रहा है.