छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने जहां कभी नहीं चखा जीत का स्वाद वहां लगाया नए चेहरों पर दांव - CGKIRAN

छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने जहां कभी नहीं चखा जीत का स्वाद वहां लगाया नए चेहरों पर दांव

 


छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही जीतने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं। राज्य में आचार संहिता लगी हुई है। प्रदेश की किसी सीट पर कांग्रेस का पलड़ा भारी है, तो किसी पर बीजेपी का.  पार्टियां न सिर्फ चुनावी जीत के दावे कर रही है बल्कि सरकार भी बनाने का दम्भ भर रही है, साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से भाजपा ने 15 साल तक शासन किया,  भाजपा ने प्रदेश में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन बार सरकार का गठन किया। हालांकि, 2018 में कांग्रेस ने 68 सीटें जीतकर भाजपा को मात दी। विगत चुनाव में भाजपा 90 में से महज 15 सीटें जीतने में भी सफल हो पाई थी। लेकिन पार्टी कभी भी  इन नौ सीटों  सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर, कोंटा, खरसिया, कोरबा, कोटा, जैजैपुरपर सीटों पर जीत दर्ज नहीं कर पाई। इस बार भाजपा ने इन नौ में से छह सीटों पर नए चेहरों पर दांव लगाया हैं।  साल 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आईं कोरबा, पाली-तानाखार, जैजैपुर और मोहला-मानपुर से भी भाजपा ने कभी चुनाव नहीं जीता

कोंटा से नहीं हारे कवासी लखमा- भूपेश बघेल सरकार में उद्योग मंत्री और पांच बार से विधायक कवासी लखमा नक्सल प्रभावित कोंटा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं और वह 1998 से अजेय हैं। भाजपा ने नए चेहरे सोयम मुक्का पर दांव लगाया है।

कोरबा - भूपेश  सरकार के एक अन्य मंत्री जय सिंह अग्रवाल 2008 से अजेय हैं। वह कोरबा सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं। ऐसे में भाजपा ने पूर्व विधायक लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा है।

सीतापुर सीट- कांग्रेस के प्रभावशाली आदिवासी नेता और भूपेश सरकार में मंत्री अमरजीत भगत सीतापुर से अजेय रहे हैं। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से वह कभी भी सीतापुर सीट से चुनाव नहीं हारे। भाजपा ने हाल ही में सीआरपीएफ से इस्तीफा देकर पार्टी में शामिल हुए राम कुमार टोप्पो को चुनावी मैदान में उतारा है।

खरसिया सीट-  छत्तीसगढ़ के गठन से काफी पहले से यहां पर कांग्रेस का कब्जा रहा है।  खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार भूपेश सरकार में मंत्री उमेश पटेल चुनावी मैदान में हैं। यह सीट कांग्रेस के किले के समान है।  2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में मारे गए उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल ने इस सीट से पांच बार चुने गए थे। खरसिया सीट से भाजपा ने नए चेहरे महेश साहू पर दांव लगाया है।

मरवाही और कोंटा सीट- मरवाही और कोंटा सीट भी कांग्रेस का गढ़ रही हैं। हालांकि, 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीटों पर कब्जा किया था। साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार का गठन हुआ था। अजीन जोगी 2001 में मरवाही सीट से उपचुनाव जीते थे और बाद में 2003 और 2008 के चुनाव में भी उन्हें सफलता मिली थी।

2013 में अजीत जोगी के बेटे अमित जोगी को मरवाही से सफलता मिली थी। इसके बाद 2018 में अजीत जोगी ने अपने नवगठित संगठन जेसीसीजे से चुनाव लड़ा और जीत भी हासिल की। हालांकि, 2020 में अजीत जोगी के निधन के बाद सीट खाली हो गई और उपचुनाव में कांग्रेस ने कब्जा किया। वहीं, अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी 2006, 2008, 2013 और 2018 में भी सफलता हासिल की। भाजपा ने क्रमश: मरवाही और कोंटा से नए चेहरों प्रणव कुमार मरपच्ची और प्रबल प्रताप सिंह जूदेव को उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने क्रमश: केके ध्रुव और अटल श्रीवास्तव पर दांव लगाया।

पाली-तानाखार सीट- पाली-तानाखार सीट से भाजपा ने राम दयाल उइके को उतारा है। जिन्होंने 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस का दामन छोड़ भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राम दयाल उइके ने 2003 में तानाखार (जो परिसीमन के बाद पाली-तानाखार बन गया) और फिर 2008 और 2013 में पाली-तानाखार से चुनाव जीता था। हालांकि, 2018 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार ने उन्हें मात दे दी थी।

कांग्रेस ने इस बार पाली-तानाखार सीट से मौजूदा विधायक मोहित राम का टिकट काट दिया और उनकी जगह पर महिला उम्मीदवार दुलेश्वरी सिदार पर दांव लगाया।

जैजैपुर सीट- जैजैपुर सीट पर वर्तमान में बसपा का कब्जा है। यहां से कांग्रेस ने जिला युवा पार्टी पार्टी बालेश्वर साहू और भाजपा ने पार्टी जिला इकाई प्रमुख कृष्णकांत चंद्रा को उतारा है।

मोहला-मानपुर सीट- मोहला-मानपुर सीट पर कांग्रेस ने मौजूदा विधायक इंद्रशाह मंडावी पर भी दांव लगाया है, जबकि भाजपा ने पूर्व विधायक संजीव शाह को उतारा है।

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