मोबाइल फोन आविष्कार के 50 साल पूरे- पचास साल के सफर में मोबाइल ने कितनी बदल दी हमारी दुनिया?
दुनिया में मोबाइल को अस्तित्व में आए भले पचास साल हो चुके हैं लेकिन भारत में इसका चलन, करीब तीन दशक पुराना ही है। इसी हफ्ते तीन अप्रैल को मोबाइल फोन ने अपनी स्वर्ण जयंती मनाई है। दरअसल, तीन अप्रैल को मोबाइल फोन के आविष्कार को 50 साल पूरे हो रहे हैं। ये सूचना क्रांति के दौर में माइलस्टोन तो है, लेकिन सेहत के चश्मे से देखने पर मोबाइल के बेजा इस्तेमाल के कारण हमारी पेशानी पर बल भी पड़ने लगते हैं। अधिकांश सेवाओं के ऑनलाइन होने के दौर में यूजर्स मोबाइल पर कितना समय बिता रहे हैं, उन्हें खुद भी इस बात का अंदाजा नहीं रहता। लेकिन, कहीं भी इसे लेकर कोई उत्सव की भावना नहीं देखी गई। स्वर्ण जयंती के उल्लास से ज्यादा इसके आविष्कारक मार्टिन कूपर की स्वीकारोक्ति ज्यादा चर्चा में रही। उन्होंने कहा कि जब भी वे लोगों को मोबाइल का इस्तेमाल करते हुए देखते हैं तो परेशान हो जाते हैं। अफसोस करते हैं कि क्या इसी दिन के लिए उन्होंने मोबाइल का आविष्कार किया था?
दुनिया भर से आभासी रिश्ते जोड़ते जाने के इस जुनून ने हमारे वास्तविक रिश्तों की खूबसूरती और मिठास को तहस-नहस कर दिया है। किसी दूरस्थ, मोबाइल टॉवर से वंचित इलाके में अकेले रहना पड़े तो अब हम किसी अपने को याद करके नहीं, बल्कि नेटवर्क न मिलने की वजह से व्यथित होते हैं। आधा दिन भी अगर हमें मोबाइल न मिले तो हमारी हालत 'जल बिन मछली' जैसी होने लगती है। मोबाइल फोन सीधे-सीधे हमारी जिंदगी नहीं छीन रहा, लेकिन, जिंदगी से बहुत कुछ छीन चुका है। हमारा सुख-चैन, हमारी पारिवारिक-सांस्कृतिक परंपराएं, छोटी-छोटी चीजों से मिलने वाली खुशी, हमारे रिश्ते और भी बहुत कुछ। कोई भी वैज्ञानिक, कोई भी आविष्कार मानवता के हित के लिए ही करता है। लेकिन, टेक्नोलॉजी के साथ एक बड़ी समस्या है। यह दोधारी तलवार की तरह काम करती है। यदि इसका विवेकपूर्ण इस्तेमाल न किया जाए तो यह फायदे की जगह नुकसान पहुंचाने लगती है।
मोबाइल फोन विज्ञान का एक बड़ा चमत्कार होने के साथ-साथ सामाजिक क्रांति और आर्थिक क्रांति का एक बड़ा माध्यम है. लेकिन इससे साइबर सुरक्षा और कानून के कई बड़े पहलू भी खड़े हो गए हैं. इसमें सबसे बड़ी बात ये है कि मोबाइल फोन हमारी सारी गतिविधियों का एक बहुत बड़ा केंद्र बन गया है. इसकी वजह से देश के जो कानून हैं वो बेमानी साबित हो रहे हैं, क्योंकि अब जब अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में मोबाइल फोन फैल गया है और कौन व्यक्ति कहां से व्यापार कर रहा है इस बात का फैसला करना बहुत ही मुश्किल हो गया है. यहां से अंतरराष्ट्रीय चुनौती सामने आती है, क्योंकि मोबाइल फोन से जुड़े हुए जो तीन बड़ी बाते हैं उसमें एक है इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर. दूसरा जो बड़ी-बड़ी कंपनियां हैं ई-कॉमर्स और इंटरनेट की, मनोरंजन की वीडियो गेम्स की और तीसरा इससे जुड़ा जो व्यापार है.
बच्चों को बहलाने के लिए उन्हें एक साल का होते-होते मोबाइल थमा देने वाले माता-पिता अगर पांच साल और रुक जाएं तो एक पूरी जेनरेशन को, मोबाइल से होने वाले नुकसानों से और चार-पांच साल तक बचाया जा सकता है। बल्कि होना तो यह चाहिए कि जिस तरह से ड्राइविंग या ड्रिंकिंग के लिए एक न्यूनतम आयु निर्धारित है, वैसे ही मोबाइल के इस्तेमाल के लिए भी कर देनी चाहिए। तब शायद मिस्टर कूपर को भी इतना अफसोस न हो। बहरहाल, आज दुनिया में 91.04% लोग मोबाइल फोन धारक हैं। मोबाइल फोन के इस पचास साला सफर में हम इतना लंबा रास्ता तय कर चुके हैं कि वापस लौटना मुश्किल है। अगर इसके इस्तेमाल को तर्कसंगत बना दें तो तन मन और जीवन पर होनेवाले इससे नुकसान को थोड़ा कम जरूर किया जा सकता है।
