क्यों मनाई जाती है रंग पंचमी, क्या है इसका महत्व? - CGKIRAN

क्यों मनाई जाती है रंग पंचमी, क्या है इसका महत्व?


चैत्र माह की पंचमी तिथि को रंग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। रंक्ग पंचमी का पर्व होली के पांच दिन पड़ता है। इस साल जहां एक ओर होली 8 मार्च, दिन बुधवार को मनाई जाएगी वहीं, रंग पंचमी का पर्व 12 मार्च, दिन रविवार को पड़ रहा है। 

इस पर्व को कृष्ण पंचमी भी कहा जाता है क्योंकि यह चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाया जाता है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने राधा के साथ इस दिन होली खेली थी।

होली के ठीक बाद पांचवें दिन पूरे भारत में रंग पंचमी का त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हर साल चैत्र मास की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है और इसके पांच दिन बाद देश में रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है। इस बार रंग पंचमी 12 मार्च यानी आज रविवार को मनाई जा रही है। कहा जाता है कि रंग पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने राधा रानी के साथ होली खेली थी। इसलिए रंग पंचमी के दिन श्रीकृष्ण के साथ राधा जी की भी विशेष रूप से पूजा की जाती है।

हालांकि इस दिन सभी हिंदू देवी-देवताओं की पूजा होती है। इस दिन नवग्रहों की पूजा से कुंडली में छिपे बड़े दोष भी खत्म हो जाते हैं। इस दिन श्रीकृष्ण और राधा को लाल या गुलाबी रंग की गुलाल लगाई जाती है। कहा जाता है कि ऐसा करने से दांपत्य जीवन में खुशहाली बनी रहती है। पूजा करने का आज शुभ मुहूर्त दोपहर 12:07 से 03:17 बजे तक रहेगा।

रंग पंचमी की कथा 

ब्रज में चालीस दिनों तक रंगोत्सव मनाया जाता है जिसकी शुरुआत बसंत पंचमी से होती है। वहीं, रंग पंचमी इसी रंगोत्सव का समापन कहलाती है। यानी कि रंग पंचमी के दिन ही ब्रज की होली खत्म हो जाती है। 

इस दिन राधा रानी और श्री कृष्ण (अपन भक्त का कटा सिर क्यों लिए बैठे थे श्री कृष्ण) की पूजा से जीवन में प्रेम का वास स्थापित होता है। एक पौराणिक कथा और भी जिसके अनुसार जब भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था तब देवलोक समेत पूरी सृष्टि में से प्रेम विलीन हो गया था।

तब भगवान शिव ने एक निश्चित समय पर काम देव के श्री कृष्ण के पुत्र के रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद दिया था। यह बात सुन देव लोक समेत सभी पृथ्वी पर रंग गुलाल से प्रेम के देवता के आने का उत्सव मनाने लगे। तभी से रंग पंचमी को मनाने का एक कारण यह भी स्थापित हुआ। 

क्यों मनाई जाती है रंग पंचमी, क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा? 

प्रचलित कथाओं के मुताबिक कहा जाता है कि होलाष्टक के दिन, भगवान शिव ने कामदेव को उनकी तपस्या भंग करने के लिए भस्म कर दिया था। इससे देवलोक के सभी देवता मायूस हो गए थे। लेकिन देवी रति और देवताओं की प्रार्थना पर भगवान शिव ने कामदेव को एक बार फिर से जीवित कर दिया। इसके बाद सभी देवी-देवता प्रसन्न हुए और इस खुशी के मौके को मनाने के लिए रंगोत्सव मनाने लगे। तब से हर साल होली के बाद पंचमी तिथि को रंग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।

महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश में रंग पंचमी का त्योहार बहुत ही धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाता है। रंग पंचमी का लोकप्रिय त्योहार भारत के मालवा क्षेत्र में विशेष रूप से मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में लोकप्रिय है। मथुरा और वृंदावन में कुछ मंदिर भी इस त्योहार को मनाते हैं। इस अवसर पर लोगों द्वारा अपने घरों में तरह-तरह के व्यंजन बनाते हैं और लोग न केवल रंगों के साथ खेलते हैं बल्कि देवताओं को वही रंग और भोजन भी चढ़ाते हैं। कई जगहों पर रंग पंचमी पर गुलाल लेकर जुलूस निकाला जाता है, जिसे 'गेर' कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार इस पर्व को बुरी शक्तियों पर विजय का दिन भी माना जाता है।


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