प्रदेश में कम हो रही नक्सली दहशत
छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बावजूद यहां के मूल निवासी एवं रहवासियों को विकास का वो लाभ नहीं मिल सका, जिनके वे असली हकदार थे। सबसे पहले छत्तीसगढ़ के नक्सल इलाका का नक्सली दहशत से गिरता ग्राफ यह बता रहा था कि राज्य की जनता अभी भी सुरक्षित नहीं है लेकिन जिस तरह से नक्सली दहशत कम हुई और लोग घर से निकलना शुरू किए है अब लगता है लाल आतंक लगभग समाप्ति की ओर है। आज नक्सल इलाकों में स्कूल खुलने लगे है लोग अपने काम को पूरी तरह से अंजाम देने लगे है जहां लोगों का आना जाना बंद था लोग अब आ जा रहे हेै। साल 2019 के अंतिम माह में नई सरकार के गठन के बाद से यह छत्तीसगढ़ इस कदर बदला है कि गांधी के सिद्धांतों पर चलने लगा है। नक्सली घटना कम होने लगी, लोगों का सरकार के प्रति विश्वास बढऩे लगा, लोगों को काम धंधा मिलने लगा, गोबर और गौ-मूत्र की खरीदी से ग्रामीणों में उत्साह का संचार हुआ और महिलाएं भी अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने लगी।
कोई भी देश हो या प्रदेश हो, इसका विकास तेजी से तब ही होता है जब वहां सुरक्षा व्यवस्था अच्छी होती है, शांति का माहौल होता है। नक्सली दहशत के कारण बस्तर का विकास छत्तीसगढ़ बनने के बाद से प्रभावित रहा है। वहां होने वाली नक्सली हिंसा के कारण कोई बड़ा उद्योगपति बस्तर में निवेश करने से हिचकता है।सब चाहते हैं कि बस्तर में नक्सली हिंसा पर रोक लगाई जाए।
छत्तीसगढ़ राज्य बने दो दशक से ज्यादा हो गए हैं। लेकिन अब तक कोई सरकार नक्सली हिंसा पर पूरी तरह रोक नहीं लगा सकी है। यह जरूर हुआ है कि राज्य व केंद्र के सहयोग से नक्सली हिंसा को नियंत्रित किया जा सका है।जब भी नक्सलियों के खिलाफ एक राज्य में अभियान चलता है तो वह पास के दूसरे राज्य भाग जाते हैं,अभियान थमते ही फिर वापस आ जाते हैं। नक्सलिययों के बचे रहने की एक वजह यह है कि सभी राज्य एक साथ अभियान नहींं चलाते हैं।
राज्य के नक्सली उन्मूलन अभियान में जो पकड़े जाते हैं, मारे जाते हैं, आत्मसमर्पण करते हैं, वे ज्याजातर स्थानीय लोग होते हैं, इनकी जगह नकस्ली फिर दूसरे लोगों की भर्ती कर लेते हैं। इससे नक्सली पकड़े जाते है, मारे जाते हैं, लेकिन नक्सल गतिविधियां समाप्त नहीं होती हैं। नक्सली गतिविधियां तब ही समाप्त हो सकती है जब स्थानीय लोगों में नक्सली दहशत कम हो।उन्हें ऐसा लगे कि सरकार, पुलिस व बल उन्हें बचा सकते हैं।
यह बात सरकार को अब समझ आ गई है और उसने पिछले चार सालों में बस्तर में कैंपों की संख्या बढ़ाई गई है। इसका विरोध होता है लेकिन सरकार व फोर्स लोगों को यह समझाने में सफल रही है कि यह आपकी सुरक्षा के लिए है। यही वजह है कि सात जिलों में कैंपों की संख्या 54 हो गई है। हर साल सरकार 15 कैंप स्थापित कर रही है।
इसी का परिणाम है कि नक्सली आतंक से मुक्त होने वाले गांवों की संख्या बढ़़ती जा रही है। नक्सली ज्यादा आत्म समर्पण कर रहे हैं, पहले से ज्यादा मारे जा रहे हैैं। नग्सल प्रभावित जिलों में विकास के काम तेज हुए हैं। बरसों से बंद स्कूल खुल रहे हैं, सड़कें बन रही है, गांवों तक बिजली पहुंच रही है, ज्यादा मोबाइल टावर लगने से संचार सुविधाएं बढ़ रही हैं।
नक्सली दशहत कम होती है तो वह सब काम होना शुरू हो जाता है जो नक्सली दहशत के रहते संभव नहीं होता है। भूपेश बघेल सरकार के चार साल में गांव नक्सली दहशत से मुक्त हो रहे हैं, बंद स्कूल खोले जा रहे हैं,विकास कार्य हो रहे हैं तो यह अच्छी बात है, इसके लिए भूपेश सरकार की सराहना हर कोई कर रहा है। इससे पहले रमन सिंह की सरकार ने भी नक्सली हिंसा व दहशत को कम करने का प्रयास किया था लेकिन रमन सिंह सरकार की तुलना में भूपेश बघेल सरकार ज्यादा सफल रही है। आज हम एक ऐसे छत्तीसगढ़ के निर्माण के साक्षी हो रहे हैं जिसमें सभी के लिए काम है सभी की आवाज सुनी जा रही है, सबको स्वास्थ्य की सुविधा मिल रही है, बच्चों को पढ़ाई के भरपूर अवसर मिल रहे हैं महिलाओं को सम्मान मिल रहा है।