अगरबत्ती उद्योग से आत्मनिर्भर बनीं महिलाएं, आ रही बेहतर आमदनी - CGKIRAN

अगरबत्ती उद्योग से आत्मनिर्भर बनीं महिलाएं, आ रही बेहतर आमदनी


ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आत्मनिर्भरता की दिशा में स्व सहायता समूहों की भूमिका अब तेजी से बढ़ रही है. इसका एक जीता जागता उदाहरण बलौदाबाजार जिले के महिलाओं द्वारा संचालित सत्यम शिवम सुन्दरम स्व सहायता समूह है, जिसने अगरबत्ती निर्माण को अपनी आजीविका का माध्यम बनाकर न केवल आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी है, बल्कि गांव की अन्य महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन गई हैं. बलौदाबाजार की सत्यम शिवम सुन्दरम स्व सहायता समूह की महिलाएं आत्मनिर्भरता की मिसाल बन गई हैं. समूह की सदस्य लक्ष्मी निषाद चार तरह की सुगंधित अगरबत्तियां मोगरा, गुलाब, लोबान और चंदन बना रही हैं. आकर्षक पैकिंग और सस्ती कीमतों से उत्पाद लोकप्रिय हुए हैं. एक लाख की मशीन से शुरू यह उद्योग अब नियमित ऑर्डर और बेहतर आमदनी दे रहा है.

 समूह की सदस्य लक्ष्मी निषाद ने बताया कि वे चार प्रकार की सुगंधित अगरबत्तियों का निर्माण कर रही हैं. मोगरा, गुलाब, लोबान और चंदन. इन खुशबूओं वाली अगरबत्तियों को ग्रामीण और शहरी दोनों बाजारों में काफी पसंद किया जा रहा है. समूह ने अपने उत्पादों की पैकिंग भी आकर्षक तरीके से तैयार की है. लगभग एक पाव यानी 250 ग्राम का पैकेट 50 रुपए में उपलब्ध है, जबकि छोटे पैक 10, 20, 30 और 40 रुपए की रेंज में बेचे जा रहे हैं, जिससे हर वर्ग के ग्राहक तक उत्पाद पहुंच सके. महिलाएं कहती हैं कि यह काम न केवल आर्थिक सहयोग देता है बल्कि आत्मविश्वास भी बढ़ाता है. समूह की योजना है कि आने वाले समय में वे उत्पादों की विविधता बढ़ाकर अगरबत्ती के साथ धूपबत्ती और कपूर जैसे अन्य सुगंधित उत्पाद भी बनाएंगी. ग्रामीण क्षेत्र में इस तरह के छोटे उद्योग स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन और महिला सशक्तिकरण की दिशा में अहम भूमिका निभा रहे हैं. सत्यम शिवम सुन्दरम समूह का यह प्रयास इस बात का प्रमाण है कि सही मार्गदर्शन, मेहनत और लगन से महिलाएं किसी भी क्षेत्र में सफलता की नई मिसाल कायम कर सकती हैं.

अगरबत्ती बनाने की प्रक्रिया भी महिलाओं ने बारीकी से सीखी है. सबसे पहले वे कच्चे मिश्रण को पानी के साथ मिलाकर गीला करती हैं. आमतौर पर एक किलो मटेरियल में आधा लीटर पानी मिलाया जाता है ताकि मिश्रण उचित रूप से तैयार हो सके. इसके बाद तैयार मिश्रण को मशीन में डालकर स्टिक पर सेट किया जाता है. मशीन से निकलने के बाद अगरबत्तियों को खुले आसमान के नीचे धूप में अच्छे से सुखाई जाती है. जब अगरबत्तियां पूरी तरह सूख जाती हैं, तब उनमें अलग-अलग सुगंध वाले परफ्यूम डाले जाते हैं और दोबारा सुखाकर उनकी पैकिंग की जाती है.

इस उद्योग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली मशीन की लागत करीब एक लाख रुपए बताई गई है. लक्ष्मी निषाद और उनकी साथी महिला ने मिलकर इस मशीन को खरीदा और छोटा मगर प्रभावशाली लघु गृह उद्योग शुरू किया है. वे बताती हैं कि शुरू में यह काम चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अब नियमित ऑर्डर मिलने लगे हैं और आमदनी भी बेहतर हो रही है.


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