छत्तीसगढ़ की जीराफूल चावल का जवाब नही ... !, विदेशों में भी खूब डिमांड - CGKIRAN

छत्तीसगढ़ की जीराफूल चावल का जवाब नही ... !, विदेशों में भी खूब डिमांड


छत्तीसगढ़ में धान की पैदावार सबसे ज्यादा होती. साथ ही यहां धान की कई किस्मों मिलती है, जिसके कारण प्रदेश को धान का कटोरा कहा जाता है. ऐसा ही यहां एक धान खेती की खेती होती है, जिसका डिमांड विदेशों में भी खूब है. जीराफूल चावल की सुगंध लोगों का मन मोह लेती है और इसमें स्वाद भी काफी लाजवाब होता है. इस धान की खेती सिर्फ सरगुजा में होती है. बता दें कि  इस धान को GI टैग भी मिल चुका है. बता दें कि इस धान का नाम जीराफूल है और इसकी खेती सिर्फ उत्तरी छत्तीसगढ़ का सरगुजा संभाग में होती है.  जीराफूल- जैसा नाम वैसी ही इसकी क्वॉलिटी है. इसकी सुगंध लोगों का मन मोह लेती है और इस चावल में स्वाद भी काफी लाजवाब होता है. जीराफूल धान को 14 मार्च, 2019 को जीआई टैग मिला था.

जीराफूल छत्तीसगढ़ का सबसे महंगा चावल है. धान बेहद पतला और छोटा होता है. इस चावल की खुशबू और मिठास  काफी निराली है. खुशबू के साथ-साथ इसका स्वाद काफी लाजवाब होता है. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि किसी घर में जीराफूल चावल को पकाया जाता है तो उसके आसपास के घरों तक इसकी खुशबू पहुंच जाती है. छत्तीसगढ़ में पैदा होने वाले धान में यह नस्ल सबसे अधिक महंगी है. ओरिजनल जीराफूल धान का चावल बाजार में 100-120 रुपये किलो की दर से मिलता है.

स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है जीराफूल चावल

बता दें कि जीराफूल चावल स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है. दरअसल, ये चावल अन्य चावलों की तुलना में जल्दी और आसानी से पचता है. इसलिए इस चावल की डिमांड ना सिर्फ भारत में है, बल्कि विदेशों से भी इसकी मांग की जाती है.

जीराफूल धान कितने दिनों में होता है तैयार

खेती के दौरान जीराफूल धान लगभग 120 से 130 दिन में तैयार होती है. ये सबसे अधिक अवधि में तैयार होने वाला धान है. इस धान की खेती के लिए पानी भी काफी मात्रा में लगता है. इसलिए इसे गहरे खेत में लगाया जाता है, ताकि पानी अधिक स्टोर हो सके. इसके अलावा इस धान की पैदावार भी ऑर्गेनिक होती है. बता दें कि इसमें सिर्फ जैविक खाद डाला जाता है.

ऑर्गेनिक क्यों की जाती है जीराफूल की खेती 

दरअसल, जीराफूल धान की खेती में रासायनिक खाद का उपयोग नहीं किया जाता है. कहा जाता है कि इस धान की खेती में अगर  रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है, तो इसकी सुगंध और स्वाद दोनों ही बदल जाती है, जिससे चावल की मुख्य पहचान इसमें नहीं रह पाती है. लिहाजा जीराफूल की खेती में जैविक खाद ही डाली जाती है.


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