अब नक्सल क्षेत्र में दौड़ेगी रेल, बस्तर में विकास को मिलेगी रफ्तार - CGKIRAN

अब नक्सल क्षेत्र में दौड़ेगी रेल, बस्तर में विकास को मिलेगी रफ्तार

 


बस्तर में पहली बार रेललाइन बिछाने का सपना अब साकार होने जा रहा है. कोठागुडेम (तेलंगाना) से किरंदुल (छत्तीसगढ़) तक प्रस्तावित 160 किलोमीटर लंबी रेललाइन का फाइनल लोकेशन सर्वे अब अंतिम चरण में है. इस परियोजना के तहत सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर जैसे नक्सल प्रभावित जिलों को पहली बार रेल नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है. इन जिलों में अब तक रेल की कोई सुविधा नहीं थी. रेलवे लिडार जैसी अत्याधुनिक तकनीक से सर्वे कर रहा है. यह पूरा काम भारत सरकार के गृह मंत्रालय की निगरानी में किया जा रहा है. राज्य सरकार के सहयोग से यह कार्य फिर से तेज़ी पकड़ चुका है. यह रेललाइन बस्तर के लोगों के लिए शिक्षा, इलाज, व्यापार और आत्मनिर्भरता की नई राह खोलने जा रही है. सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि बस्तर के इन दुर्गम इलाकों को पहली बार सीधी रेल सुविधा मिलेगी. लोग आसानी से शहरों तक पहुंच सकेंगे, शिक्षा, इलाज और व्यापार के रास्ते खुलेंगे, और सुरक्षा बलों की आवाजाही भी आसान होगी. यह रेललाइन इन इलाकों को देश के साथ मजबूती से जोड़ेगी

तीन राज्य हो रहे कवर

यह रेललाइन तीन राज्यों तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ से होकर गुजरेगी, लेकिन इसका सबसे बड़ा हिस्सा यानी 138 किलोमीटर से अधिक छत्तीसगढ़ के अंदर है, जो अब तक रेल सुविधा से वंचित रहा है. यह क्षेत्र विकास की दृष्टि से पिछड़ा माना जाता है और नक्सल गतिविधियों से प्रभावित रहा है.

 सर्वे क्यों ज़रूरी है?

इस सर्वे के पूरा होने के बाद ही DPR यानी Detailed Project Report बनेगी और तब जाकर रेललाइन निर्माण शुरू हो पाएगा. यही वजह है कि यह पूरा प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय की सीधी निगरानी में चल रहा है. मंत्रालय इसे सिर्फ यातायात नहीं, बल्कि सुरक्षा और सामाजिक बदलाव से जुड़ी बड़ी योजना के रूप में देख रहा है.

रेललाइन बनाने से पहले उसका रास्ता तय करने के लिए सर्वे किया जाता है. यह सर्वे किसी पुराने नक्शे से नहीं, बल्कि LiDAR (लिडार) नाम की एक नई तकनीक से हो रहा है. यह ऐसी मशीन होती है जो आसमान से ड्रोन या हेलिकॉप्टर की मदद से ज़मीन को स्कैन करती है और बताती है कि कहां-कहां पहाड़ हैं, नदियां हैं या पेड़ हैं.

क्या हो रही हैं मुश्किलें?

जब सर्वे करने की टीम दंतेवाड़ा पहुंची, तो 9 जून 2025 को कुछ ग्रामीणों ने विरोध किया और काम रुक गया. शायद उन्हें डर था कि जंगल कटेंगे या ज़मीन चली जाएगी. लेकिन, सरकार ने साफ कहा है कि ये रेललाइन इलाके के विकास के लिए है और किसी को नुकसान नहीं होने दिया जाएगा. राज्य सरकार ने दंतेवाड़ा और बीजापुर के ज़िलाधिकारियों को कहा कि सर्वे टीम की मदद करें

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