अनोखा इंस्टीट्यूट, छह से 46 की उम्र तक के 'छात्र', शिक्षक 'ईश्वर तुल्य'
रायपुर की 'आकांक्षा' 31 साल की हो गई है। यह एक ऐसी संस्था है, जिसकी दीवारें छह से 46 वर्ष तक के बाल व्यवहार वाले 'बच्चों' के लिए मातृछाया बन चुकी हैं। यह डाउन सिंड्रोम बच्चों के मौन को जुबान है तो समझ को नया आयाम भी। यहां अव्यक्त भावों को समझने वाले शिक्षकों का समर्पण महसूस किया जा सकता। 'आकांक्षा' की विशिष्टता और विविधता को यहां के छात्रों के विविध व्यवहारों से भी समझा जा सकता है। यहां लगभग 13 वर्ष का एक छात्र ऐसा है, जो बोल तो नहीं सकता परंतु कंप्यूटर और पंखे से लेकर कोई भी इलेक्ट्रॉनिक या अन्य उपकरण खोल सकता है।दूसरा छात्र ऐसा भी है, जिसे यहां के सभी शिक्षक टीवी सीरियल सीआइडी का इंस्पेक्टर दया बुलाते हैं। उसने मुक्के मारकर स्कूल के सभी दरवाजों और खिड़कियों के शीशे तोड़ डाले हैं। इसी तरह यहां का हर छात्र विशेष है।
यह ऐसे बच्चे हैं जो अपनी बात नहीं कह पाते। माना जाता है कि दुनियावाले उनको नहीं समझ पाते और वह दुनियावालों को नहीं समझ पाते। माता-पिता के लिए यह बड़ी चुनौती होते हैं। लेकिन छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर का ‘आकांक्षा लायंस इंस्टीट्यूट’ चुनौती का समाधान बन कर उभरा। बौद्धिक दिव्यांगों को यहां विशेष देखभाल के साथ प्रशिक्षण दिया जाता है।विशेषज्ञ विभिन्न पद्धतियों से बच्चों को बोलने, समझने और अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का सामर्थ्य विकसित करते हैं। प्री-नर्सरी से लेकर वोकेशनल (व्यावसायिक) कक्षाओं में दो से दस विद्यार्थी एक साथ बैठते हैं। कई छात्र ऐसे हैं जिन्हें संभालने के लिए एक साथ दो से तीन शिक्षक तैनात रहते हैं। स्वावलंबन के लिए हर बारीक चीज सिखाई जाती है।
बच्चों का उत्साह बढ़ाने पर अधिक जोर
जब हम प्री प्राइमरी क्लास रूम में पहुंचे तो यहां आलोक, रूद्र, कुणाल, देव भारती, भूमिका साहू और इच्छा मौजूद थे। शिक्षिका ने बताया कि बच्चों को बोलने में समस्या होती है। कई बार उनकी बातों को दूसरे समझ नहीं पाते हैं। अगर हम उनकी बातों को नहीं समझने का इशारा करेंगे तो बच्चों का मनोबल कमजोर होता है, वे नाराज होते हैं, इसलिए हमें ऐसा संकेत देना पड़ता है कि हम उनकी बातों को समझ चुके हैं, ताकि उनका उत्साह बना रहे।
अधिक उम्र के बच्चों के लिए भी कक्षाएं
आकांक्षा इंस्टीट्यूट में 18 से अधिक उम्र के विशेष बच्चों के लिए गतिविधि-आधारित (वोकेशनल) कक्षाएं हैं। उन्हें गाना गाने और नृत्य के साथ ही रचनात्मकता के विकास के लिए आर्ट एंड क्राफ्ट का भी प्रशिक्षण दिया जाता है। शिक्षक जिनित कुमार साहू उनके साथ इंडोर और आउटडोर खेल भी खेलते हैं। दो अक्टूबर 1994 को स्थापित इस स्कूल की चार शाखाओं अभी 213 विद्यार्थी अध्ययरत है। यहां महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा से छात्र प्रशिक्षण पा रहे हैं। यहां स्पीच, आक्यूपेशनल थेरेपी और रेमेडियल टीचिंग आदि से प्रशिक्षिति किया जाता है।
हर बच्चे का स्तर है खास
इंस्टीट्यूट में प्रोजेक्ट और रिसर्च डायरेक्टर डा. सिमी श्रीवास्तव बताती हैं कि हर बच्चे का मौखिक और लिखित आकलन जाता है। मानसिक और आइक्यू (बुद्धि लब्धि) स्तर की पड़ताल करते हैं। 90 से 110 की जगह 70 से कम आइक्यू स्तर वालों को बौद्धिक दिव्यांगता की श्रेणी में माना जाता है। जितनी जल्दी पहचान हो जाए, उतना अच्छा है। कई अभिभावक दस साल की उम्र में भी संस्था पहुंचते हैं।आकांक्षा ट्रेनिंग कालेज में प्रतिवर्ष 200 विद्यार्थी फाउंडेशन से लेकर स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई और प्रशिक्षण भी प्राप्त कर रहे हैं, जो देश के विभिन्न क्षेत्रों में बौद्धिक दिव्यांगता की समस्या के समाधान में अहम भूमिका निभा रहे हैं। डा. नितिन धाबलिया और एनडी अग्रवाल, आरके नागपाल, जीएस राजपाल व अन्य समाजसेवियों ने इसे विस्तार दिया।