करवा चौथ कल, जानें व्रत का समय व पूजन मुहूर्त - CGKIRAN

करवा चौथ कल, जानें व्रत का समय व पूजन मुहूर्त


सुहागिन महिलाओं को हर वर्ष करवा चौथ का बेसब्री से इंतजार रहता है। अखंड सौभाग्य, पति की लंबी आयु और बेहतर जीवन के लिए सुहागिन महिलाएं हर वर्ष कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को करवा चौथ पर निर्जला व्रत रखती हैं। इस व्रत में महिलाएं दिनभर उपवास रखते हुए रात को चंद्रमा के निकलने पर दर्शन और पूजन करते हुए अपना व्रत खोलती हैं।

कार्तिक (8वें चंद्र महीने) माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी (चौथे दिन) को करवा चौथ व्रत मनाया जाता है. इस साल यह तिथि 20 अक्टूबर, दिन रविवार को पड़ता है. सुहागिन महिलाएं पतियों की सुखद-सफल और दीर्धायु जीवन के लिए पूजा-अर्चना करती हैं. वहीं करवा चौथ के दिन संकष्टी चतुर्थी भी होती है, जो भगवान गणेश को समर्पित एक व्रत है. करवा चौथ की रस्में क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग हों सकती हैं, लेकिन इस त्योहार सार एक ही है- प्रेम, भक्ति और विवाह के पवित्र बंधन का उत्सव.

करवा चौथ, विवाहित हिंदू महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो ज्यादातर उत्तरी भारत में मनाया जाता है. इसे करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है, जहां करवा या करक का अर्थ है मिट्टी का बर्तन जिसके माध्यम से पानी चढ़ाया जाता है, जिसे चंद्रमा को अर्घ कहा जाता है. यह त्यौहार विवाह का उत्सव है, जिसमें पत्नियां निर्जला व्रत रखती हैं. यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर शाम को चांद दिखने तक चलता है. धार्मिक मामलों के जानकार के अनुसार "करवा चौथ का व्रत कठोर होता है. सूर्योदय के बाद रात में चांद दिखने तक उपवास रखना होता है. इस दौरान व्रती कुछ भी खाना तो दूर, पानी की एक बूंद भी नहीं पीया जाता है."

द्रिक पंचांग के अनुसार करवा चौथ व्रत का समय

करवा चौथ का व्रत 20 अक्टूबर 2024, दिन रविवार

करवा चौथ पूजन का शुभ मुहूर्त-शाम 5ः17 बजे से 6:33 मिनट तक

करवा चौथ का समय- सुबह 5ः17 बजे से शाम 7ः29 बजे तक

करवा चौथ व्रत के दिन चंद्रोदय का समय-शाम 7 बजकर 29 मिनट तक

करवा चौथ 2024: उत्पत्ति और महत्व

करवा चौथ, जिसे करक चतुर्थी के रूप में भी जाना जाता है, वैवाहिक बंधन की मजबूती का प्रतीक है. इसका पता महाभारत की कहानी से लगाया जा सकता है, जब सावित्री ने अपने पति की आत्मा के लिए मृत्यु के देवता, भगवान यम से प्रार्थना की थी. महाकाव्य में एक और अध्याय पांडवों और उनकी पत्नी द्रौपदी के बारे में है, जिन्होंने अर्जुन द्वारा कुछ दिनों के लिए प्रार्थना और ध्यान करने के लिए नीलगिरी की यात्रा करने के बाद अपने भाई कृष्ण से सहायता मांगी थी. उन्होंने उसे देवी पार्वती की तरह अपने पति शिव की सुरक्षा के लिए सख्ती से उपवास करने का निर्देश दिया. द्रौपदी ने इसका पालन किया और अर्जुन जल्द ही सुरक्षित घर लौट आए. त्योहार के पीछे का महत्व यह है कि उपवास का कार्य एक पत्नी की अपने पति के प्रति भक्ति और प्रेम को दर्शाता है. करवा चौथ मुख्य रूप से उत्तरी और पश्चिमी भारत में मनाया जाता है, जहां इस अवसर पर बहुत ही उत्साहपूर्ण उत्सव मनाया जाता है. पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में, बाज़ार सजावटी वस्तुओं, पारंपरिक कपड़ों और मिठाइयों से भरे होते हैं, जो उत्सव की भावना को दर्शाते हैं.

करवा चौथ पूजा विधि

सुहागिन महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत पति-पत्नी के बीच प्यार, स्नेह और विश्वास का प्रतीक माना गया है। यह पर्व पति की लंबी आयु और दांपत्य जीवन में खुशहाली का महापर्व है। करवा चौथ के दिन चन्द्रमा की पूजा कर महिलाएं चंद्रदेव से यह आशीर्वाद मांगती हैं कि किसी भी कारण से उन्हें अपने प्रियतम का वियोग न सहना पड़े । सुहागिन महिलाएं करवा चौथ पर देवी पार्वती के स्वरूप चौथ माता, भगवान शिव और कार्तिकेय के साथ-साथ श्री गणेशजी की पूजा करती हैं।  

करवा चौथ पर शाम को लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं, इस पर भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश जी की प्रतिमा स्थापित कर दें। एक लोटे में जल भरकर उसके ऊपर श्रीफल रखकर कलावा बांध दें और दूसरा मिट्टी का करवा लेकर उसमें जल भरकर व ढक्कन में शक्कर भर दें, उसके ऊपर दक्षिणा रखें, रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। इसके बाद धूप, दीप, अक्षत व पुष्प चढाकर भगवान का पूजन करें, पूजा के उपरांत भक्तिपूर्वक हाथ में गेहूं के दाने लेकर चौथमाता की कथा पढ़ें या  सुने। फिर रात्रि में चंद्रोदय होने पर चंद्रदेव को अर्ध्य देकर बड़ों का आशीर्वाद लेते हुए व्रत को समाप्त करें। 

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