मकर संक्रांति के दिन क्यों खाए जाते हैं तिल और गुड़ के लड्डू...?
मकर संक्रांति हिंदुओं के बड़े त्योहारों में से एक माना जाता है. इस साल मकर संक्रांति का त्योहार 14 जनवरी नहीं, बल्कि 15 जनवरी को मनाया जाएगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जिस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तब मकर संक्रांति का योग बनता है. मकर संक्रांति का नाम सुनते ही पतंग, खिचड़ी और तिल-गुड़ के लड्डू की याद आने लगती है. संक्रांति पास आते-आते घरों में आसपास तिल और गुड़ की खुशबू भी आने लगती है. लेकिन क्या कभी सोचा है कि इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू खाने की परंपरा क्यों है. आखिर क्यों इस दिन तिल और गुड़ के लड्डू खाए जाते हैं. मकर संक्राति के मौके पर तिल और गुड़ के लड्डू खाने की परंपरा है. परंपरा के साथ-साथ इसका वैज्ञानिक महत्व भी है. आइए जानते हैं कि संक्राति पर तिल और गुड़ के लड्डू क्यों खाना चाहिए-
मकर संक्रांति का महत्व
सनातन धर्म में मकर संक्रांति का बहुत महत्व है. इस दिन सूर्य देव धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करते हैं.सूर्य के मकर राशि में आते ही शुभ मुहूर्त की शुरुआत हो जाती है. साथ ही सूर्य के उत्तरायण होने से रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं. माना जाता है कि उत्तरायण में मनुष्य प्रगति की ओर अग्रहसर होता है.
गंगा मां धरती पर आईं -पौराणिक मान्यता है कि मां गंगा मकर संक्रांति वाले दिन पृथ्वी पर प्रकट हुईं. गंगा जल से ही राजा भागीरथ के 60,000 पुत्रों को मोक्ष मिला था. इसके बाद गंगा जी कपिल मुनि के आश्रम के बाहर सागर में जाकर मिल गईं.
पौराणिक कथा- पौराणिक कथाओं के मुताबिक एक बार सूर्यदेव अपने पुत्र शनि देव पर क्रोधित हो गए थे. इस दौरान गुस्से में आकर उन्होंने अपने तेज से शनि देव के एक घर को जला कर राख कर दिया था. शनिदेव का वह घर है कुंभ राशि. शनि देव ने अपने पिता से क्षमा मांगी और उनकी वंदना की तो सूर्यदेव का क्रोध शांत हुआ. पुत्र शनि देव पर कृपा करके सूर्य देव ने कहा कि वह हर साल जब भी राशि चक्र में भ्रमण करते हुए मकर राशि में आएंगे तो शनि महाराज के घर को धन धान्य और खुशियों से भर देंगे.
गुड़-तिल का महत्व- इसी कथा में ये बात सामने आती है कि शनि देव के घर जब सूर्य देव का आगमन हुआ तो शनि महाराज ने तिल और गुड़ से पिता सूर्य देव की आराधना की.साथ ही उन्हें भोजन में तिल और गुड़ खिलाया. सूर्य देव पुत्र द्वारा तिल और गुड़ भेंट करने से काफी खुश हुए और शनिदेव से कहा- जो भी मकर संक्रांति के दिन तिल और गुड़ से मेरी पूजा करेगा उस पर शनि सहित मेरी कृपा बनी रहेगी.तो ऐसे में मकर संक्रांति पर तिल और गुड़ खाने की परंपरा शुरू हो गई.
तिल दान की कथा
मकर संक्रांति के दिन तिल खाने व उसका दान करने के पीछे एक पौराणिक कथा भी है। दरअसल, सूर्य देव की दो पत्नियां थी छाया और संज्ञा। शनि देव छाया के पुत्र थे, जबकि यमराज संज्ञा के पुत्र थे। एक दिन सूर्य देव ने छाया को संज्ञा के पुत्र यमराज के साथ भेदभाव करते हुए देखा और क्रोधित होकर छाया व शनि को स्वयं से अलग कर दिया। जिसके कारण शनि और छाया ने रूष्ट होकर सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया। अपने पिता को कष्ट में देखकर यमराज ने कठोर तप किया और सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवा दिया लेकिन सूर्य देव ने क्रोध में शनि महाराज के घर माने जाने वाले कुंभ को जला दिया। इससे शनि और उनकी माता को कष्ट भोगना पड़ा। तब यमराज ने अपने पिता सूर्यदेव से आग्रह किया कि वह शनि महाराज को माफ कर दें। जिसके बाद सूर्य देव शनि के घर कुंभ गए। उस समय सब कुछ जला हुआ था, बस शनिदेव के पास तिल ही शेष थे। इसलिए उन्होंने तिल से सूर्य देव की पूजा की। उनकी पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनिदेव को आशीर्वाद दिया कि जो भी व्यक्ति मकर संक्रांति के दिन काले तिल से सूर्य की पूजा करेगा, उसके सभी प्रकार के कष्ट दूर हो जाएंगे। इसलिए इस दिन न सिर्फ तिल से सूर्यदेव की पूजा की जाती है, बल्कि किसी न किसी रूप में उसे खाया भी जाता है।