कम मानदेय से परेशान मिड-डे मील रसोइये धरने पर बैठे, स्कूलों में नहीं बना खाना - CGKIRAN

कम मानदेय से परेशान मिड-डे मील रसोइये धरने पर बैठे, स्कूलों में नहीं बना खाना



कम मानदेय से परेशान होकर रसोइया महासंघ के सदस्य अपनी ताकत दिखाने के लिए प्रदेशभर से रायपुर पहुंचे हैं. यहां धरना स्थल पर आंदोलनकारी रसोइयों का मेला लगा हुआ है. त्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, राज्य में विरोध-प्रदर्शन और हड़ताल का दौर तेज होता जा रहा है. एक के बाद संगठन अपनी-अपनी मांगों को लेकर सरकार पर दबाव बनाने में जुट गए हैं. इसी कड़ी में स्कूल में खाना बनाने वाले रसोइयों के संगठन ने भी सरकार के खिलाफ आंदोलन शुरू कर दिया है. हम लोगों को स्कूल में जितना काम करना पड़ता है। उस हिसाब से वेतन नहीं मिलता है। इतने पैसे में परिवार नहीं चलता है।"

इस आंदोलन से मिड-डे मील योजना भी प्रभावित हो रही है. गौरतलब है कि राज्य में 29 लाख बच्चों के लिए मिड-डे मील बनाने के लिए 87 हजार रसोइये तैनात हैं. इन्हें हर महीने मात्र 1500 रुपये ही मानदेय दिया जाता है. लिहाजा, रसोइया महासंघ ने राज्य सरकार से कलेक्ट दर के मुताबिक मानदेय देने की मांग की है. इसके साथ ही इन लोगों ने कांग्रेस सरकार को उनके चुनावी वादे को याद दिलाते हुए उसे पूरा करने के लिए दबाव बढ़ा दिया है. रसोइया संघ के इस आंदोलन का राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी ने भी समर्थन किया है.

मिड-डे-मील (एमडीएम) योजना के तहत स्कूलों में बच्चों के लिए खाना बनाने वाली रसोईये को वेतन के तौर पर प्रति महीने सिर्फ और सिर्फ 1650 रुपये ही मिलता है। और वह भी साल में दस महीने का ही उन्हें भुगतान होता है जबकि दो महीने का उन्हें कोई वेतन नहीं मिलता है। इतने कम वेतन पर हर कार्य दिवस में करीब 6 घंटों तक स्कूलों में उन्हें काम करना पड़ता है। उनके काम की बात करें तो खाना बनाने, बच्चों को खाना परोसने से लेकर बर्तन धोने तक की उनकी जिम्मेदारी है। बता दें कि स्कूलों में बतौर रसोईये वही महिलाएं या पुरुष काम करते हैं जो आर्थिक रुप से बेहद कमजोर हैं। रसोइया के तौर पर ज्यादातर महिलाएं ही जुड़ी हुई हैं। उन महिलाओं की तादाद ज्यादा है जो विधवा हैं या जिनके पति बीमार रहते हैं। ऐसे में वे अपने बच्चों और परिवार का खर्च पूरा करने के लिए इस काम में लगी हैं।

बीते महीने में राज्यसभा की एक स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ‘विभिन्न राज्यों द्वारा रसोइया-सह-सहायक को भुगतान किए गए मानदेय में असमानता है’ और सिफारिश की कि रसोइयों की सैलरी तय करने के लिए एक समान प्रणाली विकसित करनी चाहिए.

आंगनबाड़ी कार्यकर्ता बी कर चुके हैं प्रदर्शन- इससे पहले प्रदेशभर में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ भी अपनी 6 सूत्रीय मांगों को लेकर प्रदर्शन किया था. इस दौरान आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं ने सरकार की ओर से अपने चुनावी वादे को पूरा नहीं करने पर नाराजगी जाहिर करते हुए सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की थी. आंगनबाड़ी कार्यकर्ता सहायिका संघ की जिलाध्यक्ष विद्या जैन ने कहा था कि नारियों में भारी रोष व्याप्त है.

संघ की मांगे- कलेक्टर दर पर मानदेय दिया जाए। वर्तमान में रसोइयों को 1500 रूपए मानदेय दिया जाता है। काम के हिसाब से मानदेय काफी कम है। दूसरी मांग नियमितीकरण की है। तीसरी मांग रसोइयों को काम से नहीं निकाला जाए।

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