मनरेगा अब हुआ जी राम जी- नाम बदला या नीति भी बदली...?
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का नाम बदलकर विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण (VB G RAM G) किया गया है. अब इस मुद्दे पर सियासी घमासान तेज हो गया है. कांग्रेस इसे रोजगार गारंटी को कमजोर करने और महात्मा गांधी के नाम को हटाने की साजिश बता रही है, जबकि भाजपा इसे मिशन 2047 के तहत बड़ा सुधार और ग्रामीण रोजगार के विस्तार का कदम बता रही है.ग्रामीण रोजगार की रीढ़ मानी जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का नाम बदलकर ‘विकसित भारत–जी राम जी 2025’ किए जाने को लेकर देश की राजनीति और नीति–निर्माण के गलियारों में बहस तेज हो गई है. दरअसल, मनरेगा की शुरुआत साल 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हर जरूरतमंद परिवार को न्यूनतम रोजगार की गारंटी देना था. इस योजना के तहत 100 दिनों के रोजगार का प्रावधान था और इसके खर्च का लगभग 90 प्रतिशत केंद्र सरकार वहन करती थी. अब प्रस्तावित ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’, यानी VB–जी राम जी योजना में इस ढांचे को बदला जा रहा है. नए विधेयक में रोजगार की गारंटी बढ़ाकर 125 दिनों तक करने की बात कही गई है, जिससे ग्रामीण परिवारों की आय में स्थिरता लाने का दावा किया जा रहा है. सरकार का तर्क है कि बीते 20 वर्षों में ग्रामीण भारत की सामाजिक–आर्थिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया है और ऐसे में मनरेगा जैसे कानून को भी समय के अनुरूप आधुनिक बनाना जरूरी है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, यह नया कानून ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सिर्फ मजदूरी तक सीमित न रखकर आजीविका और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया जा सके.
छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार शुरू से ही मनरेगा विरोधी रही है. मनरेगा गांव गांव में 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी देती थी और काम न मिलने पर भत्ता लेने का अधिकार भी था. नाम बदलने के साथ ही मजदूरी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई, रोजगार की गारंटी भी कमजोर कर दी गई है.कांग्रेस ने इसे भाजपा-आरएसएस की ओर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के नाम और उनकी ग्राम स्वराज की सोच का अपमान बताया.
मनरेगा से जी-राम-जी तक: क्या है नया कानून?
VB-GRAM G विधेयक 2025 के जरिए दशकों पुराने मनरेगा को बदला जाएगा. मनरेगा का फोकस अकुशल रोजगार की गारंटी तक सीमित था. नया कानून रोजगार के साथ-साथ आजीविका, गांवों के बुनियादी ढांचे और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देता है. सरकार का दावा है कि यह कानून ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अधिक टिकाऊ और आत्मनिर्भर बनाएगा.
काम के दिनों में बढ़ोतरी: 100 से 125 दिन का वादा
मनरेगा में ग्रामीण परिवारों को साल में 100 दिन के रोजगार की गारंटी थी. नए कानून में इसे बढ़ाकर 125 दिन करने का दावा किया गया है. कागजों में यह बड़ी राहत दिखती है, लेकिन छत्तीसगढ़ के अनुभव बताते हैं कि पहले ही 100 दिन का लक्ष्य ज्यादातर परिवारों तक नहीं पहुंच पाया. ऐसे में सवाल है कि 125 दिन की गारंटी जमीन पर कैसे पूरी होगी?
खेती के मौसम में नहीं मिलेगा सरकारी काम
नए कानून में किसानों की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए बड़ा बदलाव किया गया है. अब कृषि मौसम (करीब 60 दिन) के दौरान सरकारी रोजगार के काम हीं कराए जाएंगे. राज्य सरकारें खुद इन 60 दिनों की अवधि तय कर नोटिफाई करेंगी. इससे खेती के समय मजदूरों की कमी दूर करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन जानकारों की मानें तो ग्रामीण मजदूरों के लिए रोजगार के दिन वास्तविक तौर पर सिमट सकते हैं.
फंडिंग फॉर्मूला बदला: राज्यों पर बढ़ेगा बोझ
मनरेगा में मजदूरी का खर्च पूरी तरह केंद्र सरकार उठाती थी, लेकिन VB-GRAM G में राज्यों की हिस्सेदारी बढ़ेगी. अन्य राज्यों (जैसे छत्तीसगढ़) के लिए 60:40 यानी अब छत्तीसगढ़ को योजना का 40 प्रतिशत खर्च खुद उठाना होगा. इससे राज्य सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है.
छत्तीसगढ़ पर असर: फायदा या नुकसान?
विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है. कांग्रेस और आलोचकों का कहना है कि इससे राज्य पर आर्थिक बोझ बढ़ेगा और ग्रामीण मजदूरों को नुकसान होगा, जबकि समर्थकों का दावा है कि पारदर्शिता और सुधारों से योजना ज्यादा प्रभावी बनेगी.
कुल मिलाकर सवाल यही है—मनरेगा से 'जी-राम-जी' तक का यह सफर ग्रामीण रोजगार की तस्वीर बदलेगा या सिर्फ नाम बदलने तक सीमित रहेगा? मनरेगा से विकसित भारत–जी राम जी योजना तक का यह सफर सिर्फ एक नाम परिवर्तन नहीं लगता. इसमें रोजगार के दिनों की बढ़ोतरी, फंडिंग पैटर्न में बदलाव और तकनीकी निगरानी जैसे कई ऐसे तत्व शामिल हैं, जो ग्रामीण भारत की तस्वीर को बदल सकते हैं. सवाल यही है कि क्या यह बदलाव वास्तव में ग्रामीण मजदूरों की जिंदगी आसान बनाएगा या फिर यह सिर्फ एक नई नीति का नया नाम भर साबित होगा—इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा.
